खबर फिली – Singham Again : सब्जी का वो ठेला, जहां बासी माल को पानी छिड़ककर हरा रखा गया है! – #iNA @INA
बीते दिनों Singham Again देखी, तो छुटपन में मिली एक सीख याद आ गई. जब बाजार सब्जी लेने जाते, तो सिखाया जाता – जिस ठेले पर कई सारी सब्जियां हों, वहां से सब्जी मत खरीदना. जहां सिर्फ एक सब्जी हो, वहां से खरीदना. हमें लगता कि कौन अलग-अलग जगह जाए, हम एक ही ठेले से सारी सब्जी खरीद लाते हैं. घर आते, खूब डांट पड़ती. पहले तो सब्जी ताजी नहीं होती; दूसरे महंगी भी होती.
फिर समझाया जाता – जिस ठेले पर एक ही सब्जी है, ज्यादा संभावना है कि वो किसी किसान का ठेला हो. वो अपने खेत से ताजी सब्जी तोड़कर लाया हो. उसकी सब्जी अच्छी भी होगी और सस्ती भी. इसके उलट जिस ठेले पर कई सब्जियां हैं, उसने मंडी जाकर इधर उधर से सब्जियां इकट्ठी कर ली होंगी, और यहां बेच रहा है. चूंकि वो अपनी सब्जियों पर पानी छिड़कता रहता है, इसलिए वो बराबर हरी बनी हुई हैं.
बासी सब्जियों का ताजापन
अजय देवगन की सिंघम अगेन भी वैसा ही सब्जी का ठेला साबित होती है, जहां नाना प्रकार की सब्जियां हैं. ये महंगी भी बहुत हैं और अच्छी भी नहीं हैं. रोहित शेट्टी इसमें ग्रैंडनेस का पानी लगातार छिड़कते रहते हैं, इसलिए ये देखने में ताजी लग रही है, पर है बासी. लेकिन मेरे जैसे लोग एक ही जगह सबकुछ खरीद लेने की चाहत में इस ठेले पर भीड़ लगाए हुए हैं, घर जाकर इन्हें डांट शर्तिया पड़ने वाली है.
‘सिंघम अगेन’ में ठगे जाने के बाद ठगी का एहसास होता है!
सिंघम अगेन में क्या है? कोई नयापन है? कोई ताजगी है? सब वही पुराना माल अच्छे से दिखने वाले सेल्सपर्सन्स के हाथों बेचने की कोशिश की गई है. इन लोगों ने बढ़िया बॉडी बनाई हुई है, अच्छे कपड़े पहने हैं और बकैती करने में एक्सपर्ट हैं. इसलिए जनता मूर्ख बन जा रही है. उसे ठगे जाने के बाद एहसास हो रहा है कि फ्रॉड हो चुका है. हम सबने जब ‘सिंघम’ देखी थी, तो ये भी कोई महान पिक्चर नहीं थी. बढ़िया मसाला फिल्म थी, पर देखकर मजा आया था. ‘सिंघम अगेन’ में आप बोर होते हैं. इस फिल्म में सिर्फ भव्यता है. इसी भव्यता ने अच्छी खासी फ्रेंचाइजी की भद्द पीट दी है.
‘नौ’ राइटर्स ने मिलकर ‘नो’ एंटरटेनमेंट प्लान किया है!
ये एक नया ट्रेंड चला है, बढ़िया लोकेशन लो. स्टार्स की फौज खड़ी कर दो, खूब सारा एक्शन डालो और कहानी पर कोई काम ही न करो. ये तब है, जब ‘सिंघम अगेन’ के लिए 9 लोगों को राइटिंग क्रेडिट्स दिए गए हैं. एक और राइटर जोड़ देते, तो दशाशन हो जाते. वैसे भी ‘रामायण’ से प्रेरित होकर लिख ही रहे थे. और लोग भी फिल्म के लिए रावण सरीखे ही साबित हुए हैं. अपना ही नुकसान खुद किया है.
अब सोचिए, 9 लोगों ने मिलकर इतनी बोगस कहानी और स्क्रीनप्ले लिखा है, जिसका कोई जवाब नहीं. हालांकि इसमें से 8 लोगों की कोई खास गलती नहीं है. सबकुछ रोहित शेट्टी का किया-धरा है. उन्होंने एक ही फिल्म में बहुत सारे एक्टर्स ले लिए. अपने कॉप यूनिवर्स के चक्कर में अजय देवगन की फिल्म को प्रयोगशाला बना दिया. इमैजिन करिए, एक ही पिक्चर में अजय देवगन हैं. उसी में दीपिका पादुकोण, रणवीर सिंह, टाइगर श्रॉफ, अर्जुन कपूर, करीना कपूर, अक्षय कुमार और कुछ सेकंड्स के लिए सलमान खान भी हैं. ये ऐसे स्टार्स हैं, जिनको लेकर अलग-अलग फिल्में बनाई जा सकती हैं. सबको एक साथ एक ही फिल्म में उचित मात्रा में नहीं रखेंगे, तो खराब कॉम्बिनेशन बनेगा ही.
