दुनियां – कजान में आज से दो दिवसीय ब्रिक्स समिट…NATO को टक्कर देने वाले संगठन की पूरी ABCD जानिए – #INA

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिवसीय रूस दौरे के लिए रवाना हो गए हैं. पीएम रूस के कजान में हो रहे 16वें BRICS समिट में हिस्सा लेंगे. इस दौरान वह रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के लीडर शी जिनपिंग समेत नेताओं से मुलाकात करेंगे. वैश्विक स्तर पर अमेरिका के दबदबे को चुनौती देने वाले इस समूह की लोकप्रियता बढ़ती जा रही है, दुनियाभर के कई देश इस समूह में शामिल होना चाहते हैं.
1990 के दशक में भारत-रूस और चीन की पहल से शुरू हुए इस गठबंधन की औपचारिक स्थापना 16 जून 2009 को हुई, तब ब्रिक्स में सिर्फ भारत, रूस, चीन और ब्राजील ही शामिल थे और इसका नाम BRIC था लेकिन इसके अगले साल 2010 में दक्षिण अफ्रीका भी इस समूह का हिस्सा बना जिसके बाद BRICS नाम पड़ा. ब्रिक्स देशों की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के कारण मौजूदा वैश्विक परिवेश में ब्रिक्स की अहमियत काफी बढ़ती जा रही है, तो चलिए जानते हैं इससे जुड़ी पूरी ABCD
न्यू वर्ल्ड ऑर्डर सेट कर रहा ब्रिक्स?
BRICS दुनिया के विकासशील देशों का एक मजबूत समूह है. पहले भारत, चीन, रूस, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका ही इसके सदस्य थे अब इसका विस्ताव किया जा रहा है. 1 जनवरी 2024 से सऊदी अरब, अर्जेंटीना समेत 6 देशों को इस समूह में जोड़ने के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई थी. हालांकि बाद में अर्जेंटीना की हाबियर मिलेई की नई सरकार ने BRICS में शामिल होने का इरादा बदल दिया.
वैश्विक और आर्थिक बदलावों के चलते तुर्किए, अजरबैजान और मलेशिया जैसे देशों ने भी BRICS में शामिल होने के लिए आवेदन दिया है. वहीं पाकिस्तान समेत दुनिया के कई देश ब्रिक्स में शामिल होने की दिलचस्पी दिखा रहे हैं.
पश्चिमी देशों के वर्चस्व को चुनौती
BRICS में आक्रामक तरीके से हो रहे विस्तार को लेकर माना जा रहा है कि रूस और चीन ब्रिक्स के जरिए एक ऐसा गठबंधन बनाना चाहते हैं जो अमेरिका के प्रभाव वाले NATO और G7 को टक्कर दे सके. मौजूदा समय में BRICS, EU को पछाड़ कर दुनिया का तीसरा ताकतवर आर्थिक संगठन बन गया है.
हालांकि रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने अपने ताजा बयान में कहा है कि BRICS बदलाव का प्रतीक है और BRICS का मकसद किसी को चुनौती देना नहीं है, भले ही इसमें पश्चिमी देश शामिल नहीं हैं लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि हम उनके विरोधी हैं.
BRICS का उद्देश्य क्या है?
दुनिया की आर्थिक नीतियों से अमेरिका का प्रभाव कम करने के लिए भारत, रूस और चीन ने ब्रिक्स की पहल की थी, इसका सबसे अहम मकसद राजनीतिक और आर्थिक सुरक्षा है. यही वजह है कि इस वक्त यह संगठन दुनिया के कई देशों का ध्यान आकर्षित कर रहा है. माना जाता है कि सऊदी अरब जैसा देश भी अमेरिका पर निर्भरता को कम करने के लिए इस संगठन का हिस्सा बना है. वहीं तुर्किए भी आर्थिक संकट से उबरने के लिए ब्रिक्स में शामिल होना चाहता है. दरअसल दुनिया की करीब 45 फीसदी आबादी का नेतृत्व करने वाले इस संगठन की वैश्विक ताकत बढ़ती जा रही है. अगर तुर्किए को ब्रिक्स में शामिल होने की मंजूरी मिलती है तो वह पहला ऐसा देश होगा जो NATO और ब्रिक्स दोनों का सदस्य होगा.
वैश्विक जीडीपी में ब्रिक्स देशों की करीब 28 फीसदी भागीदारी है, जितनी तेजी से ब्रिक्स में शामिल होने के लिए कई देश आवेदन कर रहे हैं उससे माना जा रहा है कि आने वाले समय में यह संगठन आसानी से G7 देशों को पछाड़ सकता है.
BRICS की अब तक कितनी बैठकें हुईं?
पीएम मोदी बुधवार को 16वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेंगे. इससे पहले अब तक ब्रिक्स की 15 बैठकें हो चुकी हैं. 2009 से ब्रिक्स समिट का आयोजन एक-एक कर इसके सदस्य देश करते रहे हैं. इनमें से 3 बैठकें (2020, 2021, 2022) कोरोना महामारी के दौरान वर्चुअली हुईं. वहीं भारत को अब तक 3 बार ब्रिक्स समिट की अध्यक्षता करने का मौका मिला है. भारत ने 2012, 2016 और 2021(वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए) ब्रिक्स सम्मेलन की मेजबानी कर चुका है. इस बार रूस ब्रिक्स की अध्यक्षता कर रहा है, लिहाजा रूस के कजान में दो दिवसीय ब्रिक्स समिट का आयोजन किया जा रहा है. जिस पर दुनियाभर की निगाहें टिकी हैं.
अमेरिका की कैसे बढ़ सकती है टेंशन
ब्रिक्स देशों की ओर से तेल के कारोबार के लिए डॉलर की बजाए स्थानीय मुद्रा का इस्तेमाल करने के विकल्प पर जोर दिया जा रहा है, माना जा रहा है कि रूस के कज़ान में हो रहे ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में इसे लेकर चर्चा हो सकती है. अगर ब्रिक्स देश तेल व्यापार के लिए स्थानीय मुद्रा के इस्तेमाल का फैसला करते हैं तो इससे अमेरिका को बड़ा झटका लगेगा.
अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करने के विकल्प पर कई देशों ने सहमति जताई है. रूस जो कि यूक्रेन युद्ध की शुरुआत से कई प्रतिबंधों को झेल रहा है और चीन जो वैश्विक स्तर पर अमेरिका के वर्चस्व को चुनौती देने की कोशिश में जुटा है, दोनों देश इस विकल्प को लेकर काफी सकारात्मक नजर आ रहे हैं. हाल ही में सऊदी अरब ने भी कहा था कि वह नई संभावनाओं पर बातचीत करने के लिए तैयार है. वहीं अटलांटिक काउंसिल के अनुसार वैश्विक स्तर पर अमेरिकी डॉलर भंडार की हिस्सेदारी 14% से अधिक घट चुकी है, और ऐसे समय में अगर ब्रिक्स देश डॉलर की बजाए स्थानीय करेंसी से व्यापार का फैसला लेते हैं तो इससे अमेरिका की टेंशन बढ़ सकती है.

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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम

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