देश- झारखंड में बीजेपी और आदिवासी की दूरियां, कहीं बढ़ ना जाए कुर्सी पर कब्जे का इंतजार?- #NA

अमित शाह, जेपी नड्डा, चंपई सोरेन और बाबूलाल मरांडी.

हरियाणा फतह के बाद भारतीय जनता पार्टी की नजर झारखंड पर है, जहां पिछले 5 सालों से बीजेपी सत्ता से दूर चल रही है. झारखंड की सत्ता में वापसी के लिए बीजेपी ने कई रणनीतियों पर एक साथ काम करना शुरू कर दिया है. इनमें परिवर्तन यात्रा से लेकर अलग-अलग मेनिफेस्टो जारी करना शामिल है. हालांकि, पार्टी के लिए झारखंड की राह आसान नहीं है.

आदिवासी बहुल इस राज्य में मूल वोट ही बीजेपी से छिटक चुका है, जिसे वापस लाना पार्टी के लिए बड़ी चुनौती माना जा रहा है.

झारखंड में आदिवासी वोटर्स कितने अहम?

झारखंड एक आदिवासी बहुल राज्य है. 2011 की जनगणना के मुताबिक यहां पर आदिवासी करीब 26 प्रतिशत हैं. राज्य के 5 में से 4 प्रमंडल में आदिवासियों का ही दबदबा है. झारखंड में विधानसभा की 81 में से 28 सीट आदिवासियों के लिए रिजर्व है. इसी तरह लोकसभा की 14 में से 5 सीट भी आदिवासी के लिए रिजर्व है.

कुल मिलाकर कहा जाए तो झारखंड की सत्ता की चाबी आदिवासियों के पास ही है. यहां 2005 से लेकर अब तक के हर चुनाव में आदिवासी ही मुद्दा रहा है. झारखंड में अब तक बाबू लाल मरांडी, अर्जुन मुंडा, शिबू सोरेन, मधु कोड़ा, हेमंत सोरेन, चंपई सोरेन और रघुबर दास मुख्यमंत्री बने हैं.

रघुबर दास को छोड़कर बाकी के सभी 6 मुख्यमंत्री आदिवासी समुदाय से ही ताल्लुक रखते हैं. दिलचस्प बात है कि इनमें से चार पूर्व सीएम अर्जुन मुंडा, बाबू लाल मरांडी, चंपई सोरेन और मधु कोड़ा अभी बीजेपी में हैं.

झारखंड में बीजेपी से आदिवासी कैसे छिटके?

झारखंड राज्य का जब गठन हुआ, तो 2000 में पहली बार विधानसभा के चुनाव हुए. बीजेपी को आदिवासी बहुल 28 में से 11 सीटों पर जीत मिली. इस जीत के बूते पार्टी झारखंड में सरकार बनाने में कामयाब रही. बाबू लाल मरांडी मुख्यमंत्री बनाए गए.

2005 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को आदिवासी बहुल इलाकों में करारी शिकस्त मिली. पार्टी को 28 में से सिर्फ 5 सीटों पर जीत मिली. गठबंधन के सहयोग से बीजेपी किसी तरह सरकार बनाने में कामयाब हो गई. 2009 में बीजेपी को आदिवासी बहुल 9 सीटों पर जीत मिली.

2014 के चुनाव में बीजेपी ने बड़ी वापसी की और फिर से आदिवासी बहुल 28 में से 11 सीटें जीतने में कामयाब रही. बीजेपी ने इस बार झारखंड में गैर-आदिवासी सीएम बनाने का प्रयोग किया. ओबीसी समुदाय के रघुबर दास मुख्यमंत्री बनाए गए.

2019 के चुनाव में बीजेपी के लिए यह बैकफायर कर गया. बीजेपी सिर्फ 2 सीटों पर जीत पाई. हेमंत सोरेन की पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा ने आदिवासी इलाकों में एकतरफा जीत हासिल की. 2024 के लोकसभा चुनाव में भी आदिवासियों के लिए रिजर्व 5 लोकसभा सीटों पर इंडिया गठंबधन ने जीत दर्ज कर ली.

2019 के लोकसभा चुनाव में इन 5 में से 3 पर एनडीए को जीत मिली थी.

चुनाव से पहले इसलिए भी टेंशन में है बीजेपी

झारखंड में मुस्लिमों की आबादी करीब 14 प्रतिशत है, जो आमतौर पर बीजेपी को वोट नहीं करते हैं. आदिवासियों के साथ मुसलमानों के मिलने से दोनों का गठजोड़ 40 प्रतिशत के पास पहुंच जाता है. संथाल परगना और कोल्हान में आदिवासियों के साथ-साथ मुसलमानों का भी दबदबा है.

2019 के चुनाव में दोनों ही इलाकों से बीजेपी साफ हो गई थी. बीजेपी इस बार इस गठजोड़ को तोड़ने की कवायद में जुटी है.

आदिवासियों को साधने के लिए क्या कर रही बीजेपी?

जहां एक तरफ बीजेपी ने झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस गठबंधन के आदिवासी-मुस्लिम वोटबैंक में सेंध लगाने की कवायद कर रही है, वहीं पार्टी लोकल स्तर पर आदिवासी नेताओं को भी जुटा रही है.

2019 के बाद से अब तक बीजेपी ने दूसरी पार्टी के बाबू लाल मरांडी, चंपई सोरेन, लोबिन हेम्ब्रम, सीता सोरेन, मधु कोड़ा और गीता कोड़ा को अपने पाले में लाने का काम किया है.

बीजेपी को उम्मीद है कि आने वाले चुनाव में इन नेताओं के जरिए वो आदिवासी सीटों को जीतने में कामयाब होगी. चंपई सोरेन, बाबू लाल मरांडी और मधु कोड़ा झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रहे हैं.

झारखंड की 81 सीटों पर होने हैं चुनाव

झारखंड विधानसभा की 81 सीटों पर नवंबर-दिसंबर में विधानसभा के चुनाव होने हैं. यहां पर मुख्य मुकाबला बीजेपी, आजसू और जेडीयू गठबंधन का कांग्रेस, झामुमो और आरजेडी गठबंधन से है. झारखंड में इन दोनों गठबंधन के अलावा जेकेएलएम जैसी पार्टियां भी मैदान में उतरी है, जो मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने में जुटी है.

झारखंड में सरकार बनाने के लिए 41 विधायकों की जरूरत होती है. 2019 में झामुमो और कांग्रेस गठबंधन को 47 सीटों पर जीत मिली थी. बीजेपी 25 सीटों पर ही सिमट गई थी.

Copyright Disclaimer :- Under Section 107 of the Copyright Act 1976, allowance is made for “fair use” for purposes such as criticism, comment, news reporting, teaching, scholarship, and research. Fair use is a use permitted by copyright statute that might otherwise be infringing., educational or personal use tips the balance in favor of fair use.

यह पोस्ट सबसे पहले टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम पर प्रकाशित हुआ , हमने टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम के सोंजन्य से आरएसएस फीड से इसको रिपब्लिश करा है, साथ में टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम का सोर्स लिंक दिया जा रहा है आप चाहें तो सोर्स लिंक से भी आर्टिकल पढ़ सकतें हैं
The post appeared first on टीवी नाइन हिंदी डॉट कॉम Source link

Back to top button