Political – जम्मू कश्मीर चुनावः अंतिम चरण में सज्जाद लोन, इंजीनियर रशीद के भाई समेत इन 7 अहम चेहरों की साख दांव पर- #INA

सज्जाद गनी लोन, रमन भल्ला, हर्ष देव सिंह, शाम लाल शर्मा, खुर्शीद अहमद शेख (जम्मू कश्मीर चुनाव तीसरा चरण)

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल धारा 370 पर फैसला सुनाते हुए जम्मू कश्मीर में चुनाव कराने की समयसीमा 30 सितंबर ही तय की थी. चुनाव की प्रक्रिया तो आज समाप्त नहीं हो रही पर अंतिम दौर की वोटिंग के लिए प्रचार जरूर थम चुका है. 1 अक्टूबर (मंगलवार) को बची हुई 40 सीट (जम्मू – 24 और कश्मीर – 16) पर वोट डाले जाएंगे. 39 लाख के करीब वोटर्स 7 जिलों (कुपवाड़ा, बारामुला, बांदीपोरा, उधमपुर, सांबा, कठुआ और जम्मू) के 415 कैंडिडेट्स की किस्मत का फैसला करेंगे.मोटे तौर पर जम्मू का मुकाबला (बीजेपी बनाम कांग्रेस) और कश्मीर में (कांग्रेस-नेशनल कांफ्रेंस गठबंधन बनाम पीडीपी बनाम पीपल्स कांफ्रेंस बनाम आवामी इत्तेहाद पार्टी) नजर आ रहा है.

आइये एक नजर उन प्रमुख नामों पर डालें जिनकी साख अंतिम चरण में दांव पर लगी हुई हैः-

1. ताराचंद – जब 2008 विधानसभा चुनाव के बाद जब जम्मू कश्मीर में किसी भी पार्टी को बहुमत में नहीं आई तो नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस साथ आए. इस सरकार के मुख्यमंत्री तो उमर अब्दुल्ला बने पर कांग्रेस ने उपमुख्यमंत्री के लिए अपनी तरफ से जिसे चुना, वह ताराचंद ही थे. करीब 6 बरस राज्य के डिप्टी सीएम रहे ताराचंद जम्मू क्षेत्र के बड़े दलित नेताओं में गिने जाते हैं. वह पीडीपी-कांग्रेस की सरकार में (2002 से 2008) विधानसभा के स्पीकर रहने के अलावा कांग्रेस की राज्य ईकाई के अध्यक्ष भी रह चुके हैं. गुलाम नबी आजाद के कांग्रेस छोड़ने के दौरान कुछ वक्त के लिए जरुर उन्होंने कांग्रेस से मुंह मोड़ लिया था मगर फिर बहुत जल्द घर वापस आ गए.

जम्मू जिले के अंतर्गत कुल 11 विधानसभा की सीटे हैं. इन्हीं में से एक – चंब विधानसभा तारा चंद की लंबे अरसे तक पहचान रही है. 1996 से लेकर 2014 तक लगातार 18 साल वह यहां के विधायक रहे. 2014 के विधानसभा चुनाव में उन्हें भाजपा के कृष्ण लाल से हार मिली. मगर इस दफा वह फिर से अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा हासिल करने के लिए जद्दोजहद कर रहे है. चंब में उनका मुकाबला बीजेपी के राजीव शर्मा से है. इस सीट पर दलित आबादी ठीक-ठाक होने से बहुजन समाज पार्टी ने भी मलकीत कुमार को खड़ा किया है मगर असल मुकाबला ताराचंद और राजीव शर्मा के बीच ही माना जा रहा है.

2. रमन भल्ला – हालिया विधानसभा चुनाव की घोषणा के ठीक बाद कांग्रेस ने जम्मू कश्मीर प्रदेश कांग्रेस कमिटी का अध्यक्ष तारीक हमीद कर्रा को बनाया. चूंकि कर्रा का ताल्लुक कश्मीर घाटी से था, पार्टी ने संतुलन साधने के लिए दो जम्मू के नेताओं को कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया. रमन भल्ला उनमें से एक थे. भल्ला दो बार जम्मू जिले के अंतर्गत आने वाली गांधीनगर सीट से विधायक चुने जा चुके हैं. इस चुनाव में वह बासमती चावल की शानदार उपज के लिए मशहूर आरएस पोरा – जम्मू दक्षिण सीट से कांग्रेस के प्रत्याशी हैं. एक वक्त तक एससी समुदाय के लिए आरक्षित रही यह सीट अब सामान्य हो चुकी है.

