दुनियां – EVM या बैलेट…कैसे होता है अमेरिका में चुनाव, क्यों वोटों की गिनती में लग जाते हैं कई दिन? – #INA

मंगलवार को अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव होने हैं. वोटर्स अपने पसंदीदा उम्मीदवार के पक्ष में मतदान करेंगे लेकिन वोटिंग के लिए भारत की तरह EVM मशीन नहीं बल्कि बैलेट पेपर का इस्तेमाल होगा.ऐसा नहीं है कि अमेरिका में पूरी तरह से बैलेट पेपर से ही चुनाव कराया जाता है लेकिन ज्यादातर लोग वोटिंग के लिए बैलेट पेपर पर ही भरोसा जताते हैं.
कुछ दिनों पहले अमेरिका की रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप के करीबी सहयोगी एलन मस्क ने भी मशीन के जरिए वोटिंग का विरोध जताया था, मस्क ने कहा था कि मशीन को आसानी से हैक किया जा सकता है, जबकि पेपर बैलेट के साथ ऐसा मुमकिन नहीं है. बता दें कि अमेरिका समेत कई देशों में मशीन नहीं बल्कि बैलेट पेपर के जरिए मतदान कराए जाते हैं और इसके पीछे सबसे बड़ा कारण भरोसा है.
अमेरिका में कैसे होती है वोटिंग?
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव की तुलना अगर भारत में होने वाले आम चुनाव से करें तो दोनों में काफी अंतर होता है. जहां भारत में वोटिंग की तारीख से 36 घंटे पहले प्रचार का शोर थम जाता है तो अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के अंतिम चरण में वोटिंग की मुख्य तारीख से कुछ हफ्ते पहले से ही मतदान शुरू हो जाते हैं. यह कुछ-कुछ भारत के पोस्टल बैलेट प्रक्रिया की तरह होती है.
अमेरिका में मुख्य तारीख से पहले डाले जाने वाले वोट की प्रक्रिया को प्रारंभिक मतदान यानी अर्ली-वोटिंग कहा जाता है. इसके जरिए मतदाता व्यक्तिगत तौर पर (in-person methods) और मेल-इन-बैलेट (mail ballots) के जरिए वोट डालते हैं. अब तक अमेरिका में 7.21 करोड़ से अधिक मतदाता प्रारंभिक मतदान के जरिए अपना वोट डाल चुके हैं.वहीं मंगलवार को मतदाता राज्यों में बनाए गए बूथों पर जाकर मताधिकार का इस्तेमाल कर सकेंगे.
EVM या बैलेट, कैसे होती है वोटिंग?
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में ज्यादातर वोटिंग बैलेट से होती है. साल 2000 में जब अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव हुए तब चुनावी प्रक्रिया थोड़ी अलग थी. बैलेट पेपर के साथ पंच-कार्ड वोटिंग मशीन से वोट डाले जाते थे. लेकिन यह चुनाव काफी विवादों से घिर गया. फ्लोरिडा में चुनाव के नतीजों पर सवाल उठे, रिपब्लिकन उम्मीदवार जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने अपने प्रतिद्वंद्वी अल गोर को 537 वोटों के अंतर से हरा दिया. चुनाव इतना विवादित था कि अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट को रिकाउंटिंग की प्रक्रिया बीच में ही रुकवा कर बुश को विजेता घोषित करना पड़ा.
इसके बाद अमेरिका ने 2002 में वोटिंग में सुधार को लेकर बिल पास किया. हेल्प अमेरिका वोट एक्ट के पास होते ही सरकार ने अरबों डॉलर से खरीदे जाने वाले ‘डायरेक्ट रिकॉर्डिंग इलेक्ट्रॉनिक’ (DRE) मशीनें खरीदनी बंद कर दी, क्योंकि इस मशीन के जरिए होने वाली वोटिंग का कोई पेपर ट्रेल नहीं होता था.
हालांकि 2006 में पेपरलेस मशीन से मतदान के लिए रजिस्टर्ड वोटर्स का आंकड़ा बढ़ गया, जबकि हाथ से मार्क किए गए पेपर बैलेट सबसे अधिक प्रसिद्ध हो रहे थे, इन बैलेट पेपर को इलेक्ट्रॉनिक टैब्यूलेटर्स स्कैन कर रखते थे.
