परीक्षा पास करना के लिए बच्चों को कोचिंग क्लास दिलवाना गलत, नारायणमूर्ति की पेरेंट्स को नसीहत #INA
इंफोसिस के सह-संस्थापक एनआर नारायणमूर्ति ने सोमवार को बच्चों के माता-पिताओं से कोचिंग क्लासेस की कड़ी आलोचना की. उन्होंने कहा कि कोचिंग क्लासेस छात्रों के लिए उनकी परीक्षाओं में सफल होने का प्रभावी साधन नहीं होता है. उन्होंने नसीहत दी कि बच्चों को पढ़ाई के लिए एक अनुशासनात्मक माहौल देना जरूरी होता है. दरअसल, नारायणमूर्ति से पूछा गया था कि आजकल सोशल मीडिया सहित कई चीजें बच्चों का ध्यान भटका रही हैं, ऐसे में उनका ध्यान पढ़ाई में लगा रहे इसके लिए क्या करना जरूरी होगा.
एनआर नारायणमूर्ति ने आगे कहा कि बच्चों को परीक्षाओं के लिए तैयार करने के लिए कोचिंग क्लासेस पर भरोसा नहीं किया जा सकता. उन्होंने कहा कि जो बच्चे क्लास में टीचर की बातों को ध्यानपूर्वक सुनते नहीं है, सिर्फ उनको कोचिंग की जरूरत पड़ती है. मूर्ति कहते हैं, “परीक्षा पास करने के लिए कोचिंग की मदद लेना गलत तरीका है।” उन्होंने ये टिप्पणियां बेंगलुरू में पॉल हेविट की सर्वाधिक बिकने वाली पुस्तक ‘कॉन्सेप्चुअल फिजिक्स’ बाय पियर्सन के 13वें संस्करण के विमोचन के दौरान कीं।
मूर्ति ने कहा कि जब हम भारत में STEM एजुकेशन मजबूत करने पर काम कर रहे हैं, तो यह जरूरी है कि हमारे छात्रों के पास विश्व स्तरीय संसाधन हों. पॉल जी हेविट द्वारा लिखित ‘कॉन्सेप्चुअल फिजिक्स’ इसका एक बेहतरीन उदाहरण है, जिसमें भौतिकी को और अधिक प्रासंगिक बनाने के लिए वैचारिक समझ और वास्तविक दुनिया के अनुप्रयोगों पर जोर दिया गया है.”
इसके अलावा, मूर्ति ने इस सवाल का सीधा जवाब दिया कि क्या IIT और NIT जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में जगह पाने के लिए कोचिंग संस्थान महत्वपूर्ण हैं. उन्होंने कहा, “कोचिंग कक्षाओं में जाने वाले अधिकांश लोग स्कूल में अपने शिक्षकों की बात ध्यान से नहीं सुनते हैं. और माता-पिता, जो अक्सर अपने बच्चों की शैक्षणिक मदद करने में असमर्थ होते हैं, कोचिंग केंद्रों को एकमात्र समाधान के रूप में देखते हैं.”
उन्होंने जोर देकर कहा कि शिक्षा को वास्तविक दुनिया की चुनौतियों का समाधान करने के लिए आवश्यक अवलोकन, विश्लेषण और परिकल्पना-परीक्षण कौशल पर केंद्रित होना चाहिए. मूर्ति ने कहा, “शिक्षा का लक्ष्य यह सीखना है कि कैसे सीखना है.” उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि रटने के बजाय समझ और आलोचनात्मक सोच बच्चे की शिक्षा का आधार होनी चाहिए.
मूर्ति ने यह भी बताया कि किस तरह से यह शैक्षणिक दृष्टिकोण नवाचार को प्रोत्साहित कर सकता है। उन्होंने 1993 में इंफोसिस में आयोजित एक कार्यशाला का जिक्र किया, जिसमें एक चपरासी ने नवाचार के वास्तविक अर्थ के बारे में पूछा था।
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