जम्मू कश्मीर की चुनिंदा सीटें जहां बीजेपी पिछले दो विधानसभा चुनाव से जीत दर्ज कर रही है, उनमें से एक आरएस पोरा है. भल्ला का सामना यहां बीजेपी के राष्ट्रीय सचिव नरिंदर सिंह रैना से है. रैना के अलावा भल्ला के लिए यहां एक दूसरी मुसीबत चौधरी घारु राम हैं जो इस चुनाव में गुलाम नबी आजाद की डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी से चुनाव लड़ रहे हैं. आरएस पोरा एक वक्त में कांग्रेस के करन सिंह और पीडीपी के संस्थापक मुफ्ती मोहम्मद सईद की सीट भी रह चुकी है. लगातार तीन चुनाव (2014 विधानसभा और 2019, 2024 लोकसभा) हारने के बाद भल्ला के लिए यहां रही-सही सियासी वजदू बचाने की लड़ाई है.

3. हर्ष देव सिंह – उधमपुर जिले के अंतर्गत आने वाली चार विधानसभा सीटों में से एक चेनानी में कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस ने अपना कैंडिडेट नहीं उतारा है. इंडिया गठबंधन यहां जम्मू कश्मीर नेशनल पैंथर्स पार्टी के अध्यक्ष हर्ष देव सिंह को समर्थन कर रहा है. चेनानी ही से लगी हुई रामनगर विधानसभा पैंथर्स पार्टी खासकर हर्ष देव सिंह की लंबे समय तक पहचान रही है. सिंह 1996 से लेकर 2014 तक, करीब 18 साल इस सीट के विधायक रहे हैं. हालांकि, 2014 में बीजेपी के रनबीर सिंह ने हर्ष सिंह को यहां हरा दिया था.

2022 में हुए परिसीमन के बाद रामनगर की सीट एससी समुदाय के लिए आरक्षित हो गई. और चेनानी, जो पिछले चुनाव तक आरक्षित थी, सामान्य हो गई. ऐसे में, हर्ष देव सिंह रामनगर छोड़कर चेनानी आ गए. भारतीय जनता पार्टी ने हर्ष देव सिंह को पटखनी देने के लिए उनके परिवार ही के बलवंत सिंह मनकोटिया को उतारा. मनकोटिया 2002 से 2014 के बीच उधमपुर विधानसभा का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. दो साल पहले उन्होंने बीजेपी का दामना थामा था.

4. शाम लाल शर्मा – तीसरे चरण की वोटिंग से ठीक पहले जम्मू कश्मीर में एक आवाज सुनाई दी – “जम्मू कश्मीर में एक डोगरा हिंदू के मुख्यमंत्री बनने का समय या तो अब है या फिर कभी नहीं. अगर कम आबादी होते हुए भी महाराष्ट्र में एक मुस्लिम मुख्यमंत्री बन सकता है तो फिर जम्मू कश्मीर में एक हिंदू मुख्यमंत्री क्यों नहीं हो सकता जबकि यहां तो हिंदुओं की आबादी 32 फीसदी है.” ये मांग उठाने वाला और कोई नहीं बल्कि बीजेपी नेता शाम लाल शर्मा थे. जो फिलहाल जम्मू कश्मीर भाजपा के उपाध्यक्ष भी हैं.

शर्मा जम्मू उत्तर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. ये सीट 2022 में हुए परिसीमन के बाद ही वजूद में आई है. शर्मा का यहां मुकाबला नेशनल कांफ्रेंस के अजय साधोत्रा से है. साधोत्रा नेशनल कांफ्रेंस के टिकट पर मार्ह विधानसभा से 1996 और 2002 में विधायक चुने जाते रहे हैं. 1996 से 2002 के बीच फारूक अब्दुल्ला की सरकार में साधोत्रा कृषि, परिवहन, ग्रामीण और पंचायती मामलों के मंत्री भी रह चुके हैं. इस तरह शाम लाल शर्मा का मुकाबला करने के लिए नेशनल कांफ्रेंस ने अपने दिग्गज नेता पर दांव लगाया है.

5. चौधरी लाल सिंह – जनवरी 2018 में कठुआ जिले के रासाना गांव में एक आठ बरस की लड़की का 7 लोगों ने अपहरण, सामूहिक बलात्कार और हत्या किया. इस घटना के बाद देश भर में भयानक गुस्सा देखने को मिला लेकिन जम्मू कश्मीर में घटना को लेकर ध्रुवीकरण हो जाने के बाद आरोपियों के पक्ष में रैली निकली. चौधरी लाल सिंह की उस रैली में मौजदूगी ने उनकी छवि पर हमेशा के लिए धब्बा लगा दिया. बाद में सिंह सफाई देते रहे मगर यह दाग उनके साथ नत्थी हो गया.

