देश- अधिकारियों को शराबबंदी पसंद, उनके लिए इसका मतलब मोटी कमाई… पटना हाईकोर्ट ने क्यों कहा ऐसा?- #NA

पटना हाई कोर्ट (सांकेतिक तस्वीर)

बिहार में शराबबंदी पर उठते सवालों के बीच पटना हाई कोर्ट ने भी तीखी टिप्पणी की है. हाई कोर्ट कहा कि अधिकारियों को शराबबंदी पसंद है और उनके लिए इसका मतलब मोटी कमाई है. इसके साथ-साथ हाई कोर्ट ने शराबबंदी कानून को लागू करने में लापरवाही बरतने पर एक पुलिस निरीक्षक के खिलाफ जारी डिमोशन के आदेश को रद्द कर दिया. अदालत ने कहा कि ये प्रावधान पुलिस के लिए उपयोगी हो गए हैं, जो तस्करों के साथ मिलकर काम करती है.

जस्टिस पूर्णेंदु सिंह ने 29 अक्टूबर को दिए अपने एक फैसले में कहा कि न केवल पुलिस अधिकारी, आबकारी अधिकारी, बल्कि वाणिज्यिक कर विभाग और परिवहन विभाग के अधिकारी भी शराबबंदी पसंद करते हैं. उनके लिए इसका मतलब मोटी कमाई है. दरअसल, शराबबंदी ने शराब और अन्य प्रतिबंधित वस्तुओं के अनधिकृत व्यापार को बढ़ावा दिया है. ये कठोर प्रावधान पुलिस के लिए एक सुविधाजनक उपकरण बन गए हैं जो कि तस्करों के साथ मिलकर काम करती है.

रिट याचिका पर सुनाया फैसला

हाई कोर्ट की ओर यह आदेश मुकेश कुमार पासवान की ओर से दायर की गई एक रिट याचिका के जवाब में आया जो पटना बाईपास थाने में एसएचओ के रूप में कार्यरत थे. आबकारी विभाग के अधिकारियों की ओर से छापेमारी के दौरान विदेशी शराब बरामद होने के बाद पासवान को सस्पेंड कर दिया गया था. जांच के दौरान खुद का बचाव करने और बेगुनाही का दावा करने के बाद भी 24 नवंबर, 2020 को राज्य सरकार ने पासवान को लेकर डिमोशन का आदेश जारी कर दिया था.

बिहार की नीतीश कुमार सरकार ने अप्रैल 2016 में पूरे राज्य में शराब पर बिक्री और उसके सेवन पर रोक लगा दिया था. शराबबंदी के बाद कई मौकों पर नीतीश कुमार सरकार की किरकिरी भी हुई, लेकिन रोक जारी रहा. विपक्षी पार्टियां आज भी शराबबंदी पर सवाल खड़े करती हैं और से पुलिस की कमाई का एक जरिया बताने से हिचकती नहीं हैं.

‘गरीबों के खिलाफ बड़ी संख्या में केस दर्ज किए गए’

कोर्ट ने कहा कि शराब की तस्करी में शामिल सरगनाओं या फिर सिंडिकेट संचालकों के खिलाफ बहुत कम मामले दर्ज किए जाते हैं, जबकि शराब पीने वाले या शराब की त्रासदी के शिकार होने वाले गरीबों के खिलाफ बड़ी संख्या में केस दर्ज किए जाते हैं. मोटे तौर पर यह राज्य के गरीब लोग हैं जो अधिनियम का खामियाजा भुगत रहे हैं.

यह कानून खुद को गलत पक्ष में पाता है: HC

हाई कोर्ट ने कहा कि सरकार ने लोगों के जीवन स्तर को ऊपर उठाने और व्यापक रूप से सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार करने के उद्देश्य से बिहार मद्यनिषेध और उत्पाद शुल्क अधिनियम, 2016 लागू किया, लेकिन कई कारणों से, इतिहास के गलत पक्ष में यह (कानून) खुद को पाता है. अदालत ने कहा कि जो लोग इस अधिनियम का प्रकोप झेल रहे हैं वो दिहाड़ी मजदूर हैं और अपने परिवार में एकमात्र कमाने वाले सदस्य हैं.

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