वर्ष 1992 में स्थापना होने के दस वर्ष बाद सपा ने पहली बार वर्ष 2002 में खैर विधानसभा से प्रत्याशी उतारा। इसके बाद लगातार पंद्रह वर्ष तक पार्टी के प्रत्याशी तो उतारे गए, लेकिन कोई जीत नहीं सका। वर्ष 2022 में यह सीट रालोद-सपा गठबंधन में रालोद के खाते में गई और रालोद से चुनाव लड़े भगवती प्रसाद हार गए। वर्ष 2024 के उपचुनाव में सपा की चारू कैन मैदान में उतरीं और मजबूती से चुनाव लड़ीं, लेकिन हार गईं, लेकिन पहली बार खैर में पार्टी दूसरे नंबर पर रही।
पार्टी यहां पांच बार चुनाव मैदान में उतरी लेकिन जीत नहीं सकी। इस बार पार्टी तीसरी बार कांग्रेस से गठबंधन कर मैदान में उतरी, लेकिन साइकिल रेस नहीं पकड़ सकी और पिछड़ गई। इससे पहले वर्ष 2017 और 2022 के विस चुनाव में भी दोनों दल गठबंधन कर मैदान में उतरे थे, लेकिन खैर सीट नहीं जीत पाए थे।
अब हार के बाद सपा के नेता समीक्षा कर रहे हैं तो कांग्रेस नेता शिकायतों पर ध्यान नहीं देने की बात कह रहे हैं। स्थानीय कांग्रेस नेताओं ने कुछ बातों को लेकर प्रदेश स्तरीय नेताओं से बार-बार शिकायत भी की, लेकिन बड़े नेताओं ने ध्यान नहीं दिया। इस गठबंधन को सपा और कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने मन का बंधन नहीं माना। इसे केवल दिखावे का गठबंधन माना गया और नतीजा सामने है। सपा नेता सिर्फ यही कह रहे हैं कि हार के कारणों की समीक्षा की जा रही है।
जीत की उम्मीद थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अब चुनाव नतीजे सबके सामने हैं। जनता का निर्णय स्वीकार्य है। पार्टी सभी कारणों की समीक्षा कर रही है। कहां पर गलती हुई है।-लक्ष्मी धनगर, सपा जिलाध्यक्ष।
पार्टी पूरी तरह से चुनाव में सक्रिय रही, लेकिन प्रचार के दौरान ही सपा के कुछ नेताओं ने कांग्रेस के झंडे का अपमान किया। इससे कांग्रेस नेताओं की भावनाएं आहत हुईं। इसी वजह से चुनाव में गठबंधन मन का बंधन नहीं बन पाया।-ठा. सोमवीर सिंह, कांग्रेस जिलाध्यक्ष।