दुनियां – 25 देशों का ‘इस्लामिक NATO’, बदलेगा ग्लोबल समीकरण… भारत पर क्या पड़ेगा असर? – #INA

अब तक आपने नाटो का नाम सुना होगा. मतलब नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन जो 4 अप्रैल, 1949 से अस्तित्व में है. जिस संगठन में 32 देश हैं. इसी के तर्ज पर अब नए संगठन की तैयारी चल रही है, जिसका नाम मुस्लिम नाटो हो सकता है. क्या अरब के दो बड़े दुश्मन साथ आने वाले हैं, ईरान और सऊदी अरब हाथ मिलाने वाले हैं? 25 मुस्लिम देशों का सैन्य गठबंधन इस्लामिक ‘NATO’ का गठन क्या बदलने वाले है ग्लोबल समीकरण?
मिडिल ईस्ट जंग का अखाड़ा बना हुआ है. अरब देशों में आग लगी है. अरब के ज्यादातर देश, एक दूसरे से दुश्मनी रखते हैं, लेकिन अब ये दुश्मनी खत्म हो सकती है. हो सकता है कि अब इजराइल अगर ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला करे, तो ईरान की सेना का सामना तुर्किए, इराक, या सऊदी अरब की ताकत से हो जाए. या ये भी हो सकता है कि अगर अमेरिका फिर इराक की तरह किसी मुस्लिम देश पर एटमी हथियार रखने का आरोप लगाकर मिलिट्री एक्शन ले तो दुनिया के 25 मुस्लिम बहुल आबादी वाले देशों की सेना सुपरपावर के सामने एक मुट्ठी की तरह इकट्ठी हो जाए.
दुनिया के 25 ताकतवर मुस्लिम देश मिलकर NATO जैसा मिलिट्री अलायंस बनाने की कोशिश कर रहे हैं. इसे ‘इस्लामिक NATO’, मुस्लिम NATO या मुस्लिम मिलिट्री एलायंस ऑर्गनाइजेशन यानी MMAO कहा जा रहा है, ऐसा हुआ तो NATO के बाद ये दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा सैन्य गठबंधन होगा. सऊदी अरब, पाकिस्तान, तुर्किए, मिस्त्र, संयुक्त अरब अमीरात यानी UAE, जॉर्डन, बहरीन, बांग्लादेश, अफगानिस्तान और मलेशिया जैसे 10 बड़े मुस्लिम बहुमत वाले देश नए ‘मुस्लिम NATO’ के कोर मेंबर यानी मुख्य सदस्य हो सकते हैं.
इनके अलावा इंडोनेशिया, ईरान, इराक, ओमान, कतर, कुवैत, मोरक्को, अल्जीरिया, ट्यूनीशिया और लीबिया इन 10 देशों को ‘मुस्लिम NATO’ का प्रमुख पार्टनर देश बनाया जा सकता है. कोर मेंबर और पार्टनर देशों के अलावा ‘मुस्लिम NATO’ में 5 और देशों को सदस्य बनाया जा सकता है. अजरबैजान, कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और ब्रुनेई ‘मुस्लिम NATO’ के एसोसिएट सदस्य हो सकते हैं.
दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा सैन्य गठबंधन बनेगा!
10 कोर मेंबर, 10 पार्टनर देश और 5 एसोसिएट सदस्य, यानी कुल 25 देशों की सेनाओं के बीच दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा सैन्य गठबंधन हो सकता है. ‘मुस्लिम NATO’ या ‘इस्लामिक NATO’ जैसे संगठन के गठन की तैयारी तेजी से चल रही हैं. मुस्लिम बहुल जनसंख्या वाले देशों के बीच NATO जैसे सैन्य गठबंधन का विचार तुर्किए के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोआन का है. ऐसा करके एर्दोआन अरब देशों में सबसे शक्तिशाली और मुस्लिम दुनिया का खलीफा बनाना चाहते हैं.
‘मुस्लिम NATO’ एर्दोआन के दिमाग की उपज है. कुछ दिन पहले एर्दोआन ने तुर्किए की राजधानी इस्तांबुल में इस्लामिक स्कूल एसोसिएशन के एक कार्यक्रम में बोलते हुए ‘मुस्लिम NATO’ की पूरी योजना का खुलासा किया था. एर्दोआन ने कहा था, “इजराइली अहंकार, इजराइली डाकुओं और इजराइली सरकार समर्थित आतंकवाद को रोकने वाला इकलौता जवाब इस्लामिक देशों के बीच सैन्य गठबंधन है. हमें ‘मुस्लिम NATO’ बनाना होगा.
