दुनियां – इधर ट्रंप को कॉल पर कॉल मिला रहे नेतन्याहू, उधर अरब और मुस्लिम मुल्कों ने शुरू की घेराबंदी – #INA
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में ट्रंप की जीत से इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू काफी उत्साहित हैं. एक हफ्ते के भीतर वह 3 बार ट्रंप से फोन पर बात कर चुके हैं. नेतन्याहू के मुताबिक ट्रंप के साथ बातचीत में वह ईरान के खतरे को लेकर एकमत हैं, साथ ही दोनों देश आपसी साझेदारी को और मजबूत करना चाहते हैं.
वहीं दूसरी ओर सऊदी अरब की राजधानी रियाद में अरब और मुस्लिम मुल्क फिलिस्तीन के समर्थन में आवाज उठाने के लिए जुट रहे हैं. गाजा और लेबनान में इजराइली आक्रमण को लेकर सोमवार को रियाद में अरब-इस्लामिक समिट का आयोजन होना है. फिलिस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास समेत दुनियाभर के इस्लामिक देशों के नेता सऊदी पहुंच चुके हैं.
मुस्लिम मुल्कों ने शुरू की इजराइल की घेराबंदी
रिपोर्ट्स के मुताबिक इस समिट में इजराइली आक्रमण की निंदा के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय समुदाय से जंग को रुकवाने के लिए हस्तक्षेप करने और युद्ध से प्रभावित क्षेत्रों में मानवीय मदद पहुंचाने को लेकर फैसला किया जा सकता है. वहीं इस समिट का उद्देश्य फिलिस्तीन और लेबनान को आर्थिक-कूटनीतिक मदद मुहैया कराने और नॉर्थ गाजा में इजराइली घेराबंदी के खिलाफ प्रस्ताव पारित करने के लिए दुनिया के तमाम देशों पर दबाव बनाना है.
ट्रंप की वापसी के बीच अरब-इस्लामिक समिट
यह समिट ऐसे समय में हो रही है जब अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की सत्ता में वापसी हो रही है, हालांकि सऊदी अरब के किंग सलमान बिन अब्दुलअजीज अल-सऊद और क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने करीब 2 हफ्ते पहले ही इस मीटिंग को बुलाने का फैसला किया था. इसे आजाद फिलिस्तीन के लिए सऊदी अरब की प्रतिबद्धता के तौर पर देखा जा रहा है. दरअसल गाजा में मानवीय संकट बढ़ने के साथ-साथ सऊदी अरब पर भी फिलिस्तीन को लेकर दबाव बनता जा रहा था.
पिछले साल भी हुआ था समिट का आयोजन
पिछले साल 11 नवंबर को हुई अरब-इस्लामिक समिट में गाजा और फिलिस्तीन में जारी युद्ध को लेकर चर्चा की गई थी. इस खतरे से निपटने के लिए अरब और इस्लामिक देशों के बीच एकजुटता की जरूरत पर जोर दिया गया था. साथ ही इस दौरान मंत्रियों की एक कमेटी बनाई गई थी, जिस पर गाजा में त्वरित संघर्षविराम, नागरिकों की रक्षा और गाजा में जरूरी सेवाओं को दोबारा रिस्टोर करवाने की जिम्मेदारी थी. इस कमेटी ने तमाम वर्ल्ड लीडर्स के साथ मिलकर गाजा में इन लक्ष्यों को पूरा करने के लिए डिप्लोमेटिक प्रयास शुरू कर दिए हैं.
ट्रंप को कॉल पर कॉल मिला रहे नेतन्याहू!
उधर अमेरिका में सत्ता परिवर्तन से उत्साहित नेतन्याहू को पूरी उम्मीद है कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप मिडिल ईस्ट की जंग में उनका पूरा साथ देंगे. यही वजह है कि एक सप्ताह के भीतर ही वह तीन बार ट्रंप से फोन पर बातचीत कर चुके हैं. दरअसल अपने पहले कार्यकाल में ट्रंप ने इजराइल का मजबूती से साथ दिया, उन्होंने अंतरराष्ट्रीय राय के खिलाफ जाकर जेरुशलम को इजराइल की राजधानी की मान्यता दी थी, साथ ही अमेरिकी दूतावास को जेरुशलम में शिफ्ट कर दिया. ट्रंप ने इजराइल के कब्जे वाले वेस्ट बैंक में यहूदी बस्तियों को बसाने का भी समर्थन दिया जो कि अंतरराष्ट्रीय नियमों के लिहाज से अवैध माना जाता है.
ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में UAE, बहरीन, मोरक्को और सूडान का इजराइल के साथ एक समझौता कराया जिसे अब्राहम अकॉर्ड के नाम से जाना जाता है. इस समझौते के जरिए इन अरब देशों ने इजराइल के साथ कूटनीतिक रिश्ते स्थापित कर लिए, हालांकि सऊदी अरब तब इस समझौते में शामिल नहीं हुआ था, लेकिन अमेरिका लगातार रक्षा और आर्थिक लाभ के बदले में इजराइल और सऊदी के बीच डील कराने की कोशिश करता रहा है.
समिट से ट्रंप को संदेश देने की कोशिश!
हालांकि कुछ दिनों पहले ही सऊदी अरब ने इजराइल के साथ अमेरिकी मध्यस्थता वाली डील से किनारा कर लिया है. सऊदी ने साफ कर दिया है कि आजाद फिलिस्तीन की स्थापना के बिना इजराइल के साथ डिप्लोमेटिक संबंध नहीं रखेगा. माना जा रहा है कि सोमवार को होने वाली अरब-इस्लामिक समिट के जरिए सऊदी अरब अमेरिका के नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को भी संदेश देने की कोशिश कर सकता है.
यूनिवर्सिटी ऑफ बर्मिंघम में सऊदी राजनीति के एक्सपर्ट उमर करीम का कहना है कि सऊदी इस समिट के जरिए ट्रंप की टीम को संकेत दे सकता है कि वह इस क्षेत्र में अब भी अमेरिका का मजबूत सहयोगी बना रहेगा. ट्रंप के लिए संदेश साफ होगा कि वह मुस्लिम वर्ल्ड के प्रतिनिधि के तौर पर सऊदी अरब पर भरोसा कर सकते हैं.
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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम
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