आस्था – Vat Savitri Vrat Puja Time : 5 जून को शाम 6:57 से अमावस्या, 6 को रखा जाएगा वट सावित्री व्रत, अभिजीत मुहूर्त में सुबह 11: 36 से 12 14 तक पूजन विशेष फलदायक – #INA
तीन दिन बाद गुरुवार को वट सावित्री पूजा है। सुहाग की सलामती की कामना के लिए सुहागिन 6 जून को वट सावित्री का व्रत करेंगी। अमावस्या के दिन पहले आ जाने के कारण 6 जून यानी गुरुवार की अहले सुबह ब्रह्म मुहूर्त से पूजन का समय शुरू है। सबसे अधिक फल अभिजीत मुहूर्त में पूजन का है। गुरुवार की सुबह 11: 36 से 12: 14 बजे तक अभिजीत मुहूर्त पूजन विशेष फलदायक होगा। व्रत के लिए बाजारों में खरीदारी तेज हो गई है।
इस बार पांच जून की शाम 6:57 से ही है अमावस्या, छह की अहले सुबह से पूजन का समय
आचार्य नवीनचंद्र मिश्र वैदिक ने बताया कि शुद्ध अमावस्या में वट सावित्री पूजा होती है। ऋषिकेश, महावीर व हनुमान आदि पंचागों के अनुसार इस बार व्रत से एक दिन पहले 5 जून की शाम 6:57 बजे अमावस्या का प्रवेश हो रहा है। दूसरे दिन 6 जून गुरुवार की सुबह ब्रह्म मुहूर्त से लेकर शाम 5:38 बजे तक अमावस्या है। बुधवार को महिलाओं ने व्रत को लेकर नहाय-खाय करेंगी। सोलह शृंगार के साथ सुहागिन वट वृक्ष के तने में रंगीन कच्चा सूत लपटते हुए प्रदक्षिणा (फेरी) करेंगी।
पूजा के दौरान सुहागिन सुनेंगी सावित्री की कथा
व्रत की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए आचार्य नवीन चंद्र मिश्र ‘वैदिक ने बताया कि सुहागिन अखंड सौभग्य की कामना को लेकर गहरी आस्था के साथ व्रत करती हैं। पूजन के दौरान महिलाएं सावित्री की कथा सुनती हैं। पूजा में वट वृक्ष के तने में कच्चा सूत लपटते हुए प्रदक्षिणा की जाती है। वट वृक्ष के नहीं रहने पर दीवार पर वट वृक्ष की तस्वीर बनाकर भी पूजन करने का विधान है। पूजन के बाद सुहाग की सामग्री और एक पंखा दान करना उत्तम होता है।
इस व्रत का महत्व करवा चौथ के व्रत जितना होता है
इस व्रत का महत्व करवा चौथ के व्रत जितना होता है। इस दिन व्रत रखकर सुहागिनें वट वृक्ष की पूजा लंबी आयु, सुख-समृद्धि और अखंड सौभाग्य के लिए करती हैं। जगन्नाथ मंदिर के पंडित सौरभ कुमार मिश्रा ने बताया कि वटवृक्ष के मूल में ब्रह्मा, मध्य में जनार्दन और अग्र भाग में भगवान शिव निवास करते हैं। वट सावित्री व्रत के एक दिन पूर्व महिलाएं नये कपड़े पहन सोलहों श्रृंगार करती हैं। हाथ में मेहंदी रचाती है। उपवास रख महिलाएं पांच तरह के फल-पकवान आदि से डलिया भरती हैं।
दूसरे दिन सुबह वट वृक्ष के पास डलिया खोलकर बांस के पंखे पर पकवान आदि रखकर सावित्री और सत्यवान की कथा कही और सुनी जाती है। वट वृक्ष के पेड़ में कच्चा धागा लपेटकर तीन या पांच बार परिक्रमा की जाती है और वट वृक्ष को जल देती हैं तथा कच्चा धागा गले में पहनती हैं। उधर शनिवार को बांस डलिया 250 से 400 रुपये जोड़ा, बांस पंखा 70 से 80 रुपये जोड़ा, चरकोनी डलिया छोटा 80 से 100 रुपये जोड़ा बिक रहा था।
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