Political – हरियाणा: जाट-OBC-दलित के हाथ में सत्ता की चाबी, BJP की सोशल इंजीनियरिंग बनाम कांग्रेस का सियासी समीकरण- #INA
भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कुमारी सैलजा, नायब सैनी, मनोहर लाल खट्टर
हरियाणा का विधानसभा चुनाव इस बार काफी रोचक बनता जा रहा है. बीजेपी और कांग्रेस सहित सभी दलों ने अपने-अपने राजनीतिक दांव चल दिए हैं. हरियाणा में चुनाव धर्म से ज्यादा जाति के मुद्दे पर सिमटता जा रहा है. कांग्रेस जातिगत जनगणना के बहाने जाति के मुद्दे को लगातार उठा रही है तो कुमारी सैलजा के बहाने बीजेपी ने कांग्रेस को दलित विरोधी कठघरे में खड़ा करने का दांव चला है. ऐसे में हरियाणा का चुनाव जातीय और आरक्षण के मुद्दे पर सिमटता जा रहा है.
हरियाणा की जातीय सियासत का असर अतीत में हुए चुनाव में देखने को मिलता रहा है. जाट बनाम गैर-जाट वोट निर्णायक भूमिका में रहे हैं. कांग्रेस के दांव से ही बीजेपी ने उसे मात देनी की स्ट्रैटेजी बना रखी है. सूबे की सत्ता की दशा और दिशा जाट,ओबीसी और दलित समुदाय तय करते हैं. इन्हीं तीनों जातियों के इर्द-गिर्द बीजेपी और कांग्रेस ने अपने-अपने दांव खेले हैं. ऐसे में देखना है कि किसका समीकरण सत्ता के सिंहासन तक पहुंचने का काम करता है.
हरियाणा का जातीय समीकरण
बीजेपी, कांग्रेस सहित सभी राजनीतिक दलों ने हरियाणा चुनाव में जातीय के बिसात पर अपने-अपने सियासी मोहरे सेट किए हैं. बीजेपी और कांग्रेस 89-89 सीट पर चुनाव लड़ रही. कांग्रेस ने एक सीट सीपीआई-एम के लिए छोड़ी है जबकि बीजेपी के एक कैंडिडेट ने अपना नामांकन वापस ले लिया है.
हरियाणा में जाट समुदाय सबसे बड़ा वोटबैंक है, जिसके हाथों में लंबे समय तक सत्ता की चाबी रही है. जाट समदुाय की आबादी 25 फीसदी से ज्यादा है. इसके बाद दलित समुदाय दूसरे नंबर पर आता है, जो करीब 20 से 22 फीसदी के बीच है. ओबीसी की आबादी भले ही सबसे ज्यादा हो, लेकिन वो अलग-अलग जातियों में बंटे हुए हैं. 30 से 35 फीसदी के बीच ओबीसी मतदाता हरियाणा में है. इस तरह इन तीनों ही जातियों का वोट मिलाकर 70 से 75 फीसदी होता है. इसके बाद पंजाबी और ब्राह्मण 8-8 फीसदी, मुस्लिम 7 फीसदी, वैश्य 4 फीसदी और राजपूत दो फीसदी के करीब है.
कांग्रेस ने जाट समुदाय पर किया फोकस
कांग्रेस और बीजेपी ने उम्मीदवारों के सेलेक्शन में जातीय समीकरण का पूरा ख्याल रखा है. कांग्रेस ने जाट समुदाय पर फोकस किया है तो बीजेपी ने ओबीसी समाज पर अपना दांव चला है. कांग्रेस ने 35 जाट, 20 ओबीसी, 17 दलित, 4 ब्राह्मण, 5 मुस्लिम, 6 पंजाबी, दो वैश्य और एक राजपूत समुदाय से प्रत्याशी उतारा है. ऐसे ही बीजेपी ने 16 जाट समुदाय को टिकट दिया है तो 24 ओबीसी, 11 ब्राह्मण, दो मुस्लिम, 10 पंजाबी, 6 वैश्य और तीन राजपूत उम्मीदवार उतारे हैं.
बीजेपी की हैट्रिक लगाने की तैयारी
हरियाणा के सियासी मिजाज को समझते हुए कांग्रेस और बीजेपी ने अपनी-अपनी सियासी बिसात बिछाने की कवायद की है. बीजेपी गैर-जाट वाली सोशल इंजीनियरिंग के जरिए लगातार दो बार हरियाणा की जंग फतह कर चुकी है और अब सत्ता की हैट्रिक लगाने के लिए उतरी है. बीजेपी ने ओबीसी, ब्राह्मण और पंजाबी के साथ जाटों पर भी भरोसा जताया है. इसके अलावा दलित समुदाय के लिए सुरक्षित 17 सीट पर कैंडिडेट उतारे है. बीजेपी की सियासत अभी तक गैर-जाट वोटों को हासिल करने पर रही है, लेकिन इस बार उसकी कोशिश जाटों को भी साथ लेकर चलने की है. बीजेपी इस बात को समझ रही हैं कि वो जाट वोटों के बिना सत्ता की जंग फतह नहीं कर सकती है.
