दुनियां – तसलीमा नसरीन को जब छोड़ना पड़ा था भारत, मोदी सरकार ने एकबार फिर दी रहने की मोहलत – #INA
भारत सरकार ने बांग्लादेशी लेखिका तसलीमा नसरीन का रेजिडेंट परमिट बढ़ा दिया है. इससे पहले 21 अक्टूबर को उन्होंने इसके लिए गृहमंत्री को ट्वीट कर मदद भी मांगी थी. तसलीमा नसरीन ने X पर लिखा था कि ‘करीब 20 सालों से भारत मेरा दूसरा घर है.’ नसरीन ने गृह मंत्री अमित शाह से मदद मांगते हुए बताया था कि गृह मंत्रालय ने जुलाई से उनका रेजिडेंट परमिट रिन्यू नहीं किया है.
वहीं 22 अक्टूबर को नसरीन ने गृह मंत्री को टैग कर आभार जताया है, जिसके बाद माना जा रहा है कि भारत सरकार ने उनका रेजिडेंट परमिट रिन्यू कर दिया है. बांग्लादेश से निर्वासित तसलीमा नसरीन सबसे पहले 2004-05 के दौरान भारत आईं थीं लेकिन भारी विरोध के चलते 2008 में उन्हें भारत छोड़ना पड़ा था.
कौन हैं तसलीमा नसरीन?
तसलीमा नसरीन अक्सर कट्टरपंथियों के निशाने पर रहीं हैं, वह इस्लाम की आलोचना और महिला अधिकारों की वकालत करती रहीं हैं. 90 के दशक में उनके विचारों और कविताओं ने दुनियाभर का ध्यान खींचा. 1993 में आई उनकी नॉवेल ‘लज्जा’ और 1998 में लिखी आत्मकथा ‘अमर मेयबेला’ के जरिए उन्होंने बांग्लादेश में साम्प्रदायिकता और महिला अधिकारों को कुचले जाने की कहानी दुनिया को बताई. लेकिन बांग्लादेश की सरकार ने तसलीमा नसरीन की ये दोनों किताबें बाग्लादेश में बैन कर दी.
1993 में आई उनकी नॉवेल ‘लज्जा’ काफी विवादों में रही. इस किताब में तसलीमा ने भारत में बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हुई हिंसा का जिक्र किया. जिसके चलते वह इस्लामिक कट्टरपंथियों के निशाने पर आ गईं, 1993 में तसलीमा नसरीन के खिलाफ फतवा जारी किया. जिसके बाद 1994 में तसलीमा नसरीन को बांग्लादेश छोड़ना पड़ा.
निर्वासन के बाद नसरीन करीब 10 सालों तक स्वीडन, जर्मनी, फ्रांस और अमेरिका में रहीं लेकिन साल 2004-05 में वह भारत आ गईं. उन्होंने भारत में अपने रहने के लिए कोलकाता शहर को चुना, जहां से वह अपनी मिट्टी की खुशबू को महसूस कर सकें.
तसलीमा नसरीन को भारत क्यों छोड़ना पड़ा?
2004-05 के दौरान जब तसलीमा नसरीन भारत आईं तो विवादों ने उनका पीछा नहीं छोड़ा. भारत में भी कुछ कट्टरपंथी गुटों ने उनका विरोध जताया. हालांकि करीब 3 साल तक वह कोलकाता में ही रहीं, लेकिन 2007 में उनका विरोध बढ़ने लगा. तब बंगाल में बुद्धदेब भट्टाचार्य की सरकार थी और केंद्र में यूपीए.
इस दौरान कट्टर इस्लामिक गुटों ने नसरीन को भारत से निकालने की मांग करते हुए हिंसक विरोध प्रदर्शन किए, जिसके चलते तसलीमा नसरीन को कोलकाता छोड़ना पड़ा. वह पहले तो दिल्ली शिफ्ट हो गईं लेकिन भारी विरोध के कारण करीब 3 महीने बाद 2008 में तसलीमा नसरीन दोबारा अमेरिका चली गईं. अमेरिका में करीब 3 साल रहने के बाद वह 2011 में एक बार फिर भारत लौटीं और तब से अब तक वह भारत में ही रह रहीं हैं.
कट्टरपंथियों के निशाने पर रहीं तसलीमा नसरीन
हालांकि इस दौरान उन्हें बांग्लादेशी कट्टरपंथियों और अलकायदा से जुड़े चरमपंथियों से भी धमकियां मिलती रहीं हैं. जून 2015 में भी ऐसी ही धमकियों के कारण तसलीमा नसरीन भारत छोड़कर अमेरिका चली गई थीं, हालांकि इसे लेकर तसलीमा नसरीन ने कहा था कि उन्होंने भारत छोड़ा नहीं है, उन्हें भारत में जैसे ही सुरक्षित महसूस होगा वह लौट आएंगी. कुछ समय बाद वह भारत लौट आईं, लेकिन विवादों से उनका नाता जुड़ा रहा. तसलीमा नसरीन अपनी किताबों और बयानों की वजह से भारत, बांग्लादेश समेत दुनियाभर के इस्लामिक कट्टरपंथियों के निशाने पर रहती हैं.
उन्होंने हाल ही में बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के तख्तापलट पर भी उन्होंने बयान दिया था. नसरीन ने कहा था कि इस्लामिक कट्टरपंथियों ने युवाओं का ब्रेन वॉश कर उन्हें भारत-हिंदू विरोध और पाकिस्तान समर्थक बनाने की कोशिश कर रहे हैं. तसलीमा नसरीन ने कहा था कि हिंदुओं के खिलाफ हिंसा, पत्रकारों पर हमला और आतंकियों को जेल से रिहा करना दिखाता है कि बांग्लादेश का आरक्षण विरोध आंदोलन छात्रों का आंदोलन नहीं था बल्कि यह इस्लामिक जिहादियों की ओर से फंडिंग और प्लानिंग के जरिए खड़ा किया गया था.
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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम
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