देश- J&K की वो सीट, जहां CM को मिले 63 फीसदी वोट, बाकी उम्मीदवारों की जब्त हो गई थी जमानत- #NA

जम्मू-कश्मीर में इस बार चुनाव में सिर्फ एक पूर्व मुख्यमंत्री ही मैदान में किस्मत आजमा रहे हैं.

जम्मू-कश्मीर में एक दशक के लंबे इंतजार के बाद विधानसभा चुनाव हो रहे हैं. साल 2014 के बाद अब हो रहे चुनाव को लेकर इस केंद्र शासित प्रदेश में खासा माहौल दिख रहा है. विधानसभा चुनाव को लेकर खास बात यह है कि इस बार कई बड़े चेहरे चुनाव मैदान में चुनौती पेश करते नहीं दिख रहे हैं जिसमें घाटी के 3 कद्दावर नेता भी शामिल हैं. ये तीनों नेता प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की कमान भी संभाल चुके हैं. इसमें एक नेता ऐसा भी है जिसने चुनाव में 63 फीसदी वोट हासिल कर बाकी प्रत्याशियों की जमानत ही जब्त करवा दी थी.

लंबे इंतजार के बाद कराए जा रहे विधानसभा चुनाव में प्रदेश की सियासत के 3 बड़े सूरमा जो चुनावी समर में उतर नहीं रहे हैं, उसमें बुजुर्ग नेता फारूक अब्दुल्ला के अलावा महबूबा मुफ्ती और गुलाम नबी आजाद शामिल हैं. इसमें गुलाम नबी आजाद वो अकेले नेता हैं जो अपनी पुरानी पार्टी छोड़ चुके हैं, बाकी दोनों अपनी-अपनी पार्टी के अगुवा बने हुए हैं.

भद्रवाह सीट पर 13 में से 12 की जमानत जब्त

अगस्त 2019 से पहले जम्मू-कश्मीर में धारा 370 लागू था और उसे विशेष राज्य का दर्जा मिला हुआ था तब यहां पर 5 साल की जगह 6 साल में विधानसभा चुनाव कराए जाते थे. बात साल 2008 के चुनाव की है. तब जम्मू-कश्मीर में हुए विधानसभा चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, और उसे 85 सीटों में से 28 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी 21 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर रही. कांग्रेस के खाते में 17 सीटें आईं. जबकि भारतीय जनता पार्टी को 11 सीटें ही नसीब हुईं.

इसी चुनाव में जम्मू संभाग में आने वाले डोडा जिले की भद्रवाह विधानसभा सीट पर एकतरफा मुकाबला हुआ था. तब यहां पर कुल 93,183 वोटर्स थे. मैदान में 13 प्रत्याशियों ने अपनी चुनौती पेश की, लेकिन मुकाबला कांग्रेस के गुलाम नबी आजाद और भारतीय जनता पार्टी के दया कृष्ण के बीच रहा. गुलाम नबी को कुल पड़े वोटों में से करीब 63 फीसदी वोट मिले. उनके खाते में 38,238 वोट आए.

NC-PDP को नहीं मिले 10 हजार वोट

तत्कालीन मुख्यमंत्री और कांग्रेस प्रत्याशी गुलाम नबी आजाद को चुनौती देने वाले दया कृष्ण को महज 14.5 फीसदी वोट ही मिले. इन दोनों के अलावा अन्य प्रत्याशियों को भी कहीं कम वोट मिले. हालत यह रही कि चुनाव में उतरे 13 उम्मीदवारों में से 12 की तो जमानत ही जब्त हो गई थी. गुलाम नबी आजाद ने 48 फीसदी (29,436 वोट) मतों के अंतर से जीत हासिल की. यहां पर नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) और पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) के दोनों प्रत्याशियों को मिलाकर 10 हजार वोट भी हासिल नहीं हुए.

इस चुनावी परिणाम से थोड़ा पहले यानी 2002 के विधानसभा चुनाव में जाते हैं. इस चुनाव के जरिए जम्मू-कश्मीर में पहली बार इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) की शुरुआत की गई. इस चुनाव में भी किसी दल को पूर्ण बहुमत हासिल नहीं हुआ. नेशनल कॉन्फ्रेंस चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और उसे 28 सीटों पर जीत हासिल हुई. हालांकि बड़ी पार्टी होने के बाद भी वह सरकार बनाने में कामयाब नहीं हो सकी.

कांग्रेस का 30 साल का सूखा खत्म

दूसरी ओर, कांग्रेस (20 सीट) ने पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (16 सीट) के साथ चुनाव बाद करार कर लिया. सरकार गठन के लिए 50:50 का फॉर्मूला तय हुआ. 3 साल के लिए पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के पास मुख्यमंत्री पद रहेगा तो अगले 3 साल के लिए कांग्रेस के हाथों में मुख्यमंत्री पद रहेगा. पहले पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से मुफ्ती मोहम्मद सईद को यह पद मिला. वह 3 साल (2 नवंबर 2002 से 2 नवंबर 2005) तक सीएम रहे.

फिर यह पद कांग्रेस के खाते में आ गया. करीब 30 साल के लंबे इंतजार के बाद जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस का कोई नेता मुख्यमंत्री बना. इससे पहले आखिरी बार सैयद मीर कासिम कांग्रेस की ओर से आखिरी सीएम थे. सैयद मीर कासिम 2 बार सीएम बने. वह आखिरी बार 17 जून 1972 से लेकर 25 फरवरी 1975 तक मुख्यमंत्री रहे थे.

खुद की बड़ी जीत लेकिन कांग्रेस को झटका

पीडीपी की ओर से सीएम पद छोड़ने के बाद कांग्रेस ने वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री गुलाम नबी आजाद को अपना मुख्यमंत्री बनाया और वह विधानसभा का कार्यकाल खत्म होने तक पद पर बने रहे. गुलाम नबी आजाद 2 नवंबर 2005 से लेकर 11 जुलाई 2008 तक मुख्यमंत्री रहे. उनकी अगुवाई में कांग्रेस ने 2008 का चुनाव लड़ा, लेकिन इस बार पार्टी की सीटें कम हो गई और उसके खाते में 17 सीटें ही आईं. हालांकि उन्होंने चुनाव में बड़ी जीत जरूर हासिल की थी.

चुनाव के बाद कांग्रेस फिर से नई सरकार में साझीदार बनी. लेकिन इस बार उसने पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के साथ सरकार बनाने की जगह नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ करार कर लिया. चुनाव में सबसे अधिक 28 सीटें पाने वाली नेशनल कॉन्फ्रेंस को कांग्रेस का बहुमत मिल गया. इस बार उमर अब्दुल्ला प्रदेश के नए मुख्यमंत्री बने.

उमर अब्दुल्ला एक बार फिर उसी हाई प्रोफाइल गंदरबल सीट से चुनाव लड़ रहे हैं जहां से उनकी लगातार 3 पीढ़ी चुनाव जीतकर मुख्यमंत्री बनने में कामयाब रही. अब्दुल्ला परिवार के लिए यह सीट बेहद अहम है क्योंकि पहले उनके दादा शेख अब्दुल्ला, फिर उनके पिता फारूक अब्दुल्ला यहीं से चुनाव जीते और फिर सीएम भी बने. साल 2002 में उमर को अपने पहले ही विधानसभा चुनाव में हार मिली लेकिन 2008 में यहीं से जीतकर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी बने थे. इस बार के चुनाव मैदान में अकेले वही नेता हैं जो प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं.

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