देश – पुतिन के बुलावे पर PM मोदी का रूस दौरा तय, बैठक पर अमेरिका और इजरायल की खास नजर #INA

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 22-23 अक्टूबर 2024 को रूस का दौरा करेंगे, जहां वह कज़ान में आयोजित होने वाले 16वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में शामिल होंगे. यह दौरा रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के आमंत्रण पर हो रहा है. इस महत्वपूर्ण शिखर सम्मेलन का विषय “न्यायपूर्ण वैश्विक विकास और सुरक्षा के लिए बहुपक्षवाद को मजबूत करना” है, जिसमें विश्व के प्रमुख मुद्दों पर गहन चर्चा की जाएगी. ब्रिक्स में ईरान की एंट्री के बाद यह पहला सम्मेलन है, और यह सम्मेलन ऐसे समय में हो रहा है जब इजरायल ईरान जंग के आसार प्रबल है, साथ हीं ईरान को रूस का पुरजोर समर्थन मिल रहा है. इसके साइडलाइन में पीएम मोदी और प्रेसिडेंट पुतिन की बातचीत भी वैश्विक परिपेक्ष में काफी मायने रखती है. कयास ये भी लगाए जा रहे हैं की ब्रिक्स के साइडलाइन में पीएम मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की भी अहम मुलाकात हो सकती है जो दोनों देशों के रिश्ते पर जमी बर्फ को पिघला सकता है.

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ब्रिक्स शिखर सम्मेलन: एक महत्वपूर्ण मंच

ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, और दक्षिण अफ्रीका) का यह 16वां शिखर सम्मेलन एक महत्वपूर्ण मंच प्रदान करता है, जहां सदस्य देश वैश्विक विकास, सुरक्षा, और सहयोग से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर विचार-विमर्श करेंगे. इस वर्ष के शिखर सम्मेलन में रूस की अध्यक्षता में बहुपक्षीय सहयोग को और सुदृढ़ बनाने पर विशेष जोर दिया जाएगा. शिखर सम्मेलन में विभिन्न वैश्विक चुनौतियों, जैसे कि आर्थिक असमानता, जलवायु परिवर्तन, और आतंकवाद से निपटने के उपायों पर चर्चा की जाएगी.

प्रधानमंत्री मोदी का दौरा: बहुपक्षीय और द्विपक्षीय संबंधों को मजबूती

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह दौरा केवल ब्रिक्स के संदर्भ में ही नहीं, बल्कि भारत और अन्य ब्रिक्स सदस्य देशों के साथ द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत करने का अवसर भी प्रदान करेगा. सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ब्रिक्स सदस्य देशों के प्रमुखों के साथ द्विपक्षीय वार्ता भी करेंगे, जिससे आर्थिक और सामरिक सहयोग को और विस्तार देने की संभावनाएं तलाशी जाएंगी.

भारत, जो वैश्विक मंच पर विकासशील देशों की आवाज़ को बढ़ाने के लिए सक्रिय रहा है, इस शिखर सम्मेलन में भी प्रमुख भूमिका निभाएगा. ब्रिक्स के विस्तार और इसमें नए सदस्यों की भागीदारी के साथ, यह समूह विकासशील देशों की समस्याओं को बेहतर ढंग से समझने और उनका समाधान निकालने के लिए तैयार है. इस साल, ब्रिक्स में सऊदी अरब, ईरान, इथियोपिया, मिस्र, और संयुक्त अरब अमीरात जैसे नए सदस्य जुड़े हैं, जिनके साथ मिलकर यह समूह वैश्विक आर्थिक और राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित करने में और भी प्रभावशाली हो गया है.

ब्रिक्स का संक्षिप्त इतिहास

ब्रिक्स का गठन 2006 में रूस, भारत, और चीन के नेताओं की बैठक के बाद हुआ था, जो सेंट पीटर्सबर्ग में जी8 आउटरिच समिट के मौके पर आयोजित हुई थी. 2010 में दक्षिण अफ्रीका के शामिल होने के बाद, इस समूह को ब्रिक्स नाम दिया गया. आज, ब्रिक्स दुनिया की लगभग 45% आबादी का प्रतिनिधित्व करता है, और इसके सदस्य देशों की सम्मिलित जीडीपी लगभग 28.5 ट्रिलियन डॉलर है, जो वैश्विक अर्थव्यवस्था का करीब 28% है.

ब्रिक्स के तहत दो प्रमुख तंत्र काम करते हैं – एक, नेताओं और मंत्रियों के बीच आपसी हित के मुद्दों पर विचार-विमर्श, और दूसरा, व्यापार, वित्त, स्वास्थ्य, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, और कृषि जैसे क्षेत्रों में व्यावहारिक सहयोग. इसके अतिरिक्त, ब्रिक्स व्यापारिक समुदाय, महिलाओं, और शैक्षणिक संगठनों के बीच भी सहयोग को प्रोत्साहित करता है.

भारत की भूमिका और प्राथमिकताएं

भारत ने हमेशा से ब्रिक्स को एक मजबूत और प्रभावशाली मंच बनाने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. 2021 में भारत की अध्यक्षता में ब्रिक्स के 15वें वर्ष का जश्न मनाया गया था, और उस समय “बहुपक्षीय प्रणाली में सुधार” और “तकनीकी और डिजिटल साधनों का उपयोग” जैसे प्रमुख मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया गया था. भारत ब्रिक्स के विस्तार का समर्थन करता है और नए सदस्यों को समूह में सुगम और सुव्यवस्थित तरीके से शामिल करने की प्रक्रिया में सहयोग कर रहा है.

शिखर सम्मेलन का महत्व

इस शिखर सम्मेलन के दौरान, ब्रिक्स के सदस्य देश भविष्य की चुनौतियों से निपटने के लिए अपनी सामूहिक क्षमता को मजबूत करने के उपायों पर चर्चा करेंगे. इसके साथ ही, नए सदस्यों के साथ समूह के सहयोग तंत्र को कैसे बढ़ाया जाए, इस पर भी चर्चा होगी. ब्रिक्स नई विकास बैंक, ब्रिक्स कॉन्टिजेंट रिज़र्व अरेंजमेंट, और ब्रिक्स वैक्सीन अनुसंधान एवं विकास केंद्र जैसे सहयोग के प्रमुख उदाहरणों के साथ आगे बढ़ रहा है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह दौरा न केवल भारत-रूस संबंधों को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने का अवसर प्रदान करेगा, बल्कि वैश्विक मंच पर भारत की कूटनीतिक स्थिति को भी मजबूत करेगा जिसके आउटकम पर दुनिया की नजरें टिकी हैं.


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