खबर शहर , काशी में स्वर्णमयी महादुर्गा के दर्शन: गुड़हल जैसा हार, रामनामी और सीताराम नामी हार से हुआ मां का शृंगार – INA

आदिशक्ति महादुर्गा का स्वर्णमयी स्वरूप भक्तों के लिए कल्याणकारी है। दुर्गाकुंड में विराजमान मां कूष्मांडा का स्वर्णमयी स्वरूप का भक्तों ने दर्शन किया। वर्ष में महज छह दिन भक्तों को माता के स्वर्णमयी स्वरूप के दर्शन होते हैं और यह पहला मौका है जब भक्तों को माता के स्वर्णमयी स्वरूप के सात दिन दर्शन होंगे। इसके पहले अब तक सिर्फ छह दिन मां दुर्गा के स्वर्णमयी स्वरूप के दर्शन होते थे।

महोत्सव के पहले दिन सायंकाल सर्वप्रथम मां की स्वर्णमयी प्रतिमा का पंचामृत एवं पंचगव्य स्नान कराया गया, उसके बाद कोलकाता से मंगाए गए विशेष रूप से रजनीगंधा, गुलाब, कमल पुष्पों से मां का शृंगार किया गया। 

माता को गुड़हल के आकार का हार, रामनामी हार और सीताराम हार का शृंगार किया गया। इसके साथ ही माता के कान में कुंडल, मांगटीका और नथिया से माता के स्वरूप को सजाया गया। मंदिर के महंत राजनाथ दुबे ने बताया कि माता का रामनामी हार प्राचीन काल से मां के शृंगार में इस्तेमाल होता है। मां की विराट आरती उतारी गई। 


भोग में मां कूष्मांडा को विशेष रूप से बने हलवे और घुघरी का भोग लगाया गया। साथ में छप्पन भोग की झांकी सजाई गई। शृंगार महोत्सव का शुभारंभ काशी के वैदिक आचार्यों द्वारा चारों वेदों के मंगलाचरण से हुआ। आचार्य श्रीधर पांडेय एवं बलभद्र तिवारी के आचार्यत्व में 11 वैदिक भूदेवों ने वेद पाठ किया। 

आचार्यों का स्वागत मंदिर के महंत राजनाथ दुबे एवं विकास दुबे ने किया। आरती एवं शृंगार संजय दुबे ने किया। इस मौके पर महंत कौशलपति द्विवेदी, किशन दुबे, चंदन दुबे, चंचल दुबे उपस्थित रहे।


Credit By Amar Ujala

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