Political – हरियाणा की वो 41 सीटें, जहां AAP से समझौता नहीं करेगी कांग्रेस, ये ही बनेंगी सत्ता की सीढ़ी- #INA

हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच अभी तक गठबंधन की डील फाइनल नहीं हो पाई है. मंगलवार को और बुधवार को दोनों दलों के नेता एक टेबल पर बैठे, लेकिन बात अभी तक नहीं बन पाई है. चर्चा है कि कांग्रेस 5 सीट देने के लिए तैयार है, लेकिन आम आदमी पार्टी 10 सीटों पर अड़ी है. कांग्रेस ने सीटों की डील पर बातचीत के लिए संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल तो आप ने राघव चड्ढा अधिकृत किया है.

हरियाणा कांग्रेस का मजबूत गढ़ रहा है, ऐसे में पार्टी यह नहीं चाहती है कि वो ज्यादा से ज्यादा सीट गठबंधन के दलों को दे दे. कालका, मुलाना, रादौर, लाडवा, थानेसर, पेहोवा समेत करीब 41 सीटें ऐसी हैं जिसे लेकर कहा जा रहा है कि इनके लिए कांग्रेस बिल्कुल भी समझौता करने के मूड में नहीं है. फिर चाहे वो आम आदमी पार्टी हो या अखिलेश यादव की अगुवाई वाली समाजवादी पार्टी ही क्यों न हो. ये वो सीटें हैं जो कांग्रेस को सत्ता तक पहुंचा सकती है. ये वो सीटें हैं जिनमें से अधिकतर पर कांग्रेस का कब्जा है. इनमें कुछ वो सीटें भी हैं जहां पर पिछले चुनाव में हार और जीत का अंतर 10 हजार या फिर उसके आसपास का रहा है.

लोकसभा चुनाव में दिखा चुकी है दम

माना जा रहा है कि कांग्रेस गठबंधन करने के मूड में तो है, लेकिन बिना किसी दबाव के. यही वजह है कि अब तक कई राउंड की बैठक के बाद भी सीटों की डील पर फाइनल मुहर नहीं लग पाई है. लोकसभा चुनाव में हरियाणा की 10 सीटों में कांग्रेस के खाते में 5 आई हैं जबकि 5 पर बीजेपी को जीत मिली है. पिछले चुनाव की तुलना में इस बार पार्टी के प्रदर्शन में सुधार हुआ है. लोकसभा के प्रदर्शन को कांग्रेस विधानसभा चुनाव में भुनाना चाह रही है. वैसे भी बीजेपी शासित कई राज्यों की तुलना में हरियाणा में कांग्रेस की स्थिति काफी मजबूत है. यही वजह है कि पिछली बार के चुनाव में कांग्रेस राज्य की 90 सीटों में से 31 सीट जीतने में सफल रही थी.

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इन सीटों से समझौता नहीं करना चाहती कांग्रेस

जिन 41 सीटों को कांग्रेस अपने पास रखना चाहती है इनमें कालका, मुलाना, साढौरा, रादौर, लाडवा, थानेसर, पिहोवा, गुहला, कैथल, पुंडरी, इंद्री, करनाल, घरौंदा, असंध, पानीपत शहर, इसराना, समालख, राई, खरखौदा, सोनीपत, गोहाना, बरोदा, सफीदों, रतिया, कालांवाली, डबवाली, आदमपुर, गढ़ी सांपला, रोहतक, कलानौर, बहादुरगढ़, बादली, झज्जर, बेरी, महेंद्रगढ़, नूंह, फिरोजपुर जिरका, पुनहाना, हाथिन, होडल, फरीदाबाद NIT सीट शामिल हैं.

चौधरी भजनलाल के प्रभाव वाली सीट है कालका

इन सीटों के बारे में बात करे तो कालका सीट पर फिलहाल कांग्रेस का कब्जा है और प्रदीप चौधरी यहां से विधायक हैं. यह सीट पंचकूला जिले के अंदर आती है. यह सीट 1967 में अस्तित्व में आई थी तब लक्ष्मण सिंह बतौर निर्दलीय चुनाव जीते थे. इस सीट को कांग्रेस का गढ़ माना जाता है. सीट पर अब तक हुए 14 बार के चुनाव में कांग्रेस ने 8 बार, दो बार निर्दलीय, एक बार बीजेपी जबकि एक बार आईएनएलडी को जीत मिली है. लोकदल और जनता पार्टी को भी 1-1 बार जीत मिली है.

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कालका सीट चौधरी भजनलाल के प्रभाव वाली सीट मानी जाती है. 1993 से लेकर 2005 तक चंद्रमोहन ने कांग्रेस को चार बार जीत दिलाई है. साल 2014 में बीजेपी की लतिका शर्मा ने यहां से जीत जरूर हासिल की थी, लेकिन 2019 के चुनाव में कांग्रेस के प्रदीप चौधरी ने इस सीट को जीत लिया था. माना जा रहा है कि आम आदमी पार्टी इस सीट को लेकर भी कांग्रेस के सामने डिमांड प्रस्ताव रखा है.

मुलाना में वरुण चौधरी का मजबूत किला

इसी तरह से मुलाना सीट भी कांग्रेस के कब्जे में और वरुण चौधरी यहां से विधायक हैं. यह सीट अंबाला जिले के अंदर आती है. इसकी गिनती जाट बहुल सीट में होती है. इस सीट पर वरुण चौधरी के पिता फूलचंद मुलाना का कभी दबदबा हुआ करता था. वरुण अब इस सीट पर पिता की सियासत को आगे बढ़े रहे हैं. इसी तरह से गढ़ी सांपला किलोई सीट है जहां से भूपेन्द्र सिंह हुड्डा विधायक हैं. हुड्डा की गिनती कांग्रेस के बड़े नेताओं में होती है. हुड्डा का 2009 से ही इस सीट पर कब्जा है.

महेंद्रगढ़ और पंचकुला में भी कांग्रेस की अच्छी पकड़

महेंद्रगढ़ जिले की महेंद्रगढ़ सीट भी कांग्रेस के कब्जे में है. 2000 से 2009 तक यह सीट कांग्रेस के कब्जे में थी और धन सिंह यादव विधायक रहे. इसके बाद 2014 में यह सीट बीजेपी के खाते में चली गई थी. 2019 के चुनाव में कांग्रेस की वापसी हुई धन सिंह यादव फिर से विधायक बने. इसी तरह से पंचकुला, बादशाहपुर, समालखा, सोहना, झज्जर सीट पर भी कांग्रेस का कब्जा है.

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माना जा रहा है कि यही वजह है कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच गठबंधन पर मुहर लगने में देरी हो रही है. सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस पार्टी अपने प्रभाव वाली सीट पर बिल्कुल भी समझौता करने के मूड में नहीं है. आम आदमी पार्टी हरियाणा के लिए नई नहीं है, लेकिन पार्टी अभी तक अपना खाता नहीं खोल पाई है. इसलिए अगर गठबंधन में चलना है तो उसे कांग्रेस की बात माननी पड़ेगी. ठीक ऐसा ही कुछ समाजवादी पार्टी के साथ भी है. हरियाणा सपा अभी तक खुद की सियासी जमीन ही तलाश रही है.

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