Political – लोकसभा स्पीकर कैसे चुना और कैसे हटाया जाता है? जानें पूरी प्रक्रिया- #INA
लोकसभा स्पीकर को सदन और सदस्यों के अधिकारों का संरक्षक माना जाता है.
प्रधानमंत्री मोदी ने तीसरे कार्यकाल में मंत्रिपरिषद में 71 मंत्रियों को जगह दी है. मंत्रालयों के आवंटन के बाद अब लोकसभा अध्यक्ष यानी स्पीकर के नाम को लेकर चर्चा हो रही है. NDA के सहयोगी दल TDP इस पद पर अपने नेता को लाने की कोशिश कर रही है. लोकसभा स्पीकर के पद के लिए आंध्र प्रदेश की बीजेपी अध्यक्ष और चंद्रबाबू नायडू की साली डी. पुरंदेश्वरी के नाम की चर्चा चल रही है.
संसद में स्पीकर का पद पावरफुल होता है. लोकसभा के संचालन से लेकर सांसदों की सदस्यता का फैसला स्पीकर ही करता है. सदन में अल्पमत होने की स्थिति में स्पीकर की पोजिशन और बढ़ जाती है. आइए समझते हैं कि स्पीकर कैसे चुना और कैसे हटाया जाता है.
स्पीकर का चुनाव किसकी देख-रेख में होता है?
नई लोकसभा की पहली बैठक के ठीक पहले पिछली लोकसभा का स्पीकर का पद खाली हो जाता है. यानी ओम बिड़ला, जो फिलहाल लोकसभा के स्पीकर, नई लोकसभा की पहली बैठक से ठीक पहले सभापति का पद खाली कर देंगे. उस स्थिति में, स्पीकर की जिम्मेदारियां प्रोटेम स्पीकर निभाता है जो चुने हुए सांसदों में सबसे वरिष्ठ होता है.
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प्रोटेम स्पीकर एक अस्थायी स्पीकर होता है जिसे संसद में कार्यवाही संचालित करने के लिए सीमित समय के लिए नियुक्त किया जाता है. नई लोकसभा की पहली बैठक की अध्यक्षता और नए सदस्यों को शपथ दिलाने का काम प्रोटेम स्पीकर करता है.
लोकसभा के स्पीकर के लिए चुनाव और मतदान कराने की जिम्मेदारी भी प्रोटेम स्पीकर की होती है. जैसे ही नए स्पीकर का चुनाव हो जाता है, प्रोटेम स्पीकर का पद समाप्त हो जाता है.
स्पीकर का चुनाव कैसे होता है?
नई बनीं 18वीं लोकसभा का सबसे पहला काम है लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव करना. संविधान के आर्टिकल 93 में कहा गया है स्पीकर का पद खाली होते ही सांसदों को जल्द से जल्द अपने में से दो सांसदों को बतौर स्पीकर और डिप्टी स्पीकर चुनना होगा.
स्पीकर पद के लिए जरूरी है कि वह व्यक्ति लोकसभा का सदस्य हो. इसके अलावा अलग से और कोई मापदंड नहीं हैं. हालांकि, देश के संविधान और कानूनों की समझ अध्यक्ष पद पर बैठने वाले व्यक्ति के लिए एक अहम गुण माना जाता है. स्पीकर चुने जाने के लिए सदन में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के साधारण बहुमत की जरूरत होती है. इसलिए, आमतौर पर सत्तारूढ़ दल का सदस्य ही स्पीकर बनता है.
हालांकि, पिछले कुछ सालों में ये प्रक्रिया विकसित हुई है जहां सत्तारूढ़ दल सदन में अन्य दलों और समूहों के नेताओं के साथ अनौपचारिक परामर्श करने के बाद अपने उम्मीदवार को नामांकित करता है. जब उम्मीदवार पर फैसला हो जाता है, तो उसका नाम आमतौर पर प्रधानमंत्री या संसदीय कार्य मंत्री घोषित करते हैं. इस तरह यह सुनिश्चित किया जाता है कि अध्यक्ष बन जाने के बाद उसे सदन के सभी दल के सदस्यों का सम्मान मिले.
स्पीकर का काम और ताकत
- स्पीकर का मुख्य काम संसद की अध्यक्षता और संचालन करना होता है. दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता भी लोकसभा का स्पीकर करता है.
- स्पीकर सदन की कुल सदस्य संख्या के दसवें हिस्से की अनुपस्थिति में सदन को स्थगित कर सकता है या बैठक को निलंबित कर सकता है.
- आमतौर पर स्पीकर किसी मुद्दे पर वोट नहीं करता है. लेकिन बराबरी की स्थिति में वह वोट कर सकता है. विश्वास मत प्रस्ताव में एक वोट भी काफी अहम हो जाता है.
- दसवीं अनुसूची के प्रावधानों के तहत दलबदल के आधार पर पैदा होने वाले लोकसभा सदस्य की अयोग्यता के विवाद पर अंतिम फैसला स्पीकर लेता है.
- सदन की समितियां अध्यक्ष द्वारा गठित की जाती हैं और अध्यक्ष के निर्देशन में ही उनका काम होता है
- स्पीकर को सदन, उसकी समितियों और सदस्यों के अधिकारों और विशेषाधिकारों का संरक्षक माना जाता है.
स्पीकर को कैसे हटाया जा सकता है?
स्पीकर का कार्यकाल लगभग 5 साल का होता है. लोकसभा के भंग होने के बाद भी वह अपने पद पर बना रहता है. नियमों के मुताबिक, लोकसभा के भंग होने के बाद से अगली लोकसभा की पहली बैठक तक स्पीकर अपना पद खाली नहीं करेगा. हालांकि, स्पीकर के 5 साल से पहले ही हट जाने या हटाए जाने का प्रावधान संविधान में दिया हुआ है.
आर्टिकल 94 में लिखा है – लोक सभा के अध्यक्ष के रूप में पद धारण करने वाला सदस्य-
- यदि वह लोक सभा का सदस्य नहीं रह जाता है तो वह अपना पद खाली कर देगा.
- किसी भी समय डिप्टी स्पीकर को खत लिखकर अपने पद से इस्तीफा दे सकता है.
- लोकसभा में पूर्ण बहुमत से पारित एक प्रस्ताव द्वारा उसके पद से हटाया जा सकता है. पूर्ण बहुमत का मतलब उस समय कि लोकसभा की कुल सदस्यता का बहुमत, न कि केवल उन लोगों का जो उस समय सदन में मौजूद हैं या जिन्होंने मतदान किया.
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