धर्म ग्रंथों का सार है श्रीमद्भागवत-श्रीदास महराज
🔵 राधा तत्व पर विराजित है श्रीमद्भागवत
🔴श्रीचित्रगुप्त मंदिर में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा का चोथा दिन
कुशीनगर । अन्तर्राष्ट्रीय कथावाचक श्रीदास महराज ने के कहा कि श्रीमद् भागवत समस्त वेदों का सार है। हमारे धर्म ग्रंथों का सार ही श्रीमद्भागवत है। जीवन जीने की कला और मृत्यु का वरण कैसे किया जाए ये हमें श्रीमद्भागवत सिखाती हैं।
पडरौना नगर के श्रीचित्रगुप्त धाम स्थित श्रीचित्रगुप्त मंदिर में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के चौथे दिन कथावाचक श्रीदास महराज व्यास गद्दी से श्रद्धालुओं को कथा का रसपान करा रहे थे। उन्होंने बुधवार को राधाष्टमी पर प्रकाश डालते हुए कहा कि श्रीमद् भागवतकथा राधा तत्व पर विराजित है। अतः प्रत्येक जीव का यह प्रथम कर्तव्य है कि अधिक से अधिक समय भगवत स्मरण में व्यतीत करें, क्योंकि कलयुग में भगवान का नाम ही सर्वोपरि है। भगवान के स्मरण से आने वाली समस्त विपदाएं स्वत: ही नष्ट हो जाती है। भगवान का स्मरण अधिक से अधिक कर जीवन को धन्य बनाएं। व्यास गद्दी से कथा के वृतांत को आगे बढाते हुए कहा कि भाद्र मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन माता राधा का धरती पर जन्म हुआ था। तभी से हर साल इस दिन को राधा अष्टमी के रूप में मनाया जाता है। राधा माता गोलोक में श्रीकृष्ण के साथ रहती थीं। एक बार श्रीकृष्ण भगवान को गोलोक में राधा रानी कहीं नजर नहीं आईं। कुछ देर बाद कन्हैया अपनी सखी विराजा के साथ घूमने चले गए। यह बात जब राधा रानी को मालूम हुई, तो उन्हें बहुत गुस्सा आया और वो सीधे कन्हैया के पास पहुंची। वहां पहुंचकर उन्होंने विजारा को श्राप देकर श्रीकृष्ण को काफी भला-बुरा कहा।
राधा रानी का यह व्यवहार भगवान श्रीकृष्ण के प्रिय मित्र श्रीदामा को बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। श्रीदामा ने उसी वक्त बिना कुछ सोचे समझे राधा रानी को पृथ्वी पर जन्म लेने का श्राप दे दिया। इधर माता राधा के श्राप से श्रीकृष्ण की सखी विराजा भी नदी मे परिवर्तित होकर वहां से चली गईं। श्रीदास से श्रापित होने के बाद माता राधा ने श्रीदामा को राक्षस कुल में पैदा होने का श्राप दिया। राधा जी द्वारा दिए गए श्राप की वजह से ही श्रीदामा का जन्म शंखचूड़ दानव के रूप में हुआ। आगे चलकर वही दानव, भगवान विष्णु का परम भक्त बना जिसे महादेव के हाथो मोक्ष की प्राप्ति हुई। दूसरी तरफ श्रीदास के श्राप से , राधा रानी ने पृथ्वी पर वृषभानु के घर पुत्री के रूप में जन्म लिया। कथा के दौरान ही राधाष्टमी का उत्सव मनाया गया है। मंदिर में आरती के बाद मंगला झांकी दर्शन खोले गए और राधारानी को दूध, दही, घी, शहद, मिश्री से पंचामृत अभिषेक किया गया। इसके बाद नवीन पीत (पीली) पोशाक और विशेष अलंकार श्रृंगार धारण कराए गए। पंजीरी, लड्डू, मावा की बर्फी का भोग लगाया गया।