दुनियां – कौन था जग्गा गुर्जर, जिसके एनकाउंटर के लिए 2 दिन अंधेरे में था लाहौर…आज भी उसके नाम पर लिया जाता है ‘जग्गा टैक्स’ – #INA
1960 का वो दिन जब पाकिस्तान के लाहौर में सिर्फ एक लाश को देखने के लिए हजारों की तादाद में लोग सड़कों पर इकट्ठा हुए थे, लोग लाइनों में लगकर सिर्फ उस लाश की शक्ल देखना चाहते थे, आखिर कौन था वो शख्स, क्यों उमड़ी थी लोगों की इतनी भीड़, लोग हमदर्दी में आए थे या कोई और वजह थी ?
कहानी की शुरुआत होती है उस वक्त जब भारत और पाकिस्तान का बंटवारा नहीं हुआ था. साल 1940 में लाहौर के इस्लामिया पार्क इलाके के एक घर में किलकारी गूंजी, जिसे नाम मिला ‘मोहम्मद शरीफ’. उसके जन्म के 7 साल बाद भारत और पाकिस्तान में बंटवारा हो गया और वो दो अलग देश बन गए. शरीफ एक सामान्य परिवार से ताल्लुक रखता था, लेकिन दोनों देशों के बंटवारे के कुछ साल बाद यानी साल 1954 में उसकी जिंदगी में एक ऐसा मोड़ आया जिसने उसकी जिंदगी को पूरी तरह से बदल दिया. शरीफ का एक छोटा भाई था, जिसका नाम माखन गुर्जर था.
14 साल की उम्र में बन गया हत्यारा
शरीफ और उसका भाई एक दिन साथ में मेला घूमने के लिए निकले, वहां एक गुट के साथ माखन की नोकझोंक हो गई. उस वक्त किसी को ये नहीं पता था कि नोकझोंक एक खून खराबे में तब्दील हो जाएगा. झगड़े के कुछ वक्त बाद शरीफ के सामने ही माखन को मौत के घाट उतार दिया गया. अपने भाई की मौत ने शरीफ को अंदर तक झकझोर के रख दिया, उसमें बदले की आग दहक रही थी. शरीफ ने माखन की मौत के एक हफ्ते के अंदर उसके हत्यारे को ढूंढा और उसे मारकर अपना बदला पूरा कर लिया. खैर, शरीफ के लिए इस तरह का अपराध पहली बार था, इसलिए वो कहीं बच कर भाग नहीं पाया, पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. जिस वक्त शरीफ को गिरफ्तार किया गया था उस वक्त उसकी उम्र केवल 14 साल थी.
शरीफ जब जेल पहुंचा तो उसके चेहरे पर एक तसल्ली थी कि उसने अपना बदला पूरा कर लिया, हालांकि, उसके चेहरे पर ये सुकून ज्यादा देर तक नहीं टिका और उसे पता चला कि उसने जिसकी हत्या की है वो केवल उसके भाई की मौत के लिए इस्तेमाल किया गया एक मोहरा था, क्योंकि इन सबके पीछे जिसका हाथ था वो तो अभी भी जिंदा घूम रहा था.
शरीफ से बना ‘जग्गा गुर्जर’, बनाया गैंग
शरीफ ने अपने भाई के हत्यारे का पता लगाना शुरू कर दिया, काफी पता लगाने के बाद शरीफ को अच्छा शोकरवाला के बारे में पता चला, जिसने उसके भाई को मारने के लिए कहा था. अच्छा शोकरवाला केवल नाम से ही अच्छा था, क्योंकि वो लाहौर का जाना माना बदमाश था, जिसे ‘छोटा गवर्नर’ के नाम से भी जाना जाता था. छोटा गवर्नर कहने के पीछे की कहानी है कि उस वक्त पश्चिमी पाकिस्तान के गवर्नर नवाब ऑफ काला बाग मलिक अमीर मोहम्मद खान का हाथ अच्छा के सिर पर था. शरीफ ने जेल की सलाखों के पीछे से ही अच्छा पर कई हमले करवाए, जिसमें वो तो बच गया लेकिन उसके दो आदमी मारे गए, हालांकि गवर्नर के कार्यकाल के खत्म होने का बाद अच्छा को गुंडा टैक्स वसूलने के लिए गिरफ्तार कर लिया गया.
