देश- UP उपचुनाव में हाशिए पर BSP, आखिर किधर जा रहा मायावती का जनाधार?- #NA
अखिलेश यादव, मायावती और सीएम योगी आदित्यनाथ.
उत्तर प्रदेश की सियासत में दलित-वंचित और शोषित समाज के जरिए कभी सत्ता की बुलंदी तक पहुंचनी वाली बसपा का सियासी आधार चुनाव दर चुनाव सिमटता जा रहा है. यूपी विधानसभा में एक सीट पर सीमित और 2024 के लोकसभा के बाद उपचुनाव में भी बसपा अपना खाता नहीं खोल सकी. इतना ही नहीं उपचुनाव में बसपा पश्चिमी यूपी सहित छह सीटों पर सीट पर जमानत तक नहीं बच सकी जबकि पूर्वांचल की सीट पर तीसरे नंबर पर रही.
वेस्ट यूपी की कई सीटों पर बसपा उम्मीदवारों से ज्यादा वोट चंद्रशेखर आजाद की पार्टी के उम्मीदवार को मिला है. ऐसे में बसपा का सियासी भविष्य काफी मुश्किल में नजर आ रहा है. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि मायावती का सियासी जनाधार किसकी तरफ जाएगा?
कई सीटों पर जमानत भी जब्त
विपक्ष में रहते हुए मायावती उपचुनाव से दूरी बनाए रखती थी, लेकिन मौजूदा राजनीति में अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए उपचुनाव के मैदान में उतरी थीं. बसपा ने यूपी की सभी 9 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. बसपा ने इससे पहले 2024 लोकसभा चुनाव के दौरान प्रदेश की 5 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में भी हिस्सा लिया था, लेकिन एक भी सीट नहीं जीत सकी थी. इस बार मायावती के उम्मीदवार जीतना तो दूर की बात है जमातन तक बचाने में कई असफल रहे जबकि मझवां, कटेहरी, मीरापुर जैसी विधानसभा सीटों पर बसपा का अपना सियासी दबदबा रहा है.
चंद्रशेखर की पार्टी से भी पिछड़ी बसपा
उत्तर प्रदेश में मीरापुर, खैर, मझवां और कटेहरी सीट भी सपा की तुलना में बसपा के लिए ज्यादा मुफीद रही है. इसके बावजूद बसपा नहीं जीत सकी. मीरापुर सीट पर बसपा के प्रत्याशी शाहनजर पांचवे नंबर पर रहे. बसपा को सिर्फ 3248 वोट मिले हैं. इस सीट पर चंद्रशेखर आजाद की पार्टी के प्रत्याशी जाहिद हुसैन 22661 वोटों के साथ तीसरे नंबर पर रहे. इस तरह आजाद पार्टी और AIMIM से भी कम वोट बसपा को मिला.
कुंदरकी सीट पर बसपा का हाल
कुंदरकी विधानसभा सीट पर बसपा पांचवें नंबर पर रही. बसपा के रफातुल्ला को 1099 वोट मिले हैं जबकि चंद्रशेखर आजाद के पार्टी के प्रत्याशी चांद बाबू को 14201 वोट मिले हैं. इस सीट पर चंद्रशेखर और ओवैसी को बसपा से ज्यादा वोट मिले हैं. गाजियाबाद में बसपा तीसरे नंबर पर जबकि सपा के सिंह राज जाटव दूसरे नंबर पर रहे. खैर सीट पर बसपा को 13365 वोट मिले हैं तो चौथे नंबर पर चंद्रशेखर आजाद की पार्टी को 8269 वोट मिले हैं. करहल में बसपा तीसरे नंबर पर रही और उसे 10 हजार से कम वोट मिले. सीसामऊ सीट पर बसपा के वीरेंद्र कुमार को 1400 वोट के साथ तीसरे नंबर पर रहे.
दलित समुदाय पर ढीली हो रही पकड़
फुलूपर सीट पर बसपा तीसरे नंबर पर रही, बसपा के जीतेंद्र कुमार सिंह को 20342 को वोट मिले हैं. कटेहरी विधानसभा सीट पर बसपा प्रत्याशी अमित वर्मा को 41647 वोट मिले हैं. मझवां विधानसभा सीट पर बसपा के दीपक तिवारी को 34927 वोट मिले हैं. बसपा इन तीनों ही सीटों पर भले ही जमानत बचाने में कामयाब रही हो, लेकिन तीसरे नंबर पर ही रही. इससे साफ जाहिर होता है कि बसपा प्रमुख मायावती की पकड़ दलित समुदाय पर ढीली होती जा रही है.
