Sports – Mars Mission: पृथ्वी से मंगल तक पहुंचने में लगेंगे सिर्फ इतने दिन, NASA भेजेगा लाल ग्रह पर मानव मिशन #INA

NASA Mars Mission: नासा के साथ दुनियाभर के तमाम देश पृथ्वी के बाहर किसी दूसरे गृह पर जीवन की तलाश कर रहे हैं. इसमें मंगल ग्रह सबसे अहम है. क्योंकि पृथ्वी के वायुमंडल के बाहर मंगल ही एक ऐसा ग्रह है जो पृथ्वी के सामान है. हालांकि ये पृथ्वी से काफी दूर होने की वजह से यहां तक मानव मिशन भेजना ज्यादा मुश्किल और खर्चीला है, लेकिन अब नासा ने उसका भी तोड़ ढूंढ निकाला है. जिससे पृथ्वी से मंगल ग्रह तक पहुंचने में काफी कम समय लगेगा.

परमाणु रॉकेट विकसित कर रहा नासा

दरअसल, मंगल ग्रह पर कम समय में पहुंचने के लिए नासा परमाणु रॉकेट विकसित कर रहा है. इस रॉकेट के जरिए पृथ्वी से मंगल ग्रह तक मात्र 100 दिनों में पहुंचा जा सकेगा. बता दें कि वर्तमान में मंगल मिशनों के लिए जिन रॉकेटों का प्रयोग किया जाता है, उनसे धरती से लाल ग्रह तक पहुंचने में 210 दिनों का वक्त लगता है.

न्यूक्लियर थर्मल प्रॉपल्शन दिया गया है नाम

बता दें कि जॉर्जिया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में परमाणु इंजीनियरिंग के एसोसिएट प्रोफेसर और नासा की इस परियोजना से जुड़े वैज्ञानिक डैन कोटलियार ने बताया कि इस तकनीक को ‘न्यूक्लियर थर्मल प्रॉपल्शन’ (NTP) नाम दिया गया है. दरअसल, नासा एक ऐसा रॉकेट बनाने के काम में जुटा है जिसमें परमाणु ईंधन का इस्तेमाल किया जा सके.

ज्यादा शक्तिशाली होते हैं परमाणु रॉकेट

दरअसल, परमाणु रॉकेट पारंपरिक रॉकेटों की तुलना में दो गुना ज्यादा ताकतवर  होते हैं. जिससे आधे समय में ही मंगल ग्रह की 40 करोड़ किलोमीटर दूर को तय किया जा सकेगा. हालांकि, इस मिशन में उन्हें ऊर्जा देने वाले रिएक्टरों को डिजाइन करना सबसे बड़ी चुनौती है. प्रोफेसर डैन कोटलियार के मुताबिक, नासा और डिफेंस एडवांस्ड रिसर्च प्रोजेक्ट्स एजेंसी संयुक्त रूप से एनटीपी तकनीक विकसित कर रहे हैं. जिसमें वह साल 2027 में अंतरिक्ष में इससे संबंधित प्रोटोटाइप सिस्टम प्रदर्शित करने की योजना पर काम कर रहे हैं.

जानें कैसे काम करेगा ये रॉकेट

बता दें कि ये रॉकेट न्यूक्लियर थर्मल प्रॉपल्शन तकनीक पर काम करेगा. जिसमें एक न्यूक्लियर रिएक्टर का इस्तेमाल किया जाता है. जो लिक्विड हाइड्रोजन प्रॉपेलेंट को गर्म करता है जिससे प्लाज्मा बनता है. इस प्लाज्मा को रॉकेट के नॉजल से निकाला जाता है जिससे रॉकेट को आगे बढ़ने के लिए तेज गति मिलती है. बता दें कि नासा द्वारा अब तक विकसित किए गए रॉकेट रासायनिक रूप से संचालित होते हैं. परमाणु संचालित पनडुब्बियों में भी इसी तरह की तकनीकी का इस्तेमाल होता है. हालांकि अंतरिक्ष के क्षेत्र में इसे लेकर कई प्रकार की तकनीकी चुनौतियां भी शामिल हैं.


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