शरीफ के इस तरह के काम से जेल में बंद होने के बावजूद लोगों के बीच उसका नाम फेमस होने लगा. शरीफ जब जेल गया था तो वह नाबालिग था इसलिए वो कुछ वक्त बाद ही जेल से छूटकर वापस आ गया. शरीफ लोगों के बीच अब 14 साल का वो बच्चा नहीं था बल्कि एक हत्यारे के तौर पर सामने आ रहा था. उसने अपने ही आस-पास के मोहल्ले से लड़कों को इकट्ठा करके अपना एक गैंग बना लिया और इस गैंग में उसने अपने भतीजे राजू गुर्जर को भी शामिल कर लिया जो कि शरीफ का राइट हैंड हुआ करता था. शरीफ ने गैंग बनाने के बाद अपना नाम बदलकर ‘जग्गा गुर्जर’ रख लिया, जो कि लोगों के बीच में काफी फैल गया.
‘जग्गा टैक्स’ से हुई दहशत की शुरुआत
जग्गा ने अपनी दशहत के लिए लूटपाट शुरू कर दी, जिसके बाद पूरे लाहौर में उसके नाम से लोगों में खौफ होने लगा. जग्गा वसूली भी करने लगा, जिसकी शुरुआत उसने लाहौर के बकरा मंडी से की. बकरा मंडी में ये कहा गया कि जो भी बकरा बिकेगा उसमें से एक रुपया जग्गा के नाम पर जाएगा और कुछ समय के बाद ऐसा होने लगा. लोगों ने इस जबरन वसूली को ‘जग्गा टैक्स’ का नाम दे दिया. कहा जाता है कि जग्गा के नाम का दहशत 1960 में था, लेकिन आज भी उसका नाम पाकिस्तान में सुनने में आता है और कई जगहों पर तो आज भी जग्गा टैक्स लिया जाता है.
वसूली के बाद से जग्गा को लाहौर का बादशाह घोषित कर दिया गया, हालांकि जग्गा जबरन टैक्स लेता था पर उसका कुछ हिस्सा जरूरतमंदों को भी दिया करता था. जग्गा के हिसाब से सब कुछ काफी अच्छा चल रहा था, लेकिन उसकी उलटी गिनती उस वक्त से शुरू हो गई जब लाहौर के नए डिप्टी कमिश्नर फतेह मोहम्मद खान बांदियाल ने वहां पर अपना पहला कदम रखा.
शुरू हुआ जग्गा के एनकाउंटर का चैप्टर
फतेह मोहम्मद खान बांदियाल के लाहौर में आने के बाद से जग्गा के एनकाउंटर की कहानी लिखनी शुरू हो गई. हुआ यूं कि बांदियाल पहले दिन ऑफिस की ओर जा रहे थे और रास्ते में उन्हें एक फलों की दुकान मिली, बंदियाल फल लेने के लिए उतरे ही थे कि उनके बगल में एक चारपहिया आकर खड़ी हुई, जिसे देखकर फल वाले ने उस शख्स को सलामी दी और फिर उसकी गाड़ी में फलों की टोकरियों के साथ और भी सामान भरने लगा. जब गाड़ी में सामान रख दिया गया तो गाड़ी में बैठे उस शख्स ने हाथ लहराते हुए फल वाले को इशारा दिया और बिना पैसे दिए वहां से चला गया.
बंदियाल वहां पर ऐसा देखकर हैरानी में खड़े रह गए, फिर उन्होंने ठेले वाले से पूछा कि आखिर वो शख्स कौन था, जिसने सामान भी लिया और बिना पैसे दिए यहां से चलता बना…. फलवाले ने कहा कि लगता है आप लाहौर में नए हैं, ये जग्गा गुर्जर है, ये लाहौर का बादशाह है इसी की हुकुमत पूरे लाहौर में चलती है, फल वाले ने उनसे कहा कि अगर लाहौर में रहना है तो उसकी मर्जी जरूरी है.
ये बात सुनने के बाद बंदियाल पास स्थित मोजांग थाना पहुंचे, जहां उन्होंने पुलिसवालों को अपना परिचय दिया और फल की दुकान पर हुई घटना के बारे में बताया, इस पूरे वाक्या को सुनने के बाद सभी पुलिसवाले चुप्पी साधे खड़े रहे, फिर वहां के एसएचओ ने उनसे कहा कि ऐसा कुछ भी नहीं है और इस घटना को गलतफहमी का नाम दे दिया, इसके बावजूद बंदियाल ने कहा कि उसने ये सब अपने सामने होते हुए देखा है. एसएचओ ने उन्हें अपने साथ लिया और वापस उस फल वाले के पास पहुंचे, उन्होंने फलवाले से जग्गा गुर्जर के बारे में पूछा तो फल वाला उनको पहचानते हुए अपनी बात से मुकर गया, बंदियाल फल वाले की बात सुनकर हैरान रह गए, बाद में उन्हें समझ आया कि एसएचओ के सामने ये सच नहीं बोलेगा.
