देश- महाराष्ट्र में नतीजों के बाद दोहराया जाएगा 2019! मुख्यमंत्री पद को लेकर क्या अपने फिर होंगे बेगाने?- #NA
महाराष्ट्र में सीएम पद पर सस्पेंस बरकरार
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव की लड़ाई बीजेपी नेतृत्व वाले एनडीए और कांग्रेस के अगुवाई वाले इंडिया गठबंधन के बीच मानी जा रही है. सत्ता पर काबिज होने के लिए भले ही दो गठबंधन के बीच मुकाबला हो, लेकिन सत्ता की बागडोर किसके हाथ यानी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कौन विराजमान होगा, यह तस्वीर न ही एनडीए में साफ है और न ही इंडिया गठबंधन में. ऐसे में सवाल उठता है कि महाराष्ट्र चुनाव के नतीजे आने के बाद दोनों गठबंधन में शामिल दल चुनाव बाद भी अपने पुराने गठबंधन के प्रति अपनी निष्ठा बनाए रखेंगे या फिर 2019 की तरह होगा खेला?
महाराष्ट्र में बीजेपी, एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ रही है. इसी तरह से कांग्रेस भी उद्धव ठाकरे की शिवसेना (यूबीटी) और शरद पवार की एनसीपी (एस) के साथ मिलकर चुनावी मैदान में उतरी है. इस तरह दोनों गठबंधन के बीच दलों के बीच सीटें तय हैं, लेकिन सीएम पद पर तस्वीर साफ नहीं है. यही वजह है कि चुनाव नतीजे आने के बाद सत्ता की कमान संभालने को लेकर संग्राम छिड़ सकता है.
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने यह साफ कर दिया है कि एकनाथ शिंदे मौजूदा मुख्यमंत्री हैं, लेकिन महाराष्ट्र नए सीएम का फैसला चुनाव नतीजे आने के बाद एनडीए में शामिल तीनों दल बैठक कर तय करेंगे. इससे एक बात को साफ हो गई है कि शिंदे एनडीए के सीएम चेहरा नहीं है और चुनाव के बाद बीजेपी अपने पत्ते खोलेगी. इसी तरह की स्थिति इंडिया गठबंधन में भी है, कांग्रेस, उद्धव ठाकरे और शरद पवार मिलकर जरूर चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन सीएम पद को लेकर तीनों ही दलों की नजर है. शरद पवार ने भी अमित शाह की तर्ज पर कहा है कि गठबंधन नतीजे आने के बाद सीएम पद के लिए विमर्श करेगा.
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में सीएम पद पर सस्पेंस बरकरार है. एनडीए और इंडिया ब्लाक दोनों ही गठबंधन महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में उतरे हैं, लेकिन पांच साल में जिस तरह कुर्सी को लेकर विवाद रहा और तीन-तीन मुख्यमंत्री मिले, शिवसेना और एनसीपी में टूट हुई दो धड़ों में बंट गई, लेकिन अब उसी अहम सवाल पर दोनों गठबंधन चुप हैं. सीएम पद के अलावा कई अहम मुद्दों पर दोनों गठबंधनों के सहयोगियों के बीच गहरे मतभेद हैं.
सीएम के चक्कर में टूटी दोस्ती और पार्टी
2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी और शिवसेना (संयुक्त) मिलकर चुनाव लड़ी थीं, लेकिन मुख्यमंत्री पद को लेकर नजरिया साफ नहीं किया था. महाराष्ट्र के चुनावी नतीजे एनडीए के पक्ष में आए थे, लेकिन सीएम पद को लेकर बीजेपी-शिवसेना की 25 साल की दोस्ती टूट गई. उद्धव ठाकरे ने बीजेपी के साथ गठबंधन तोड़कर कांग्रेस और एनसीपी से हाथ मिला लिया था. उद्धव ठाकरे अपनी सरकार गठन की कवायद में जुटे थे, लेकिन अचानक राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने फडणवीस को सीएम और अजित पवार को डिप्टी सीएम पद की शपथ दिला दी.
हालांकि, देवेंद्र फडणवीस के शपथ लेने के बाद बहुमत साबित करने से पहले इस्तीफा देना पड़ा. 80 घंटे बाद शिवसेना ने एनसीपी-कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई और उद्धव ठाकरे सीएम बने. उद्धव ठाकरे और शिवसेना का कहना था कि बीजेपी ने सत्ता का ढाई-ढाई साल की सरकार का फॉर्मूला तय किया था, लेकिन चुनाव के बाद पलट गई थी. इसके चलते बीजेपी से गठबंधन तोड़कर कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बनानी पड़ी.
उद्धव ठाकरे से हिसाब बराबर करने के लिए बीजेपी ने ढाई साल का इंतजार किया. उद्धव ठाकरे के करीबी एकनाथ शिंदे को बीजेपी ने अपने साथ मिलाकर तख्तापलट कर दिया.शिवसेना में टूट हुई और बीजेपी ने एकनाथ शिंदे को समर्थन देकर नई सरकार बना ली. शिंदे सीएम और देवेंद्र फडणवीस डिप्टी सीएम बने. एनडीए सरकार बनने के एक साल बाद एनसीपी भी दो फाड़ हो गई. शरद पवार के खिलाफ अजित पवार बगावत का झंडा उठाकर एनसीपी के करीब 40 विधायकों को लेकर एनडीए सरकार में शामिल हो गए. अजित पवार को डिप्टी सीएम की कुर्सी मिली और उनके साथ आए विधायकों को मंत्री का पद. इस तरह से महाराष्ट्र ने पांच साल में तीन-तीन मुख्यमंत्री बने.
