दुनियां – अमेरिका के वो दोस्त जो व्हाइट हाउस में ट्रंप की वापसी से बन सकते हैं ‘दुश्मन’? – #INA
अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता में आते ही विरोधियों में ही नहीं बल्कि उसके करीबी सहयोगियों में भी बेचैनी बढ़ी है. ब्रिटेन, जर्मनी और साउथ कोरिया समेत कई देशों में ऐसा माना जाने लगा है कि अमेरिका पर अब पहले जैसा भरोसा नहीं किया जा सकता.
दरअसल ट्रंप की ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति से सहयोगी देशों की मु्श्किलें भी बढ़ सकती हैं. डोनाल्ड ट्रंप नहीं चाहते कि अमेरिका के संसाधनों का इस्तेमाल किसी और देश को फायदा पहुंचाने के लिए किया जाए, वह ताकत के बल पर अमेरिका के लिए बेहतर डील हासिल करना चाहते हैं, भले ही इसका मतलब अपने सहयोगियों को धमकाना हो. यही वजह है कि चीन-ईरान जैसे विरोधियों के साथ-साथ उन देशों की भी बेचैनी बढ़ गई है जो बाइडेन प्रशासन में अमेरिका के मजबूत सहयोगी रहे हैं.
साउथ कोरिया को सता रहा डर!
ट्रंप की वापसी से सियोल टेंशन में है. व्हाइट हाउस में ट्रंप की वापसी को लेकर माना जा रहा है कि अब अमेरिका उसका भरोसेमंद साझेदार नहीं रहा. डोनाल्ड ट्रंप के पहले कार्यकाल में नॉर्थ कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन के साथ नजदीकी काफी चर्चित रही है. साउथ कोरिया का मानना है कि आने वाले दिनों उसे अपने परमाणु शास्त्रागार की जरूरत होगी. साउथ कोरिया में सत्ताधारी दल पीपुल्स पावर पार्टी के अध्यक्ष हान डोंग हून ने आने वाले दिनों में नॉर्थ कोरिया के साथ तनाव बढ़ने का अंदेशा जताते हुए कहा है कि ‘सत्ता परिवर्तन और बदलते वर्ल्ड ऑर्डर के बीच हमें परमाणु क्षमता हासिल करने के लिए तैयार रहना चाहिए.’
वहीं दक्षिण कोरिया के NSA शिन वोन-सिक ने करीब एक हफ्ते पहले अपने बयान में कहा है कि अमेरिका के साथ साझेदारी में साउथ कोरिया अब अकेला लाभार्थी नहीं रहा है. उन्होंने कहा कि एक सहयोगी के तौर पर क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा और समृद्धि में योगदान देने की क्षमता रखते हुए साउथ कोरिया अपने मूल हितों की भी रक्षा करेगा.
ट्रंप की वापसी से बदला जर्मनी का रुख?
अमेरिका के हर फैसले के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने वाले जर्मनी के रुख में भी बदलाव देखने को मिल रहा है. बाइडेन प्रशासन के दबाव के बावजूद जर्मनी ने यूक्रेन को लंबी दूरी की मिसाइल इस्तेमाल करने की मंजूरी नहीं दी है. जर्मनी का मानना है कि इससे समस्या और बढ़ सकती है.
दरअसल डोनाल्ड ट्रंप का रुख NATO को लेकर ज्यादा सकारात्मक नहीं रहा है. जब यूक्रेन पर रूस ने आक्रमण किया था तो ट्रंप ने न केवल पुतिन की सराहना की थी बल्कि कहा था कि वह रूस को NATO के उन सदस्य देशों के खिलाफ मनचाही कार्रवाई के लिए प्रोत्साहित करेंगे जो रक्षा पर पर्याप्त खर्च नहीं कर रहे हैं. ट्रंप के रुख के चलते जर्मन चांसलर शोल्ज अब रूस के खिलाफ बड़ा कदम उठाने से डर रहे हैं.
उन्होंने कुछ दिनों पहले ही रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से फोन पर बात की है, यह दोनों लीडर्स के बीच फरवरी 2022 के बाद पहली वार्ता थी. उन्होंने पुतिन से बातचीत में यूक्रेन से रूसी सेना की वापसी की मांग की है.
कैसे होंगे ब्रिटेन और अमेरिका के रिश्ते?
अमेरिका का नव-निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने वादा किया है कि वह न केवल विरोधी देशों पर बल्कि फ्रेंडली देशों के निर्यात पर 10 फीसदी टैरिफ लगाएंगे. व्यापार को लेकर ट्रंप की अमेरिका फर्स्ट नीति ब्रेक्जिट के बाद ब्रिटेन की वैश्विक आकांक्षाओं को मुश्किल बना सकती है. एक्सपर्ट्स का मानना है कि ट्रंप की यह नीति ब्रिटेन को यूरोप के ज्यादा करीब ले जाएगी.पोलिटिको की रिपोर्ट के अनुसार, ब्रिटिश अधिकारी ट्रंप के प्रस्तावित टैरिफ के लिए तैयारी कर रहे हैं, जिससे अमेरिका में ब्रिटिश निर्यात प्रभावित होगा और ब्रेक्सिट के बाद आर्थिक तनाव और भी गहरा सकता है. लिहाजा माना जा रहा है कि आने वाले 4 सालों में अमेरिका और ब्रिटेन के संबंधों में काफी उतार-चढ़ाव देखने को मिल सकते हैं.
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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम
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