‘मुस्लिम NATO’ बनाने के लिए एर्दोआन हर उस मुस्लिम देश से संपर्क कर रहे हैं. जिसे लगता है कि इजराइल उनके लिए खतरा बन सकता है. ‘मुस्लिम NATO’ बनाने के लिए एर्दोआन ने इसी महीने मिस्त्र और सीरिया से संपर्क किया है. पिछले हफ्ते ही एर्दोआन ने अंकारा में मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फत्ताह अल-सिसी की मेजबानी की. तुर्किए और मिस्त्र के बीच संबंध अच्छे नहीं रहे हैं. पिछले 12 साल में ये पहला मौका था, जब कोई मिस्र का राष्ट्रपति तुर्की पहुंचा था. एर्दोआन ने आपसी मतभेद भुलाकर अल सिसी के साथ ‘मुस्लिम NATO’ को लेकर चर्चा की.
एर्दोआन क्यों कर रहे हैं ऐसी कोशिश
एर्दोआन लेबनान और सीरिया को इजराइल का डर दिखा रहे हैं. एर्दोआन ने UAE और सऊदी अरब समेत कई मुस्लिम बहुल देशों के साथ आपसी तनाव कम करने के लिए कूटनीतिक प्रयास किए हैं. माना यही जा रहा है कि इन कोशिशों के पीछे उनकी मंशा ‘मुस्लिम NATO’ जैसा सैन्य गठबंधन बनाने की है. एर्दोआन की कोशिश खुद को इस्लामी देशों का सबसे बड़ा नेता बनने की है. वो अरब देशों में ऑटोमन साम्राज्य जैसी सल्तनत वापस लाना चाहते हैं और उसके खलीफा खुद बनने की फिराक में है. ‘मुस्लिम NATO’ इसी महत्वकांक्षा का नतीजा है.
मुस्लिम NATO जैसी कोशिश एक बार पहले भी हो चुकी है. 9 साल पहले दिसंबर 2015 में IMCTC यानी इस्लामिक मिलिट्री काउंटर टेरेरिज्म कोलिशन नाम की संस्था बनाई गई थी. आतंकवाद के खिलाफ एशिया और अफ्रीका के 42 मुस्लिम देशों ने इसे बनाया था. ये संस्था आज भी एक्टिव है, लेकिन ना तो पाकिस्तान से आतंकवाद मिटा और ना सीरिया को ISIS के चंगुल में फंसकर बर्बाद होने से ये संस्था बचा पाई. अब ऐसे ही उदेश्यों के साथ 25 सदस्यों वाली नई संस्था बनाने की तैयारी हो रही है.
कुछ दिन पहले अयातुल्ला अली खामेनेई ने इजराइल के खिलाफ दुनिया के सभी मुस्लिम देशों को अपने मतभेद भुलाकर एकजुट हो जाने की अपील की थी. दूसरी तरफ दुनिया के 57 मुस्लिम देशों में से तुर्किए एकमात्र देश है जो NATO गठबंधन में शामिल है. इसके बाद भी एर्दोआन मुस्लिम देशों का नाटो जैसा ही गठबंधन बनाने के लिए कूटनीतिक कोशिशों में लगे हैं, लेकिन मुस्लिम नाटो बनाने की एक और आवाज पाकिस्तान से आई है. आजकल पाकिस्तान में भड़काऊ बयान दे रहा भगोड़ा जाकिर नाइक अपनी तकरीरों में मुस्लिम नाटो की बात कर रहा है.
मिडिल ईस्ट के लगभग 19 देशों में अमेरिका के मिलिट्री बेस हैं. बहरीन, कतर, मिस्र, सऊदी अरब, इराक, सीरिया, इजराइल, तुर्किए, जॉर्डन, UAE और कुवैत में अमेरिका के बड़े सैन्य बेस हैं. सऊदी अरब के रियाद में 1951 से अमेरिका की सेना का स्थाई बेस है. इसके अलावा सऊदी में अमेरिका का अल-उदीद एयर बेस और प्रिंस सुल्तान एयरबेस भी है. इन्हीं मिलिट्री बेस से पूरे मिडिल ईस्ट और खाड़ी देशों पर अमेरिका नजर रखता है और NATO का सदस्य होने की वजह से अमेरिका का साथ देना एर्दोआन की मजबूरी है. एर्दोआन इसी मजबूरी से निकलना चाहते हैं और नाटो जैसा एक और सैन्य मोर्चा बनाकर उसका नेतृत्व करना चाहते हैं.