कहीं सपा तो कहीं बीजेपी के साथ गया दलित
पूर्वांचल की सीटों पर बसपा भले ही जमानत बचाने में सफल रही हो, लेकिन पश्चिमी यूपी में जिस तरह से करारी हार मिली है, उसने तमाम सवाल खड़े कर दिए हैं. बसपा का दलित वोट अब मायावती की पकड़ से बाहर निकल रहा है और नए राजनीतिक विकल्प की तलाश में है. पश्चिमी यूपी का दलित मतदाता बसपा से छिटकर चंद्रशेखर के मुस्लिम उम्मीदवारों के साथ थोड़ा बहुत ही खड़ा नजर आया है, लेकिन जिस तरह बसपा के प्रत्याशी हजार- दो हजार वोट तक सीमित रह गए. ऐसे में दलित वोटर कई सीट पर बीजेपी के साथ गया है तो कानपुर की सीसामऊ सीट पर सपा के साथ खड़ा नजर आया है.
कांग्रेस से भी कम वोट शेयर
यूपी की सियासी स्थिति बदल गई है. मायावती की पार्टी का खाता नहीं खुला और वोट शेयर कांग्रेस के वोट शेयर से भी नीचे आ गया था. कांग्रेस ने 17 लोकसभा सीटों पर लड़कर 9.46 फीसदी वोट शेयर पाया, जबकि बसपा को 79 सीटों पर चुनाव लड़ने के बाद 9.39 फीसदी ही वोट मिला. उपचुनाव में बसपा से खिसका दलित वोटर एक तरफ जहां चंद्रशेखर के साथ कुछ हिस्सा खड़ा नजर आया तो कुछ जगह पर बीजेपी के एक हो तो सेफ पर अपना विश्वास जताया.
दलित वोटों को लेकर नई लड़ाई
यूपी की जिन 9 सीटों पर उपचुनाव है, उनमें से एक भी सीट बसपा 2022 के चुनाव में नहीं जीत सकी थी. 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को सिर्फ बलिया की रसड़ा विधानसभा सीट पर जीत मिली थी, जहां से उमा शंकर सिंह विधायक बने हैं. लोकसभा में एक भी सांसद बसपा का नहीं है. बसपा के लिए उपचुनाव में खाता खोलने की चुनौती थी, लेकिन इस चुनाव में भी उम्मीदों पर पानी फिर गया. दलित वोटों जिस तरह चुनाव दर चुनाव मायावती के पकड़ से बाहर निकल रहा है, उसके चलते खासकर पश्चिमी यूपी में दलित वोटों को लेकर नई लड़ाई आने वाले समय में दिख सकती है.
दलित वोटबैंक पर सबकी नजर
बसपा के दलित वोटबैंक पर बीजेपी और सपा दोनों की नजर है. इसके अलावा नगीना से लोकसभा सांसद बने चंद्रशेखर आजाद तो पहले से ही दलित वोट पर अपना हक जता रहे हैं. उपचुनाव में चंद्रशेखर भले ही एक भी सीट नहीं जीत सके, लेकिन मुस्लिम उम्मीदवारों को उतारकर दलित-मुस्लिम समीकरण बनाने में काफी हद तक सफल हो गए हैं, क्योंकि कई सीट पर बसपा से ज्यादा वोट उनके प्रत्याशी को मिला है. ऐसे में चंद्रशेखर आजाद आने वाले समय में दलित वोटों को साधने के लिए काफी मशक्कत करते नजर आएंगे.
क्या अपना कोर वोटबैंक संभाल पाएंगी मायावती
वहीं, सपा प्रमुख अखिलेश यादव पीडीए फॉर्मूले के जरिए पहले ही अपनी दलित राजनीति का एजेंडा सेट कर रहे हैं. दलित वोटों को जोड़ने की लगातार कवायद कर रहे हैं और अब उपचुनाव के बाद इस दिशा में तेजी से आगे बढ़ सकते हैं. ऐसे ही बीजेपी भी दलित वोटों को जोड़ने के लिए हरसंभव कोशिश में है. बीजेपी ने यूपी उपचुनाव में जिस तरह से दलित वोट अपने साथ जोड़ने में कई सीटों पर सफल रही है, उसके चलते आगे और भी स्टैटेजी के साथ उसे अपने साथ जोड़े रखने के मिशन में जुटेगी. ऐसे में बसपा को अपने कोर वोटबैंक को संभालने रखना आसान नहीं होगा?
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