देश- हरियाणा से सबक! कांग्रेस हाईकमान ने महाराष्ट्र में नहीं होने दिया ‘लोकल को वोकल’, सीट शेयरिंग फॉर्मूले को ऐसे किया मैनेज- #NA

नाना पटोले को पिक्चर से आउट कर कांग्रेस ने ऐसे समेटा सीटों का रायता

महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव को लेकर नामांकन प्रक्रिया शुरू हो गई है, लेकिन महाविकास अघाड़ी के भीतर सीट बंटवारे की किचकिच जारी है. सीट बंटवारे का पेच कांग्रेस ने उलझा रखा है, जिसके कारण उद्धव ठाकरे नाराज बताए जा रहे हैं. उद्धव की नाराजगी को देखते हुए कांग्रेस हाईकमान हरकत में आया है और नाना पटोले को साइड लाइन कर बालासाहेब थोराट के पेच सुझलाने की जिम्मेदारी सौंपी है.

कहा जा रहा है कि शिवसेना (उद्धव) की तरफ से साफ-साफ कह दिया गया कि सीट शेयरिंग पर कांग्रेस अध्यक्ष नान पटोले से कोई बात अब नहीं होगी. शिवसेना (उद्धव) का मानना है कि नाना पटोले जानबूझकर सीट शेयरिंग का पेच नहीं सुलझने दे रहे हैं.

सीएम बनने की ख्वाहिश हावी

नाना पटोले 2018 में बीजेपी छोड़ कांग्रेस में आए. 2019 के चुनाव में नाना विधायक बने. उद्धव जब मुख्यमंत्री बने तो नाना को विधानसभा अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंप दी गई. 2 साल तक नाना महाराष्ट्र विधानसभा के स्पीकर रहे, लेकिन फिर दिल्ली में पैरवी कर प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी ले ली.

नाना के स्पीकर कुर्सी छोड़ने के कुछ ही महीने में उद्धव की सरकार गिर गई. 2024 के चुनाव में कांग्रेस को उद्धव से कम सीटें मिली. हालांकि, कांग्रेस शिवसेना (यूबीटी) से ज्यादा सीटें जीतने में कामयाब रही.

कांग्रेस के इस परफॉर्मेंस के बाद से ही नाना पटोले सीएम बनने की ख्वाहिश लेकर बैठे थे. कहा जाता है कि नाना की कोशिश ज्यादा सीटों पर लड़कर उसे जीतने की है, जिससे मुख्यमंत्री पद पर चुनाव बाद दावेदारी की जा सके.

विदर्भ और मुंबई में फंसा दिया पेच

नाना पटोले विदर्भ से आते हैं और यहां पर उन्होंने पेच फंसा दिया. कांग्रेस विदर्भ में शिवसेना (यूबीटी) को ज्यादा हिस्सेदारी देने के पक्ष में नहीं है. विदर्भ में विधानसभा की कुल 62 सीटें हैं. 2019 में कांग्रेस यहां की 47 सीटों पर लड़ी और 15 पर जीत हासिल की.

कांग्रेस की कोशिश यहां इस बार भी 45 से ज्यादा सीटों पर लड़ने की है. शिवेसना (यूबीटी) रामटेक और नागपुर के आसपास की सीटें कांग्रेस से मांग रही हैं.

इसी तरह मुंबई की सीटों पर नाना पटोले दावा कर रहे हैं, जो शिवेसना (यूबीटी) की परंपरागत सीट है.

रायता समेट पाएंगे बाला साहेब थोराट?

कांग्रेस ने आखिरी वक्त में पूर्व अध्यक्ष और दिग्गज नेता बाला साहेब थोराट को विवाद सुलझाने की जिम्मेदारी सौंपी है. थोराट महाविकास अघाड़ी निर्माण के वक्त कांग्रेस के अध्यक्ष थे. उद्धव ठाकरे और शरद पवार से उनके बेहतरीन ताल्लुकात हैं.

हालांकि, कहा जा रहा है कि उनके लिए यह आसान नहीं है. इसकी 2 वजहें बताई जा रही है.

1. थोराट और कांग्रेस हाईकमान विदर्भ की अगर कोई सीट छोड़ भी दे तो नाना आसानी से मान जाएंगे, यह कहना मुश्किल है. 2024 के चुनाव में सांगली सीट शिवसेना (यूबीटी) को मिली थी, लेकिन यहां से कांग्रेस के नेता विशाल पाटिल निर्दलीय उतर गए. शिवसेना (यूबीटी) यहां पर तीसरे नंबर पर पहुंच गई. चुनाव बाद विशाल की कांग्रेस में वापसी हो गई.

2. सवाल टाइमिंग को लेकर भी उठ रहे हैं. नाना पटोले के खिलाफ लंबे वक्त से शिवेसना (यूबीटी) और कांग्रेस के कुछ नेता नाराज बताए जा रहे थे. हालांकि, पार्टी ने तब फैसला नहीं किया. अब नामांकन की प्रक्रिया शुरू हो गई है. ऐसे में क्राइसिस मैनेजमेंट के लिए पार्टी के पास बहुत ही कम वक्त बचा है. क्राइसिस मैनेजमेंट नहीं हो पाता है तो इसका सीधा नुकसान पार्टी को उठाना पड़ेगा.

हरियाणा में हुड्डा की वजह से हुआ खेल

हरियाणा में हाल ही में कांग्रेस पार्टी चुनाव हारी है. हार की एक वजह स्थानीय नेताओं को हर जगह तरजीह देना था. कांग्रेस के स्थानीय नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा गुट की वजह से पार्टी न तो आप से गठबंधन कर पाई और न ही इनेलो से.

हुड्डा के कहने पर ही टिकट बांटे गए, जिससे चुनाव का ध्रुवीकरण हो गया और जीती हुई बाजी कांग्रेस हार गई.

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