इसके एक दशक के बाद तक कुल वोटों का करीब एक तिहाई हिस्सा DRE मशीन (EVM जैसी मशीन) से डाला जाता था. BrennanCenter.org के मुताबिक, 2014 तक 25 फीसदी वोटर्स पेपरलेस मशीन का इस्तेमाल करते थे. लेकिन 2016 में बैलेट की ओर बड़ा शिफ्ट देखा गया.
बैलेट पेपर की ओर शिफ्ट हो रहे लोग
चुनाव और सरकारी कार्यक्रमों के काउन्सिल डेरेक टिस्लर ने तब रॉयटर्स से बातचीत में बताया था कि हमारी सबसे बड़ी प्राथमिकता गड़बड़ी का पता लगाना है, जिससे हम उसे सुधार सकें. ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि जो नतीजा निकला है वह पूरी तरह से सही है. और यही वजह है कि हमने ज्यादा से ज्यादा लोगों को बैलेट पेपर से वोटिंग पर लौटते देखा है.
800 मिलियन डॉलर की फेडरल फंडिंग से अमेरिका के तमाम राज्य तेजी से पुराने वोटिंग सिस्टम से आगे बढ़ रहे हैं और बैलेट पेपर के जरिए अपना मत डाल रहे हैं. 2022 में हुए मिड-टर्म में करीब 70 फीसदी रजिस्टर्ड वोटर्स ने हैंड मार्क्ड पेपर बैलेट का इस्तेमाल किया था. इनमें से 23 फीसदी लोग ऐसे राज्यों में रहते हैं जहां इलेक्ट्रॉनिक मशीन या बैलेट दोनों में से किसी भी एक के जरिए से अपना उम्मीदवार चुनने की आजादी है.
98 फीसदी लोग बैलेट से करेंगे वोटिंग!
मिड-टर्म चुनावों में महज 7 फीसदी वोटर्स ने DRE मशीनों का इस्तेमाल कर वोट डाला था. यह आंकड़ा साल दर साल घटता ही जा रहा है. BrennanCenter.org के डाटा के मुताबिक 2024 के राष्ट्रपति चुनाव में करीब 98 फीसदी लोग बैलेट पेपर का इस्तेमाल करेंगे वहीं 2020 में यह आंकड़ा 93 फीसदी था.
खास बात ये है कि सभी 7 स्विंग स्टेट्स (मुश्किल राज्य) -एरिजोना, जॉर्जिया, मिशीगन, नेवादा, नॉर्थ कैरोलिना, पेन्सिल्वेनिया और विस्कॉन्सिन में पेपर ट्रेल वाले वोटिंग सिस्टम का इस्तेमाल किया जाता है. वहीं मतदान के बाद होने वाले ऑडिट के लिए बैलेट पेपर ही सहायक होते हैं जिनका इस्तेमाल अमेरिका के 48 राज्यों में किया जाता है.
बैलेट पेपर से गड़बड़ी की संभावना कम
यूनिवर्सिटी ऑफ लोवा के कंप्यूटर साइंस के रिटायर्ड प्रोफेसर डगलस जोन्स का कहना है कि मतदान के लिए पेपर का इस्तेमाल इसलिए किया जाता है, जिससे आप किसी भी गड़बड़ी की स्थिति में सबूत को जांच सकें और गलती सुधारी जा सके. डलगस ने कई दशक चुनाव में कंप्यूटर के इस्तेमाल के अध्ययन में गुजारा है. उनका कहना है कि मतों की गणना के लिए स्कैनर्स का इस्तेमाल कर कई तरह की संभावित गलतियों से छुटकारा पाया जा सकता है.
यही वजह है कि अमेरिका में वोटिंग के कई दिनों तक मतों की गिनती और उनका मिलान होता है जिसके चलते नतीजे आने में कई दिनों का समय लग जाता है. हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में सीधे जनता के मतदान से राष्ट्रपति नहीं चुने जाते बल्कि राष्ट्रपति का चुनाव प्रत्येक राज्य के निर्धारित इलेक्टर्स करते हैं. जनता के वोट यह तय करते हैं कि किस राज्य में किस उम्मीदवार की जीत हुई है और फिर जिस कैंडिडेट के जीते हुए राज्यों के इलेक्टर्स की संख्या मिलाकर 270 के आंकड़े को पार करती है वहीं चुनाव में जीत दर्ज करता है.

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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम

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