खबर शहर , प्लास्टिक सिटी: गड्ढे में डूबी सड़क से नहीं जा पा रहीं बड़ी गाड़ियां, राहगीर हो रहे परेशान – INA

होना तो यह चाहिए था कि प्लास्टिक सिटी में औद्योगिक गतिविधियां जोर पकड़तीं। यहां तैयार होने वाले उत्पाद देश-प्रदेश के अलग-अलग हिस्साें तक भेजे जाते। उसके लिए यहां की सड़कों पर गाड़ियां फर्राटा भरतीं। जबकि हकीकत यह है कि 18 साल बाद भी ऐसा कुछ भी नहीं हो सका है। अब तो गड्ढों में डूबी सड़क पर आसपास के वाहनों का संचालन भी बंद हो चुका है।

अब से करीब दो दशक पहले जिस जमीन पर औद्योगिक क्रांति का सपना देखा गया था, वहां पर औद्योगिक इकाई का शुरू होना भी सपना ही हो गया है। अब से 18 वर्ष पहले वर्ष 2006 में जिस उम्मीद से औद्योगिक क्षेत्र का खाका तैयार कर उसे बाद में प्लास्टिक सिटी का नाम दिया गया, वहां हर गुजरता साल उसे विकास से लगातार दूर करता जा रहा है। प्लास्टिक सिटी को आकर्षक बनाने के लिए वहां की जिस मुख्य सड़क को फोरलेन बनाकर नजीर के रूप में पेश किया गया था, वह पूरी तरह से बेदम हो चुकी है।

एक दशक से भी पहले बनी यह सड़क अब इस लायक भी नहीं है कि यहां कोई पैदल चल सके। बनाने में मानक की हुई अनदेखी और उसके बाद देखरेख और मरम्मत के अभाव में दो किलोमीटर लंबी यह फोरलेन सड़क अब किसी भी कोण से सड़क नहीं दिखती है। सड़क के गड्ढों में भी गड्ढे हो चुके हैं। यही वजह है कि दिबियापुर-औरैया मुख्य मार्ग को कंचौसी से जोड़ने वाली इस सड़क पर अब बड़ी गाड़ियों का संचालन पूरी तरह से ठप हो चुका है। आसपास के लोग हिम्मत जुटाकर दोपहिया से गुजरते हैं, लेकिन उन्हें भी कई बार गड्ढों से बचने में गिरकर चोटहिल होना पड़ता है। नतीजा यह है कि इस सड़क पर हर समय सन्नाटा ही पसरा रहता है।


क्या है प्लास्टिक सिटी
औरैया-दिबियापुर रोड से कंचौसी जाने वाली सड़क के करीब यूपीएसआईडीसी की मदद से वर्ष 2006 में 331.58 एकड़ जमीन चिह्नित कर इसे औद्योगिक क्षेत्र का नाम दिया गया। 2012 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इसे प्लास्टिक सिटी का नाम दिया। मकसद था यहां प्लास्टिक से जुड़े उत्पाद तैयार होंगे। औद्योगिक माहौल बनेगा। बड़े निवेशक आएंगे। स्थानीय युवाओं को रोजगार मिलेगा। पलायन रोकने में मदद मिलेगी। आर्थिक हालात बेहतर होंगे। इसके लिए औद्योगिक के अलावा आवासीय टाउनशिप, बाजार, बैंक, स्कूल, छात्रावास, पार्क का प्रस्ताव बना। अब तक प्लास्टिक सिटी गुलजार नहीं हो सकी है।

विभागों में चल रहा चिट्ठी-चिट्ठी का खेल
प्लास्टिक सिटी की मुख्य सड़क की बदहाली को दूर कर उसकी सूरत संवारने के लिए सिर्फ फाइल पर ही माथापच्ची हो रही है। सड़क कौन और कब बनाएगा इसकी जिम्मेदारी तय हो चुकी है, लेकिन बनाने के लिए खर्च होने वाली रकम को लेकर फिलहाल विभागों के बीच पत्राचार हो रहा है। यूपीसीडा ने पीडब्ल्यूडी से सड़क बनाने को कहा है। पीडब्ल्यूडी ने निर्माण के लिए 29 करोड़ रुपये का खाका बनाकर भेज रखा है। अब तक इससे जुड़ी कोई रकम यूपीसीडा की ओर से जारी नहीं हो सकी है। ऐसे में सड़क को संवारने का इंतजार लंबा होता जा रहा है।

 


प्लास्टिक सिटी का लेखाजोखा
– 2006 में 331.58 एकड़ भूमि का अधिग्रहण हुआ था।
– 274.4 एकड़ जमीन पर इंडस्ट्रियल यूनिट का प्रस्ताव
– 84.93 एकड़ में रेजिडेंशियल व इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलेपमेंट का खाका
– 337 प्लॉट में से 175 का ही आवंटन हो सका है।
– 18 साल बाद भी 162 प्लॉटों का आवंटन नहीं हो सका है।

प्लास्टिक सिटी की मुख्य 2.25 किमी लंबी सड़क को नए सिरे से बनाने के लिए यूपीसीडा को प्रस्ताव भेजा गया है। इसमें 29 करोड़ 43 लाख रुपये का खर्च होगा। यह रकम वहां से मिलते ही काम शुरू करवाया जाएगा। – शिवकांत तिवारी, एई, पीडब्ल्यूडी औरैया

प्लास्टिक सिटी की मुख्य सड़क पीडब्ल्यूडी के कार्यक्षेत्र में आती है। इसका निर्माण उसी को करना है। पीडब्ल्यूडी के अधिकारियों ने भी उसे बनाने की हामी भरी है। यूपीसीडा प्लास्टिक सिटी की अंदरूनी सड़क बनाएगी। – मंसूर कटियार, आरएम यूपीसीडा कानपुर


Credit By Amar Ujala

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