यूपी- Majhawan By-election: मझवां के जातीय समीकरण में उलझे सियासी दल, किसका खेल बिगाड़ेगी बसपा? – INA

यूपी में मिर्जापुर की मझवां विधानसभा सीट पर 20 नवंबर को उपचुनाव के लिए मतदान होगा. सपा यहां जातीय गोलबंदी और रोजगार के मुद्दे को धार दे रही है. बीजेपी कानून व्यवस्था और ध्रुवीकरण के भरोसे चुनावी वैतरणी पार करने की कोशिश में है. जबकि बसपा बीडीएम (ब्राह्मण, दलित और मुस्लिम) फॉर्मूले पर चल रही है.

मझवां के गहिरा इलाके में दलित बस्ती के लोगों के साथ सपा नेता रमेश बिंद बेहद संजीदा होकर समझाने की कोशिश कर रहे हैं. उनको पता है कि लगातार तीन बार के विधायक बनने में बसपा के साथ-साथ दलित वोटरों का कितना योगदान था. मतदान से पहले रमेश बिंद उसी संबंध को जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं. उनको पता है कि मझवां में सपा का खाता खुलवाना आसान नहीं है.

बीजेपी याद दिला रही सपा के पिछले कार्यकाल

यहां सपा आज तक एक भी चुनाव नहीं जीती है. बीजेपी सूबे के अपने सबसे बड़े नेता की लाइन पर ही चुनाव को ले जाने की कोशिश में है. दो दिन पहले सीएम योगी ने ध्रुवीकरण, परिवारवाद और कानून व्यवस्था पर सपा के खिलाफ जो माहौल बनाया, पार्टी कैंडिडेट शुचिस्मिता मौर्या से लगाकर पार्टी के सभी बड़े नेता उसको ही पार्टी लाइन मानकर आगे बढ़ रहे हैं.

बीजेपी के नेता और कार्यकर्ता सीएम योगी के बयान ‘बटेंगे तो कटेंगे’ और ‘सपा प्रोडक्शन हाउस में पैदा होते हैं माफिया’ जैसे नारों को लोगों के बीच कई बार दोहरा रहे हैं. बीजेपी के लोग सरकार की उपलब्धियों से ज़्यादा सपा के पिछले कार्यकाल की याद दिला रहे हैं.

इन मुद्दों को धार देने की कोशिश कर रही सपा

सपा जातीय गोलबंदी और रोजगार के मुद्दे को धार देने की कोशिश में जुटी है. सपा की सारी उम्मीदें और भरोसा रमेश बिंद से ही हैं, जो तीन बार लगातार यहां से विधायक रह चुके हैं. उनकी बिटिया डॉक्टर ज्योति बिंद यहां से सपा की उम्मीदवार हैं. सीएम योगी के बाद 17 नवंबर को अखिलेश यादव की यहां एक बड़ी जनसभा होने जा रही है.

सपा के नेता और कार्यकर्त्ता ‘एक रहोगे तो सेफ रहोगे’ की काट रोजगार जैसे मुद्दे में ढूंढ रहे हैं. क्षेत्र के लोगों से सपा के प्रचार कर रहे कार्यकर्ता रोजगार और महंगाई जैसे कोर इश्यू पर वोट डालने की अपील कर रहे हैं. स्थानीय सड़कों और मूलभुत सुविधाओं की दुर्दशा बताना भी नहीं भूलते.

इस समीकरण से बसपा लगातार तीन चुनाव जीती

बसपा के दीपक तिवारी ब्राह्मण और दलित बस्ती में चौपाल लगाकर जातीय समीकरण साधने की कोशिश में हैं. बसपा की स्ट्रेटजी है कि ब्राह्मण, दलित और मुस्लिम के साथ-साथ अन्य जातीय समूह में भी थोड़ी सेंध लगा ली जाए तो मझवां में हाथी दौड़ सकता है. इसी समीकरण के सहारे बसपा यहां से लगातार तीन चुनाव जीती लेकिन तब के बसपा नेता रमेश बिंद अब सपा में हैं.

मझवां में करीब 3.95 लाख मतदाता 20 नवंबर को अपना विधायक चुनेंगे. नब्बे के बाद से अब तक मझवां में जो वोटिंग पैटर्न रहा है उसमें ज़्यादातर दो फैक्टर रहे हैं. एक पार्टी के साथ वैचारिक जुड़ाव और दूसरा कैंडिडेट की जाति. बीजेपी और बसपा ज्यादातर इसी आधार पर चुनाव जीतते रहे हैं.

मझवां में ये तीन वोट बैंक सबसे महत्वपूर्ण

मझवां में ब्राह्मण, बिन्ंद और दलित ये तीन वोट बैंक सबसे महत्वपूर्ण हैं. ये जिसके साथ गए, उसकी जीत निश्चित है. कुल मतदाताओं का ये लगभग 57% है. इसके बाद करीब 40% वोटर यादव, मुस्लिम, मौर्य, पटेल, पाल और भूमिहार समाज से हैं. 3% अन्य समाज के मतदाता हैं.

रमेश बिंद अपने समाज को एकजुट रखने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाए हुए हैं. उनकी इस मुहीम में भदोही से बीजेपी सांसद डॉक्टर विनोद बिंद पलीता लगा रहे हैं. हालांकि बिंद समाज में रमेश की रॉबिनहुड छवि काफी हद तक सपा के लिए मददगार साबित हो रही है. विश्लेषकों का मानना है कि बिंद वोटरों के अलावा मुस्लिम-यादव वोट जोड़ लेने और बसपा के साथ जाने वाले ब्राह्मण वोटरों की वजह से बीजेपी को होने वाले नुकसान का लाभ भी सपा को ही मिलेगा. इस तरह मझवां में सपा इतिहास बनाएगी.

किसके साथ रहेंगे ये दोनों वोटबैंक?

बीजेपी बिंद, ब्राह्मण, मौर्या, पटेल, पाल और ठाकुर वोट के सहारे है. हालांकि, बीजेपी मेजोरिटेरियन थ्योरी को लेकर एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे जैसा नरेटिव भी सेट कर रहे हैं. बसपा जिस बीडीएम के सहारे चुनाव में फर्क करने की कोशिश कर रही है. दीपू तिवारी के जरिए ब्राह्मण वोट बैंक में सेंध लगाने और अपने परंपरागत दलित वोटरों के साथ मुस्लिम वोटबैंक में भी बसपा घुसने का जरिया बना रही है.

बिंद और ब्राह्मण एक साथ जिसके साथ रहे हैं वो चुनाव जीता है. चाहे वो बीजेपी हो या बसपा या फिर निषाद पार्टी. इस बार ये दोनों वोटबैंक किसके साथ रहेंगे? मझवां की जीत का पेंच इसी सवाल में उलझा है!


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