जो श्रीकृष्ण ऊरुक्मणी के विवाह उत्सव में शामिल होते हैं उनकी वैवाहिक समस्या दूर हो जाती है दूर- श्रीदास जो श्रीकृष्ण ऊरुक्मणी के विवाह उत्सव में शामिल होते हैं उनकी वैवाहिक समस्या दूर हो जाती है दूर- श्रीदास

🔵श्रीचित्रगुप्त धाम स्थित श्रीचित्रगुप्त मंदिर मे आयोजित श्रीमद्भागवत कथा का छठवा दिन

कुशीनगर । श्रीमद् भागवत कथा के छठवें दिन अन्तर्राष्ट्रीय कथावाचक श्रीदास महराज ने गोवर्धन पूजा, छप्पन भोग, महारास लीला, रासलीला में भगवान शंकर का आना एवं श्री कृष्ण रुक्मणी विवाह के प्रसंग का सुंदर वर्णन किया। उन्होंने रास पंच अध्याय का वर्णन करते हुए कहा कि महारास में पांच अध्याय हैं। उनमें गाए जाने वाले पंच गीत  भागवत के पंच प्राण हैं। जो भी ठाकुरजी के इन पांच गीतों को भाव से गाता है, वह भव सागर पार हो जाता है। उन्हें वृंदावन की भक्ति सहज प्राप्त हो जाती है। 

कथावाचक श्रीदास महराज पडरौना नगर के श्रीचित्रगुप्त धाम स्थित श्रीचित्रगुप्त मंदिर में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के छठवे दिन श्रद्धालुओं को कथा का रसपान करा रहे थे। उन्होंने कहा कि महारास में भगवान श्रीकृष्ण ने बांसुरी बजाकर गोपियों का आह्वान किया और महारास लीला द्वारा ही जीवात्मा का परमात्मा से मिलन हुआ।भगवान श्रीकृष्ण रुक्मणी के विवाह की झांकी ने उपस्थित जनो को खूब आनंदित किया। रुक्मणी विवाह के आयोजन ने श्रद्धालुओं को झूमने पर मजबूर कर दिया। इस दौरान कथा मंडप में विवाह का प्रसंग आते ही चारों तरफ से श्रीकृष्ण-रुक्मणी की जयकारे के साथ  जमकर फूलों की बरसात हुई। व्यास गद्दी से  श्रीमद्भागवत कथा के महत्व को बताते हुए श्रीदास महराज ने कहा कि जो भक्त प्रेमी श्रीकृष्ण-रुक्मणी के विवाह उत्सव में शामिल होते हैं उनकी वैवाहिक समस्या हमेशा के लिए दूर हो जाती है। कथा वाचक ने कहा कि जीव परमात्मा का अंश है। इसलिए जीव के अंदर अपार शक्ति रहती है। यदि कोई कमी रहती है, तो वह मात्र संकल्प की होती है। 

भगवान की अनेक लीलाओं में श्रेष्ठतम श्रीकृष्ण रासलीला के प्रसंग को श्रेष्ठतम लीला बताते हुए कहा कि रास तो जीव का शिव के मिलन की कथा है। यह काम को बढ़ाने का नहीं, काम पर विजय प्राप्त करने की कथा है। इस कथा में कामदेव ने भगवान शिव पर अपने सामर्थ्य के साथ आक्रमण किया लेकिन वह  भगवान शिव को पराजित नहीं कर पाये और उन्हे परास्त होना पडा। गोपी गीत पर बोलते हुए कथा व्यास ने कहा जब-जब जीव में अभिमान आता है भगवान उनसे दूर हो जाते हैं। जब कोई भगवान को न पाकर विरह में होता है तो श्रीकृष्ण उस पर अनुग्रह करते है उसे दर्शन देते है। भगवान श्रीकृष्ण के विवाह प्रसंग को सुनाते हुए बताया कि भगवान श्रीकृष्ण का प्रथम विवाह विदर्भ देश के राजा की पुत्री रुक्मणि के साथ संपन्न हुआ। कथा वाचक  ने भगवान शंकर का रासलीला में शामिल होने का विस्तार से वर्णन किया, उन्होने  कहा कि भगवान भक्त का धन, संपत्ति नहीं देखते हैं, वह केवल उसका निस्वार्थ भाव देखते है। इसे देखकर ही आशीर्वाद देते हैं।  उन्होंने कृष्ण- सुदामा प्रसंग का वर्णन किया। सुदामा भगवान के भक्त बने। गरीब होने के बाद भी सुदामा ने भगवान से कभी कुछ नहीं मांगा। यथाशक्ति निस्वार्थ भाव से कृष्ण की भक्ति की। भगवान इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने सुदामा को अपना मित्र बना लिया।

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