BJP ने सैलजा के मुद्दे को बनाया हथियार
बीजेपी दलित वोटों को साधने के लिए कुमारी सैलजा के मुद्दे को कांग्रेस के खिलाफ सियासी हथियार बनाने में जुटी है. राहुल गांधी के द्वारा अमेरिका में दिए गए आरक्षण वाले बयान को बीजेपी नेता अपनी हर रैली में उठा रहे हैं. केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह तक ने आरक्षण और सैलजा के बहाने दलितों को अपने पाले में लाने की कवायद की है. बीजेपी की कोशिश जाट, ओबीसी, दलित के साथ ब्राह्मण और पंजाबी समुदाय के वोटबैंक को साधने की है. इसीलिए पार्टी ने पूरा दांव इन्हीं पर बिछा रखा है.
हरियाणा में ओबीसी वोटर 30 से 35 फीसदी है. बीजेपी ने ओबीसी वोटों के अपने पाले में रखने के लिए 24 प्रत्याशी उम्मीदवार उतारे हैं तो कांग्रेस ने 20 सीटों पर टिकट देकर सियासी संदेश देने का दांव चला है. बीजेपी ने ओबीसी चेहरे से आने वाले नायब सिंह सैनी को आगे कर रखा है तो गुर्जर और यादव समाज पर भी बड़ा भरोसा जताया है. कांग्रेस की नजर ओबीसी वोटों को अपने पाले में रखने ही है, लेकिन जाट और दलित वोटों को खास अहमियत दी है. ऐसे में कांग्रेस की स्ट्रैटेजी जाट-दलित समीकरण के साथ ओबीसी, पंजाबी और मुस्लिम को भी साधकर रखने की है.
कितने मुस्लिमों को दिया टिकट?
कांग्रेस नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा भले ही 36 बिरादरी की दुहाई दे रहे हैं, लेकिन 30 से 35 फीसदी ओबीसी को सिर्फ 20 टिकट दिए हैं तो जाट समुदाय से 35 प्रत्याशी उतारे हैं. ऐसे ही बीजेपी ने मेवात बेल्ट में मुस्लिम वोटों की सियासी अहमियत को देखते हुए दो प्रत्याशी उतारे है तो कांग्रेस ने पांच मुस्लिमों को टिकट दिया है. सात फीसदी के करीब मुस्लिम वोटर कांग्रेस का कोर वोटबैंक माना जाता है, लेकिन इनेलो और जेजेपी जैसे दलों ने भी उस पर दांव खेला है.
ब्राह्मण वोटरों पर फोकस
हरियाणा में ब्राह्मण वोटर 8 से 9 फीसदी के बीच है. बीजेपी ने ब्राह्मणों को कांग्रेस से ज्यादा तव्वजे इस बार के चुनाव में दी है. बीजेपी ने 11 ब्राह्मणो पर दांव खेला है तो कांग्रेस ने 6 कैंडिडेट उतारे हैं. ब्राह्मण समुदाय एक समय कांग्रेस का परंपरागत वोटर माना जाता रहा, लेकिन फिलहाल बीजेपी के साथ खड़ा नजर आ रहा है. इसी तरह हरियाणा में 9 फीसदी के करीब पंजाबी वोटर है, जिन्हें अपने पाले में करने के लिए बीजेपी ने 10 उम्मीदवार उतार रखे हैं तो कांग्रेस ने 8 टिकट पंजाबी समुदाय के लोगों को दिए हैं.
हरियाणा में जाट और गैर-जाट वोट की सियासी बिसात बिछाकर दो बार सत्ता अपने नाम करने वाली बीजेपी इस बार अलग सोशल इंजीनियरिंग के साथ उतरी है और जाट वोटों को भी जोड़ने का दांव चल रही है. हरियाणा की आबादी में जाट 25 से 24 फीसदी हैं. माना जाता है कि जाट वोट बैंक बीजेपी के साथ नहीं जाता है. हरियाणा में जाट ओबीसी का दर्जा हासिल करने के लिए कई बार सड़कों पर उतर चुके हैं, लेकिन बीजेपी इस मांग को पूरा नहीं कर सकी. किसान आंदोलन में भी जाटों की अच्छी ख़ासी भागीदारी थी और पहलवानों के आंदोलन में भी यह समुदाय साथ खड़ा था. ऐसे में कांग्रेस ने जाट और दलित के साथ ओबीसी को भी साधने की कवायद में है. देखना है कि जातीय की सियासी बिसात पर कौन हरियणा की बाजी अपने नाम करता है?
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