पुलिस से बचकर कश्मीर भाग गया गुर्जर
जग्गा के बारे में और जानकारी इकट्ठा करते हुए बंदियाल ने लाहौर के एसएसपी हाजी हबीब-उर-रहमान को बुलाया और पूरी बात बताई, जिसकी बाद यह तय हुआ कि जग्गा के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी और लाहौर से गुंडाराज खत्म किया जाएगा. मुखबिरों के जरिए ये खबर जग्गा तक पहुंच गई, जिसके बाद जग्गा ने कहा कि वह पुलिस के लिए काम करने के लिए तैयार है बस उसकी जान बख्श दी जाए. जग्गा ने रिश्वत और अन्य प्रोत्साहन की पेशकश भी की, लेकिन हाजी हबीब-उर-रहमान ने उनकी मदद करने से इनकार कर दिया.
मौके की नाजुकता को देखते हुए जग्गा भलाई के लिए पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर चला गया. इधर पुलिस पूरे लाहौर में जग्गा की खोज में लगी हुई थी. कुछ दिन बाद पुलिस के पास जग्गा को लेकर खबर आई की वो कश्मीर में है और लाहौर आने की तरकीब सोच रहा है. मौके का फायदा उठाते हुए हबीब-उर-रहमान ने दिमाग लगाना शुरू कर दिया और जग्गा को लाहौर बुलाने की योजना बनाई.
अंधेरे में बनाई जग्गा के खात्मे की प्लानिंग
जिस वक्त कि ये घटना है उस वक्त पाकिस्तान में बिजली को लेकर काफी संकट था, जिसके चलते पुलिस कभी-कभी ब्लैकआउट की प्रैक्टिस करती थी, इसमें पूरे शहर की लाइट कुछ समय के लिए काट दी जाती थी, हालांकि इसकी जानकारी अखबारों और अन्य तरीकों से लोगों तक पहुंचा दिया जाता था. हबीब-उर-रहमान ने 2 दिन के ब्लैकआउट की प्लानिंग की और हर तरफ इसकी जानकारी दे दी.
पुलिस इस फिराक में बैठी थी कि दो दिन के इस ब्लैकआउट में जग्गा अपनी मां से मिलने के लिए रात के अंधेरे में जरूर आएगा, ये खबर चारों ओर फैल गई. आखिर वो दिन भी आ गया, रात के अंधेरे में पुलिस घात लगाए इस्लामिया पार्क के इर्द-गिर्द आम कपड़ों में थी, पहला दिन गुजर गया, लेकिन पुलिस के हाथ सिर्फ निराशा लगी फिर भी उन्होंने उम्मीद नहीं छोड़ी और दूसरे दिन भी जग्गा का इंतजार किया.
ताबड़तोड़ फायरिंग से जग्गा हुआ ढेर
दूसरी रात जैसे-जैसे अंधेरी हो रही थी वैसे-वैसे पुलिस का इंतजार भी बढ़ता जा रहा था और फिर थोड़ी देर के बाद उन्हें खबर आई कि कोई शख्स छिपते हुए मोहल्ले में घुस रहा है, जब पुलिस को पता चला कि वो जग्गा है तो उस पर ताबड़तोड़ फायरिंग की गई, जिसमें जग्गा को गोली लगी और मौके पर ही उसकी मौत हो गई. इस मुठभेड़ में जग्गा की तरफ से भी फायरिंग की गई, जिसमें शामिल डीआईजी चौधरी मोहम्मद अल्ताफ घायल हो गए थे, ये वही थे जिनकी गोली से जग्गा की मौत हुई.
जग्गा की मौत के बाद डीआईजी चौधरी मोहम्मद अल्ताफ को ‘अल्ताफ जग्गा’ के नाम से भी पहचाना जाने लगा. मारे जाने के बाद जग्गा की शव को उसी रास्ते पर छोड़ दिया गया और हर जगह उसकी मौत की खबर फैला दी गई, पुलिस की खबर मिलने और अखबार में निकलने के बाद भी लोगों को जग्गा की मौत का भरोसा नहीं हो रहा था.
दूसरे दिन जैसे ही सुबह हुई हजारों की तादाद में लोग सिर्फ जग्गा के शव को देखने के लिए आए थे. इस तरह से पाकिस्तान के सबसे बड़े बदमाश का खात्मा हो गया, जग्गा गुर्जर के बाद से या उसके पहले पाकिस्तान में किसी भी बदमाश का इतना खौफ नहीं बन पाया, जग्गा के जिंदगी पर कई सारे फिल्में भी बनाई गई हैं.
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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम
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