दुनियां – लेबनान में घुसकर वार करना गाजा जितना नहीं आसान, इजराइल के आड़े खड़े हुए दो ताकतवर पश्चिमी देश – #INA

करीब 11 महीनों से चल रहे इजराइल हिजबुल्लाह तनाव ने नया मोड़ ले लिया है. पिछले हफ्ते हुए पेजर अटैक और अब इजराइल द्वारा लेबनान में किए गए बड़े हमलों ने दुनिया भर की चिंता बढ़ा दी है. हाल की इजराइली स्ट्राइक में लेबनान में सैकड़ों नागरिकों की मौत हुई है, जिसके बाद फ्रांस ने लेबनान की स्थिति पर चर्चा करने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आपातकालीन बैठक बुलाने की अपील की है. उधर, अमेरिका ने भी ग्राउंड इंवेजन की कार्रवाई को लेकर विरोध जताया है.
फ्रांस के विदेश मंत्री जीन-नोएल बैरोट ने सोमवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा को बताया, “मैंने अपील की है कि इस हफ्ते लेबनान पर सुरक्षा परिषद की आपातकालीन बैठक आयोजित की जाए.” साथ ही उन्होंने सभी पक्षों से संघर्ष से बचने का आह्वान किया, बैरोट ने कहा की जंग सभी के लिए विनाशकारी होगा, खासकर लेबनानी नागरिकों के लिए. इसके अलावा अमेरिका ने भी लेबनान पर इजराइली हमले का विरोध किया है.
ऐसा पहली बार नहीं है जब इजराइल के हमलों के बाद संयुक्त राष्ट्र में बैठक बुलाई जा रही हो. गाजा पर भी कई बार बैठक बुलाई जा चुकी है, पर इजराइली कार्रवाई पर लगाम नहीं लग सकी है. लेबनान मुद्दे पर फ्रांस की आवाज को नजरअंदाज करना इजराइल के लिए आसान नहीं होगा, क्योंकि फ्रांस एक नाटो देश है और संयुक्त राष्ट्र में वीटो पावर रखता है.
लेबनान में हमलों के बाद अमेरिका भी चिंतित
अमेरिका के एक अधिकारी ने सोमवार को कहा कि लेबनान संकट को कम करने के लिए अमेरिका ठोस विचार रख रहा है, अमेरिका ने हिजबुल्लाह को निशाना बनाने के लिए इजराइल के जमीनी आक्रमण का विरोध किया है.
न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा के लिए विश्व नेताओं के आने पर अमेरिकी अधिकारी ने कहा, “हमारे पास कुछ ठोस विचार हैं, जिन पर हम इस हफ्ते सहयोगियों और भागीदारों के साथ चर्चा करने जा रहे हैं, ताकि इस पर आगे का रास्ता निकाला जा सके.”
फ्रांस लेबनान का पुराना साथी
ऐसा पहली बार नहीं है जब लेबनान पर आए किसी संकट के समय फ्रांस आगे आया हो. 2020 में लेबनान के बेरूत में हुए अमोनियम नाइट्रेट एक्सप्लोजन के समय भी फ्रांस ने लेबनान की मदद की थी. 20 सितंबर को हुए पेजर अटैक के बाद फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने व्यक्तिगत तौर पर लेबनान के प्रमुख नेताओं से संपर्क किया था.
दरअसल आजादी से पहले यह लेबनान फ्रांस के कब्जे में था. लेबनान की धर्म आधारित संसदीय व्यवस्था भी फ्रांस की ही देन है. फ्रांस ने लेबनान में कई दशकों तक शासन किया है, इसी वजह से वह इसके प्रति अपनी एक जिम्मेदारी समझता है. दोनों देशों के बीच गहरे सांस्कृतिक, राजनीतिक और आर्थिक रिश्ते हैं.
इसके अलावा लेबनान में फ्रेंच भाषा और संस्कृति का काफी प्रभाव है. लेबनान के लोग न सिर्फ फ्रेंच बोलते हैं बल्कि फ्रांसीसी शिक्षा संस्थानों में पढ़ाई भी करते हैं, ऐसे में लेबनान में शांति और स्थिरता फ्रांस के लिए बेहद अहम मानी जाती है. यही वजह है कि जब भी लेबनान में कोई मुसीबत आती है तो फ्रांस एक्टिव हो जाता है.

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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम

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