दुनियां – जिस छोटे से देश गुयाना पहुंचे पीएम मोदी, उसका भारत से क्या कनेक्शन है? – #INA
दक्षिण अमेरिका का छोटा-सा देश है गुयाना. जहां आबादी तो महज 8 लाख है, लेकिन इनमें से करीब 40 फीसदी भारतीय मूल के हैं. इस देश का भारत से रिश्ता केवल जनसंख्या तक सीमित नहीं है, बल्कि इतिहास के गहरे पन्नों में दर्ज है. गुयाना के राष्ट्रपति इरफान अली खुद भारतीय मूल के हैं, जिनके पूर्वज 19वीं सदी में गिरमिटिया मजदूर बनकर वहां पहुंचे थे.
अब 56 साल बाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दो दिवसीय दौरा इस रिश्ते को और मजबूत करने का एक अहम मौका बन गया है. वो इंदिरा गांधी के बाद गुयाना जाने वाले दूसरे भारतीय प्रधानमंत्री हैं. लेकिन यहां एक सवाल उठता है—आखिर ये गिरमिटिया मजदूर कौन थे, और उनका भारत से क्या कनेक्शन है? आइए इसे समझते हैं.
गुयाना में किसकी सबसे ज्यादा आबादी
गुयाना का क्षेत्रफल एक लाख 60 हजार वर्ग किलोमीटर है. आबादी है 8 लाख 17 हजार. जिसके 2050 तक 9 लाख के आसपास पहुंचने का अनुमान है. इसमें सबसे ज्यादा 40 फीसदी भारतीय मूल के लोग हैं. बाकी की आबादी में 30 प्रतिशत अफ्रीकी मूल के हैं, जबकि 17 प्रतिशत आबादी मिश्रित समूह की है. जबकि नौ प्रतिशत लोग अमेरिकी मूल के हैं.
यहां सबसे ज्यादा 54 फीसदी ईसाई धर्म को मानने वाले नागरिक है. 31 फीसदी हिंदू धर्म के हैं, 7.5 फीसदी इस्लाम धर्म के लोग है. 4.2 किसी भी धर्म में विश्वास नहीं रखते. हालांकि लोगों के लिए ये जिज्ञासा का विषय है कि इस छोटे से सुदुर दक्षिण अमेरिकी देश में भारतीय नागरिकों का बोलबाला क्यों हैं, कैसे ये लोग यहां आकर बस गए?
क्या है गिरमिटिया मजदूरों का इतिहास
इस समझने के लिए जाना होगा 19वीं शताब्दी में. जब गुयाना एक आजाद मुल्क नहीं था बल्कि ब्रिटिश राज था. बात 1814 की है. ब्रिटेन ने नेपोलियन के साथ युद्ध के दौरान गुयाना पर कब्जा किया और बाद में इसे उपनिवेश के तौर पर ब्रिटिश गुयाना के तौर पर बदल दिया.
फिर 20 साल बाद यानी 1834 में दुनिया भर के ब्रिटिश उपनिवेशों में गुलामी प्रथा या बंधुआ मजदूरी का अंत हुआ. गुयाना में भी बंधुआ मजदूरी के खत्म होने के बाद मजदूरों की भारी मांग होने लगी थी. ब्रिटिश शासन में अंग्रेज गन्ने की खेती के लिए मजदूरों को एक से दूसरे देश ले जाते थे. इस दौरान जमकर मजदूरों का कारोबार होता था. जिन्हें गिरमिटिया मजदूर कहा गया. भारतीयों नागरिकों का दल गुयाना पहुंचा. ऐसा कई और देशों में भी हुआ था, जैसे मॉरिशस.
आंकड़ों के मुताबिक 1838 से 1917 के बीच करीब 500 जहाजों के जरिए 2 लाख से ज्यादा की संख्या में भारतीयों को गिरमिटिया मजदूरों के रूप में ब्रिटिश गुयाना लाया गया था. एक दशक के अंदर ही भारतीय अप्रवासी मजूदरों की मेहनत के चलते ब्रिटिश गुयाना की अर्थव्यवस्था में चीनी उद्योग का वर्चस्व दिखने लगा. इसे क्रांतिकारी बदलाव माना गया और इससे उपनिवेश में काफी हद तक आर्थिक उन्नति देखने को मिली.
1966 में गुयाना ब्रिटिश उपनिवेश से आजाद हुआ. मगर जो मजदूर वहां मजदूरी करने गए थे, उनमें से कुछ तो वापस लौट आए लेकिन कई समय के साथ वहीं के होकर रह गए. इसलिए भारतीय मूल के लोगों की उपस्थिति यहां हर तरफ दिखती है. यही वजह है कि दिवाली और होली जैसे प्रसिद्ध भारतीय उत्सव भी गुयाना कैलेंडर में मौजूद हैं.
तेल भंडार ने बदल दी किस्मत
गुयाना की गिनती साल 2015 तक दुनिया के सबसे गरीब देशों में होती थी. मगर उसी साल एक्सन मोबिल कॉरपोरेशन ने गुयाना से 100 मील दूर तेल के बड़े भंडार खोज निकाले. इससे गुयाना को सालाना करीब 10 अरब डॉलर मिलने की उम्मीद है और 2040 तक उसके खजाने में 157 अरब डॉलर आ सकते हैं.
पिछले पांच साल में देश की इकॉनमी का साइज चार गुना बढ़ चुका है. पिछले पांच साल में इसने 27.14 फीसदी की औसत इकॉनमिक ग्रोथ हासिल की है. साल 2023 में इसकी अर्थव्यवस्था 62.3 पर्सेंच की रफ्तार से बढ़ी. गुयाना में मुख्य आर्थिक गतिविधियाँ कृषि (चावल और डेमेरारा चीनी), बॉक्साइट और सोने का खनन, लकड़ी, समुद्री भोजन, खनिज, कच्चा तेल और प्राकृतिक गैस हैं.
कोविड के समय भारत ने दिया साथ
वैक्सीन मैत्री पहल के तहत, भारत ने मार्च 2021 में गुयाना को कोविशील्ड की 80,000 खुराकें डोनेट की थी. इससे देश को कोविड महामारी से लड़ने में बड़ी मदद मिली. भारत ने देश के स्वास्थ्य सेवा बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देने के लिए भारत-संयुक्त राष्ट्र विकास साझेदारी निधि के माध्यम से 2020 में गुयाना को 1 मिलियन डॉलर का योगदान दिया, जिससे 34 से अधिक वेंटिलेटर, हजारों सुरक्षात्मक उपकरण आइटम और आपातकालीन देखभाल दवाओं की खरीद को सक्षम किया गया ताकि कोविड-19 से निपटने में सहायता मिल सके.
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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम
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