देश – धरती के बेहद करीब से गुजरेगा 60 मंजिला एस्टेरॉयड, कक्षा बदली तो बढ़ सकता है खतरा – #INA

अंतरिक्ष से आ रहे एक अवांछित अतिथि ने धरती की सांसें अटका दी हैं। यह सामान्य से बेहद बड़े आकार का एस्टेरॉएड है, जो तेजी से पृथ्वी की तरफ बढ़ रहा है। इसका आकार किसी 60 मंजिला बिल्डिंग जितना बड़ा है। 15 सितंबर को यह धरती के बेहद करीब से गुजरेगा। इसकी दिशा में थोड़ा भी परिवर्तन हुआ तो पृथ्वी खतरे में पड़ सकती है। नासा की चेतावनी के बाद दुनियाभर की स्पेस एजेंसियां इसकी निगरानी में जुटी हैं। इस एस्टेरॉयड को ‘2024-ऑन’ नाम दिया गया है।

नासा के ‘नीयर अर्थ ऑब्जेक्ट ऑब्जर्वेशन प्रोग्राम’ की तरफ से जारी चेतावनी के बाद दुनियाभर की अंतरिक्ष अनुसंधान एजेंसियां सतर्क हो गई हैं। बीएचयू के खगोल विज्ञानी भी पृथ्वी की मौजूदा स्थिति और इस खगोलीय पिंड के आकार-प्रकार और रफ्तार के अध्ययन में जुटे हैं। बनारस के युवा खगोल विज्ञानी वेदांत पांडेय ने बताया कि यह पिंड वैसे तो पृथ्वी से लगभग 6.2 लाख मील की दूरी से गुजरेगा जो कि धरती से चंद्रमा के बीच की दूरी का दोगुना है। मगर मार्ग में थोड़ा भी परिवर्तन बेहद खतरनाक हो सकता है। 

बीएचयू के खगोल विज्ञानी डॉ. कुंवर अलकेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि अब तक के अध्ययनों में पाया गया है कि इस पिंड की रफ्तार 25 हजार मील प्रति घंटा है। इसका आकार 60 मंजिला भवन, 720 फुट या फुटबॉल के दो मैदानों के बराबर है। माना जा रहा है कि यह पिंड सॉलिड और गैस के स्वरूप में है। खगोल विज्ञानियों ने बताया कि 15 सितंबर को भारतीय समयानुसार अपराह्न 3.49 बजे यह एस्टेरॉयड धरती के सबसे करीब होगा। दुनिया के उन हिस्सों से इसे स्पष्ट देखा जा सकेगा जहां रात होगी। इसके अलावा उसी रात भारत और आसपास के देशों से भी इसे बड़ी दूरबीन से देखना संभव हो सकेगा।

रास्ता बदला तो आगाह करेगा नासा

पिछले कुछ हफ्तों से अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा ‘2024-ऑन’ पर हर सेकंड नजर रखे है। इस पिंड की रफ्तार, आकार और रास्ते को मॉनीटर किया जा रहा है। इसके रास्ते या एंगल में जरा भी बदलाव होने पर नासा आगाह करेगा और इसका मार्ग बदलने के लिए भी जतन किए जा सकते हैं। हालांकि अब तक यह खगोलीय पिंड अपने रास्ते पर ही है।

करीब आया तो करेगा नुकसान

वैज्ञानिक इस पिंड के धरती के ज्यादा करीब आने पर होने वाले नुकसान का भी आकलन कर रहे हैं। हजारों साल पहले ऐसे ही एक एस्टेरॉयड के कारण पृथ्वी से डायनासोर विलुप्त हो गए थे और पर्यावरण में भी काफी परिवर्तन हुआ था। वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर दोबारा ऐसा हुआ तो नुकसान का आकलन करना संभव नहीं होगा। वेदांत पांडेय ने बताया कि वैसे तो हर दिन छोटे आकार के हजारों खगोलीय पिंड पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में प्रवेश करते हैं मगर 2924-ऑन का आकार ही सबसे बड़ी चिंता का विषय है।

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