रोहित शेट्टी चूक गए!
‘सिंघम अगेन’ के स्टार्स को वैल्यू देने के चक्कर में फिल्म की वैल्यू निम्न हो गई है. दरअसल फिल्म के अलग-अलग सीन देखने में अच्छे लगते हैं. अजय देवगन गुंडों को पीट रहे हैं. टाइगर श्रॉफ कुछ अलग लेवल का एक्शन कर रहे हैं. अर्जुन कपूर की शानदार एंट्री हो रही है. अक्षय कुमार हेलीकॉप्टर पर लटककर आ रहे हैं. लेकिन फिल्म कई सारे सीन्स का कोलाज होता. कोई अलग रंग अच्छा लग सकता है, लेकिन जब इन सभी रंगों को एक साथ रखकर देखेंगे, तो एक अच्छी पेंटिंग नहीं बनती. अब इसमें रंगों की गलती तो है नहीं, गलती है पेंटर की. रोहित शेट्टी इस बार खराब पेंटर साबित होते हैं.
दीपिका पादुकोण भयंकर ओवर एक्टिंग करती हैं, और एक्शन वो कर नहीं पाती. टाइगर श्रॉफ को फिल्म में क्यों लिया था? क्या सिर्फ लड़ाई लड़ने के लिए. उनसे ठीक स्क्रीनटाइम और डायलॉग्स तो रणवीर सिंह के हिस्से आए हैं, जबकि उनका फिल्म में कैमियो है. अक्षय मामला थोड़ा बहुत साधने की कोशिश करते हैं, लेकिन वो कर ही क्या सकते थे.
अजय देवगन को भले ही अच्छा स्क्रीन टाइम दिया गया हो. वो फिल्म के हीरो हैं, बनता भी है. लेकिन उनको देखकर इस बार वैसा बाजीराव सिंघम वाला फील नहीं आता, जो कहता है – आता माजी सटकली. सलमान खान को सिर्फ फिल्म में इसलिए डाला गया है, ताकि चुलबुल पांडे को इस यूनिवर्स का हिस्सा बनाया जा सके. अगर ‘सिंघम अगेन’ जैसा ही बनाना है, तो रोहित शेट्टी को अपना ये विचार त्याग देना चाहिए. साथ ही जैसा काम इस फिल्म में दीपिका ने किया है या उनसे करवाया गया है, फीमेल कॉप फिल्म के आइडिया को भी तिलांजलि दे देनी चाहिए.
अजय देवगन की फिल्म में कहां हुई भूल?
रोहित शेट्टी अपनी फिल्मों में वाइब्रेंट कलर्स और जीवंतता के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने सिंघम अगेन को आजकल की फिल्मों जैसा बनाने के लिए इस चीज से भी समझौता किया है. लो-की लाइटिंग है. थ्रिल पैदा करने के लिए खूब सारी रेड लाइट्स का इस्तेमाल किया गया है. अरे भैया आप रोहित शेट्टी हैं, अनुराग कश्यप क्यों बनना है! एडिटिंग में शार्प कट्स लगाकर स्क्रीनप्ले की कमजोरी छिपाने की कोशिश की गई है. खूब सारे ड्रोन शॉट्स डालकर किसी लोकेशन की सुंदरता एस्टैब्लिश करने का प्रयास हुआ है. लेकिन कहानी, एक्टिंग, डायलॉग्स और स्क्रीनप्ले पर कोई खास प्रयास नहीं किया गया है.
जब आप फिल्म देखकर बाहर निकलते हैं, आपके दिमाग में कोई खास सीन या कोई खास डायलॉग चस्पा नहीं रहता. कम से कम मैं तो इस फिल्म को भूल जाना चाहता हूं. अब सोचिए जब टाइगर श्रॉफ फिल्म में अपने मार्शल आर्ट का जौहर दिखा रहे हैं, ठीक उसी वक्त मेरे अगल-बगल बैठे लोग खर्राटे भर रहे थे. इसे एक्शन करने वाले की हार तो नहीं कहेंगे. रोहित शेट्टी को दोबारा सोचना होगा. रोहित की ‘गोलमाल’ फ्रेंचाइज का मैं फैन रहा हूं. इसलिए चाहता हूं कि वो अपनी अगली कॉप यूनिवर्स की पिक्चर की कहानी पर काम करें. ‘सिंघम अगेन’ बॉक्स ऑफिस पर ब्लॉगबस्टर भी हो जाएगी, पर एक सिनेप्रेमी के तौर पर ये मेरे जैसों के दिलों में जगह कतई नहीं बना पाएगी.
इसलिए रोहित को अब तमाम तरह की सब्जी एक साथ बेचने की जगह, कोई एक सब्जी अपने ही खेत में उगाकर बेचनी चाहिए. ये अच्छी भी होगी, सस्ती भी होगी और इसे खाने में स्वाद भी आएगा. ‘सिंघम अगेन’ महंगी है, इसमें स्वाद भी नहीं है. इसके सहारे रोहित शेट्टी के ठेले पर अगली बार जाने से कोई भी कतराएगा.
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