लाल सिंह बतौर भारतीय जनता पार्टी के सदस्य पीडीपी-बीजेपी सरकार में मंत्री भी रहे. लेकिन 2018 में वह पार्टी से अलग हो गए और डोगरा स्वाभीमान संगठन पार्टी की आधारशिला रखी. हालांकि, 2024 लोकसभा चुनाव से ठीक पहले सिंह ने एक बार फिर से करवट लिया और कांग्रेस में शामिल हो गए. लाल सिंह केंद्रीय मंत्री जितेन्द्र सिंह के खिलाफ चुनाव लड़े लेकिन जितेन्द्र सिंह को हरा नहीं सके. अब वह विधानसभा चुनाव में कठुआ जिले की बासोहली विधासनभा सीट से प्रत्याशी हैं.

लाल सिंह पहले भी 1996, 2002 और 2014 विधानसभा में इस सीट का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. इस दफा उनका मुकाबला बीजेपी के दर्शन कुमार और पीडीपी के योगिंदर सिंह से है. जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव में जिन सीटों पर सबसे कम कैंडिडेट्स हैं, उनमें बासोहली की सीट है. यहां केवल 4 कैंडिडेट आमने-सामने हैं. निर्दलीय कैंडिडेट की भरमार वाले चुनाव में इस सीट पर एक भी आजाद उम्मीदवार चुनावी मुकाबले में नहीं है.

6. सज्जाद गनी लोन – नॉर्थ कश्मीर की जिन 16 सीटों पर तीसरे चरण में वोटिंग होनी है, उन पर इंजीनियर रशीद के अलावा दूसरे चौंकाने वाले फैक्टर सज्जाद गनी लोन हो सकते हैं. लोन कश्मीरी अलगाववादी नेता अब्दुल गनी लोन के बेटे और जम्मू कश्मीर पीप्लस कांफ्रेंस के मुखिया हैं. 2014 के विधासनभा चुनाव में सज्जाद लोन कुपवाड़ा जिले की हंदवाड़ा सीट से विधायक चुने गए थे. लोन इस बार हंदवाड़ा के अलावा कुपवाड़ा सीट से भी चुनाव लड़ रहे हैं. लोन की पार्टी 2014 के चुनाव में यही दोनों सीट जीती थी.

सज्जाद लोन के पिता ही की छत्रछाया में इंजीनियर रशीद ने राजनीति की बारीकियां सीखी थीं. मगर हालिया लोकसभा चुनाव में रशीद ने बारामूला की सीट जीतने के साथन केवल उमर अब्दुल्ला बल्कि सज्जाद लोन को भी हार का स्वाद चखाया था. इस विधानसभा चुनाव में खासकर रशीद के जेल से बाहर आने के बाद लोन और रशीद के बीच बेहद तल्ख बयानबाजी देखने को मिली है. नॉर्थ कश्मीर खासकर कुपवाड़ा की जनता दोनों में किस पर अधिक ऐतबार करती है, देखने वाला होगा.

7. खुर्शीद अहमद शेख – इंजीनियर रशीद इस विधानसभा चुनाव में कितने बड़े फैक्टर होंगे, इस पर सभी की निगाहें हैं. उसमें भी दिलचस्पी के साथ लोग यह देख रहे हैं कि कुपवाड़ा जिले की लंगेट सीट पर क्या होता है. यहां रशीद ने अपने भाई खुर्शीद अहमद शेख को खड़ा किया है. सांसद होने से पहले लगातार दो दफा इंजीनियर रशीद इसी सीट से चुने जाते रहे. रशीद के लोकसभा चुनाव जीतने के बाद उनके भाई ने सरकारी नौकरी से इस्तीफा दिया और लंगेट के चुनावी दंगल में कूद गए.

खुर्शीद का मुकाबला सज्जाद लोन की पीपल्स कांफ्रेंस के कैंडिडेट इरफान पंडितपुरी और पीडीपी के सईद गुलाम नबी से है. नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस ने संयुक्त तौर पर यहां इश्फाक अहमद को खड़ा किया है. इनके इलावा जमात ए इस्लामी के बड़े नेता गुलाम कादिर लोन के बेटे डॉक्टर कलीमुल्लाह भी यहां से निर्दलीय लड़ रहे हैं. करीब 3 दशक तक जहां नेशनल कांफ्रेंस की तूती बोलती रही, वहां क्या वो वापसी करेगी या फिर इंजीनियर रशीद अपने भाई को जिता ले जाएंगे या लोन की पार्टी चौंकाएंगी?

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