खबर शहर , सरकारी आंकड़ा: तनाव पड़ रहा जीवन पर भारी, कोरोना के बाद बढ़ गए मानसिक रोगी, तीन साल में संख्या हो गई दोगुनी – INA

कोरोना के तीन साल बाद बेशक चीजें अपनी धुरी पर लौट आई हैं लेकिन लोगों में मानसिक तनाव का स्तर बढ़ गया है। 2022 तक एक साल में 9120 केस सरकारी अस्पतालों की ओपीडी में आए थे। 2024 में अब तक 18000 से ज्यादा मानसिक रोगी जिले के सरकारी अस्पतालों की ओपीडी में पहुंच चुके हैं।

मोबाइल व लैपटॉप पर ज्यादा समय बिताने की आदत, ऑनलाइन क्लास के कारण बच्चों को पाठ्यक्रम बोझ लगने लगा है। वहीं युवाओं में नशे की लत उन्हें मानसिक रोगी बना रही है। तनाव के कारण ही 60 वर्ष से पहले लोग डिमेंशिया से पीड़ित हो रहे हैं।

मानसिक रोग विशेषज्ञों का कहना है कि सिर्फ तनाव नहीं थायराइड की वजह से शरीर में हार्मोंस परिवर्तन या फिर ब्लड प्रेशर की कुछ दवाइयों का साइड इफेक्ट भी मानसिक अवसाद का कारण बन रहा है। सरकारी अस्पताल के अलावा निजी डॉक्टरों के यहां भी मानसिक रोगियों की भीड़ है। डॉक्टर दवाओं से ज्यादा म्यूजिक व व्यवहार थैरेपी को तरजीह दे रहे हैं।


महिलाओं में अवसाद के चार हजार मामले

पिछले छह माह में जिले में महिलाओं में अवसाद के चार हजार मामले सामने आए हैं। मानसिक रोग विशेषज्ञ की ओपीडी में हर महीने 900 से ज्यादा अवसाद से पीड़ित महिलाएं पहुंच रही हैं। इनमें 40 से अधिक उम्र और अकेले जीवन व्यतीत करने वाली महिलाएं अधिक हैं।

ज्यादातर महिलाओं व उनके परिजनों को यही नहीं पता होता कि वे अवसाद से पीड़ित हैं। सामान्य सिरदर्द से कब यह परेशानी व्यवहार में चिड़चिड़ापन और फिर आत्महत्या के प्रयास तक पहुंच जाती है, पता ही नहीं चलता।


युवाओं को हो रही भूलने की बीमारी 

मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. अनंत राणा का कहना है कि 20-25 वर्ष की उम्र में डिमेंशिया के खतरे के केस बढ़े हैं। दो से तीन ऐसे केस प्रतिदिन आ रहे हैं। नशा के कारणों में अपने से बड़ी पीढ़ी को नशा करते देखना, दोस्तों के दबाव में आना, सोशल मीडिया में नशे के बढ़ते चलन से प्रभावित होना, हॉस्टल में अकेले रहना या माता-पिता के कामकाजी होने से बच्चों के साथ समय व्यतीत न करना आदि हैं। डॉक्टर का कहना है कि यह उम्र दिमाग के विकास की होती है, लेकिन शराब की वजह से विकास रुक जाता है।

 


इन बातों का रखें ख्याल

सप्ताह में एक दिन दोस्तों के साथ समय बिताएं, तीन माह में एक बार कहीं घूमने जाएं, अपनी परेशानियों को परिवार से साझा करें, किसी को नहीं बता सकते तो डायरी में लिखें, हर दिन अपनी पसंद के तीन गाने जरूर सुनें।

कोरोना के बाद हर वर्ग में डिप्रेशन की समस्या बढ़ी है। हमारे पास केस लगभग दोगुने हो गए हैं। इसमें दिनचर्या भी कारण है। लोग खुद को समय नहीं दे पाते। वहीं युवा वर्ग में प्रतियोगिता व बेरोजगारी के कारण तनाव है। – डॉ. एस धनजंय, क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट, जिला अस्पताल 

ओपीडी में रोगियों की संख्या में इजाफा होने के कारण लोगों में जागरूकता भी है। तनाव प्रबंधन का सबसे बेहतर तरीका है कि हम परिवार के साथ समय बिताएं और अपनी परेशानी को मन में न रखें। अपने बच्चों से दोस्तों की तरह व्यवहार करें। – डॉ. अनंत राणा, मानसिक रोग विशेषज्ञ


Credit By Amar Ujala

Back to top button