सीएम पद पर फिर से बना सस्पेंस
बीजेपी नेतृत्व वाले एनडीए और कांग्रेस के अगुवाई वाले इंडिया ब्लॉक यानी दोनों ही गठबंधन में सीएम पद का सवाल बना हुआ है. शिवसेना का बीजेपी से गठबंधन तोड़ना और शिवसेना, एनसीपी में टूट की वजह सीएम पद ही थी, फिर वैसी ही स्थिति बनी हुई है. दोनों ही गठबंधन में यह कहा जा रहा है कि चुनाव के बाद मुख्यमंत्री का फैसला होगा. बीजेपी ने भले ही उद्धव ठाकरे से हिसाब बराबर करने के लिए एकनाथ शिंदे को 2022 में सीएम बना दिया हो, लेकिन अब नहीं करेगी. चुनाव के बाद अगर बीजेपी अपना मुख्यमंत्री बनाने की कवायद करती है तो शिंदे और अजित पवार तैयार होंगे, यह कहना मुश्किल है.
एकनाथ शिंदे ने उद्धव ठाकरे से सिर्फ मुख्यमंत्री पद के लिए बगावत की थी. देवेंद्र फडणवीस ने भले ही उनका डिप्टी बनना स्वीकार कर लिया था, लेकिन एकनाथ शिंदे अब रजामंद नहीं होंगे. अजित पवार की एनसीपी के नेता प्रफुल्ल पटेल ने भी कहा है कि गठबंधन में यह तय नहीं किया है कि फडणवीस सीएम होंगे. चुनाव के बाद ही सीएम का फैसला होगा. इस तरह साफ है कि चुनाव के बाद एनडीए में सीएम पद के लिए फिर से संग्राम छिड़ेगा.
वहीं, कांग्रेस के अगुवाई वाले इंडिया गठबंधन में भी सीएम चेहरे को लेकर तस्वीर साफ नहीं है. 2019 के चुनाव बाद बीजेपी के साथ गठबंधन तोड़ने के चलते शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे को भले ही एनसीपी-कांग्रेस ने सीएम बनाने की शर्त मान ली थी, लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद स्थिति बदल गई है. कांग्रेस महाराष्ट्र में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है, जिसके चलते उसकी महत्वाकांक्षा जागी है. शरद पवार ने जिस तरह से लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन किया है, उसके चलते सत्ता पर राज करने की इच्छा जागी है.
उद्धव ठाकरे खेमा पहले ही सीएम पद की लालसा जाहिर कर चुका है और मानकर चल रहा है कि इंडिया गठबंधन अगर चुनाव जीतकर सत्ता में लौटता है तो उद्धव ठाकरे सीएम बनेंगे. ऐसे में सवाल उठता है कि जिस उद्धव ठाकरे ने इसी सवाल पर राजग से नाता तोड़ लिया, वह एमवीए की सरकार में दूसरे दल के नेतृत्व को स्वीकार करेंगे. ऐसे में फिर एक बार सियासी उथल-पुथल की संभावना बनती दिख रही है, लेकिन नतीजे के ऊपर सब निर्भर करेगा.
विचारधाराओं का नहीं कोई मेल
सीएम पद के अलावा भी कई मतभेद दोनों गठबंधन में शामिल दलों के बीच हैं. उद्धव ठाकरे की शिवसेना शुरू से ही हिंदुत्व के एजेंडे पर रही है और सावरकर को अपने आदर्श नेताओं में गिनती रही है. सीएम पद के लिए उद्धव ठाकरे ने अपने विरोधी विचारधारा वाली कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बना ली थी, लेकिन वैचारिक टकराव बना रहा. सावरकर के सवाल पर मतभेद हैं. उद्धव ठाकरे नहीं चाहते कि राज्य में कांग्रेस सावरकर के खिलाफ बोले, जबकि कांग्रेस सावरकर को लेकर बीजेपी और संघ पर सवाल खड़े करती रही. हिंदुत्व और सावरकर के मुद्दे पर कांग्रेस और उद्धव खेमे में अलग-अलग सुर सामने आते रहते हैं.
वहीं, दूसरी ओर एनडीए गठबंधन में शामिल अजित पवार की एनसीपी का भी वैचारिक स्तर पर बीजेपी के साथ मेल नहीं खा रहा. बीजेपी अपने सियासी एजेंडे के मुताबिक हिंदुत्व की बिसात पर नैरेटिव सेट कर रही है. सीएम योगी से लेकर पीएम मोदी तक बंटेंगे तो कटेंगे, एक रहेंगे, नेक रहेंगे और सेफ रहेंगे की बात कर रहे हैं तो अजित पवार को यह सूट नहीं कर रहा है. अजित पवार ने साफ कह दिया है कि महाराष्ट्र में इस तरह की सांप्रदायिक विभाजन वाली राजनीति नहीं चलने वाली है.
अजित पवार ने कहा कि महाराष्ट्र में शिवाजी महाराज और डॉ. अंबेडकर की विचारधारा चलेगी. यही नहीं बीजेपी के विरोध के बावजूद अजित पवार ने नवाब मलिक को टिकट ही नहीं दिया बल्कि पूरे दमखम के साथ उनके साथ खड़े हैं. इस तरह महाराष्ट्र में बने बेमेल गठबंधन चुनाव के बाद भी एक रहेंगे यह बड़ा सवाल है. ऐसे में देखना है कि चुनाव के बाद कौन किसके साथ कैसे रहते हैं, लेकिन सरकार गठबंधन के लिए सिर्फ 72 घंटे का ही समय मिलेगा?
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