इस संगठन का भारत पर क्या पड़ेगा असर?
तुर्किए के राष्ट्रपति एर्दोआन जिस थाली में खा रहे हैं, उसी में छेद कर रहे हैं. NATO में रहते हुए वो NATO के लिए बड़ी मुसीबत पैदा करने की कोशिश में लगे हैं. NATO में अमेरिका समेत 32 देश हैं. और एर्दोआन की मंशा दुनिया के 27 मुस्लिम देशों को मिलाकर NATO जैसी शक्ति हासिल करने और उस पर हुकूमत करने की है, लेकिन सवाल ये है कि तुर्किए, पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों से मिलकर अगर ‘मुस्लिम NATO’ बना तो उसका भारत पर क्या असर होगा?
मुस्लिम नाटो जैसा संगठन अभी अस्तित्व में नहीं है, लेकिन इसे बनाने की गंभीर कोशिशें हो रही हैं. अब समझिए कि मुस्लिम नाटो बनाने के पीछे का मुख्य मकसद क्या हैं? नाटो की तर्ज पर जिस 25 मुस्लिम देशों के जिस मुस्लिम नाटो को बनाए जाने की योजना है, उसका मुख्य मकसद एकजुट होकर आतंकवाद रोधी अभियान चलाना है. इसके अलावा इस संगठन के तहत मुस्लिम देश एक दूसरे के सैन्य बलों को अत्याधुनिक बनाने पर भी जोर देंगे.
तीसरा मकसद इन 25 मुस्लिम देशों के बीच खुफियां जानकारियां साझा करना है, लेकिन सबसे बड़ा मकसद है, महासंग्राम के समय दुनिया की तीसरी बड़ी ताकत बनना. दुनिया तेजी से महायुद्ध की तरफ जा रही है. एक खेमा अमेरिका और नाटो देशों का है. दूसरा रूस, बेलारूस, ईरान और उत्तर कोरिया जैसे रूस के साथ खड़े देशों का. अगर 25 देशों का मुस्लिम नाटो बना, तो ये तीसरी बड़ी ताकत होगी. अगर मुस्लिम नाटो बना तो इन तीनों शक्तियों के टकराव के बाद महाविनाश होना तय है.
अब सवाल ये है कि अगर 25 मुस्लिम देश अपने तमाम मतभेद भुलाकर मुस्लिम नाटो बनाने में कामयाब रहे, तो ये ग्रुप भारत को कैसे प्रभावित कर सकता है. पहला असर ये होगा कि भारत पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच तनाव बढ़ सकता है क्योंकि इसमें पाकिस्तान, बांग्लादेश जैसे देश सदस्य होंगे. दूसरा असर ये होगा कि कश्मीर विवाद को हवा मिल सकती है क्योंकि ये संगठन पाकिस्तान के पक्ष में दबाव बनाने का प्रयास कर सकता है. तीसरा असर ये हो सकता है कि क्षेत्रीय सुरक्षा को खतरा होगा क्योंकि मुस्लिम नाटो से पाकिस्तान को मजबूती मिल सकती है.
चौथा असर ये है कि भारत को अलग-थलग करने की कोशिश होगी क्योंकि पाकिस्तान मुस्लिम बहुल देशों को प्रभाव में रख सकता है, लेकिन एक्सपर्ट्स का मानना है कि मुस्लिम नाटो सिर्फ कल्पना है, जो कभी हकीकत नहीं बन सकती. सवाल ये है कि जब 42 देशों की इस्लामिक मिलिट्री काउंटर टेरेरिज्म कोलिशन नाम की संस्था अपने उद्देश्यों में सफल नहीं रही, तो 25 देशों का मुस्लिम नाटो विचार कैसे काम करेगा?
ब्यूरो रिपोर्ट, TV9 भारतवर्ष

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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम

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