दुनियां – इजराइल के साथ-साथ लेबनान सेना को भी दे रहा अमेरिका हथियार, मदद के पीछे बड़ा मकसद – #INA
अमेरिकी राजनीतिक वैज्ञानिक जोसेफ नाइ ने कहा था कि क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखने के लिए लेबनान में अमेरिकी दखल जरूरी है. लेबनान को फैसला लेने की स्वतंत्रता की ओर कोई भी कदम अराजकता की वजह बन सकता है जो क्षेत्र में अमेरिकी हितों के लिए खतरा हो सकता है.” 2006 के बाद से ही लेबनान सरकार और सेना को मजबूत करने के लिए अमेरिका ने कई कदम उठाए हैं.
अमेरिका का लेबनान को समर्थन इजराइल और अमेरिका के हितों को पूरा करने के साथ-साथ सऊदी अरब के भी क्षेत्रीय हितों को पूरा करता है. लेबनान कई सालों से राजनीतिक और आर्थिक संकट से जूझ रहा है और अमेरिका-सऊदी की मदद के बाद भी इससे निकल नहीं पाया है, जोकि इस मदद की मंशा पर भी सवाल खड़ा करता है.
लेबनान सेना
2002 से 2004 तक बेरुत में अमेरिकी दूतावास के स्टाफ का हिस्सा रही लिसा जॉनसन ने कांग्रेस में एक भाषण के दौरान लेबनानी सेना और घरेलू सुरक्षा बलों को दिए जाने वाले अमेरिकी सहयोग का जिक्र किया था. उन्होंने इस भाषण में लेबनान को अमेरिका का विश्वसनीय साझेदार के तौर पेश किया था. उन्होंने कहा कि अमेरिका ने इन बलों के साथ सहयोग बढ़ाया है और उन्हें यह मदद दी है ताकि लेबनान की संप्रभुता को मजबूत किया जा सके, अस्थिरता को कम किया जा सके और आतंकवादी समूहों का मुकाबला किया जा सके.
हिजबुल्लाह का डर
हिजबुल्लाह से इजराइल की हार के बाद अमेरिका और सऊदी अरब का ध्यान लेबनान पर गया. इजराइल को हाराने के बाद हिजबुल्लाह की लोकप्रियता बढ़ रही थी और अब वह सिर्फ शियाई इलाकों में ही नहीं बल्कि सुन्नी इलाकों में भी फैलने लगा था. अमेरिका को डर है कि लेबनान सेना का कमजोर होना पूरे लेबनान को हिजबुल्लाह के अधीन बना सकता चुका है.
अमेरिका मदद के बाद भी नहीं हो पाया कामयाब
2006 के बाद से अमेरिका ने लेबनान सेना को लगभग तीन अरब डॉलर की मदद दी है. अमेरिका का दावा है कि यह मदद लेबनान की संप्रभुता को मजबूती देने, अस्थिरता को काबू करने और हिजबुल्लाह के झूठे प्रचार के जवाब के लिए है, जिसमें समूह यह दावा करता है कि उसके हथियार और लड़ाके लेबनान की रक्षा के लिए जरूरी है.
हिजबुल्लाह लड़ाके
हालांकि अमेरिका का प्लान सफल नहीं हो पाया है, क्योंकि हिजबुल्लाह लेबनान आम चुनावों में लगातार बहुमत हासिल कर रहा है. अब अमेरिकी अधिकारी युद्ध की आड़ में फिर से लेबनान सेना को मजबूत करने में लगे हैं. इजराइल की आक्रामक कार्रवाई से हिजबुल्लाह कमजोर हो गया है और इसको अमेरिका एक अवसर की तरह देख रहा है.
सहायता के बाद लेबनान सेना पर नजर
ऐसा नहीं है कि अमेरिका लेबनान सेना को दी गई अपनी मदद का आजादी से इस्तेमाल करने की इजाजत भी देता है. 2010 में हुई ओडैस्सेह घटना इसका अहम उदाहरण है, जब इजराइली सैनिकों ने ब्लू लाइन के पास गश्त कर रहे लेबनानी सैनिकों पर गोलियां चला दी थी, जिसमें दो लेबनानी सैनिक और एक इजराइली सैनिक की मौत हुई थी. इस घटना के बाद तनाव इतना बढ़ गया कि संयुक्त राष्ट्र (UN) को हस्तक्षेप करना पड़ा.
इस तनाव के बाद अमेरिकी एंबेसी ने उस वक्त के लेबनानी सेना चीफ जनरल जीन काहवाजी को तलब किया और इस मामले की पूरी जानकारी ली. अमेरिकी अधिकारियों ने इस बात जोर दिया कि इजराइल के खिलाफ इस्तेमाल हुई गोलियां और हथियार वो तो नहीं जो अमेरिका ने उन्हें दिए.
यह घटना साफ उदाहरण की अमेरिका लेबनान सेना पर कितनी बारीकी से नजर रखती है. जानकारों को मानना है कि अमेरिका का लेबनान सेना को मदद करना, सिर्फ लेबनान में हिजबुल्लाह के बढ़ते प्रभाव को रोकना है. वहीं ईरान समर्थित हिजबुल्लाह की वजह से सऊदी अरब भी लेबनान सरकार और सेना को मोटी मदद देता है.
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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम
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