दुनियां – 12 करोड़ साल पहले चंद्रमा पर आया था ज्वालामुखी, चीनी स्पेसक्राफ्ट से हुआ बड़ा खुलासा – #INA

चीनी अंतरिक्ष यान से चंद्रमा की मिट्टी के कुछ सैंपल्स लिए थे. स्टडी में उन्हीं सैंपल्स से एक बड़ा खुलासा हुआ है. इनसे पता चला कि चंद्रमा पर सबसे हालिया ज्वालामुखी का विस्फोट 12 करोड़ साल पहले हुआ था. हालांकि पिछले कुछ सालों तक वैज्ञानिकों का मानना ​​था कि चंद्रमा पर ज्वालामुखी गतिविधियां लगभग 200 करोड़ साल पहले ही समाप्त हो गई थीं.
साइंस नाम की एक पत्रिका में बताया गया कि चंद्रमा के कुछ क्षेत्रों में ज्यादा रेडियोधर्मी तत्व थे. इससे ज्वालामुखी में ज्यादा गर्मी पैदा होती है. इसी क्षेत्र में चीन का यान चांग’ए-5 उतरा था. इसे ‘ओशनस प्रोसेलारम’ कहा जाता है. ये वो क्षेत्र है जहां की चट्टानों में गर्मी करने वाले ये तत्व ज्यादा पाए जाते हैं.
चंद्रमा के अंधेरे क्षेत्र
चंद्रमा पर ज्यादातर विस्फोट एस्टेरॉयड के प्रभाव से चंद्रमा के इतिहास में बने बड़े गड्ढों के किनारों के पास हुए. लावा ने इन घाटियों के अंदरूनी हिस्सों को भर दिया. इससे चंद्रमा के पास वाले भाग पर अंधेरे क्षेत्र बन गए. छह अपोलो मिशन और तीन सोवियत रोबोटिक की जांच से इन क्षेत्रों से कई नमूने लाए गए. इनसे पता चला कि चंद्रमा पर हाल ही में कोई भी ज्वालामुखी की गतिविधि नहीं हुई थी.
क्या कहती है जांच
चांग’ए-5 एक बहुत बड़े लावा प्रवाह से नमूने लेकर आया था जो पहले से ही क्रेटर-काउंटिंग से पता था. लावा के कई टुकड़ों की शुरुआती जांच में पता चला कि लंबे समय से चंद्रमा पर ज्वालामुखी की गतिविधि 200 करोड़ साल पहले ही बंद हो गई थी. हालांकि चीनी नमूनों की बारीकी से जांच जैसा कुछ और ही पता चला. साइंस पत्रिका में बताया गया है कि ये जांच कुछ सबसे छोटे टुकड़ों पर केंद्रित थी.
ज्यादातर चट्टानें उल्कापिंड के प्रभाव से टूटी और पिघलकर बूंदों में बदल गईं. 3,000 बूंदों में से तीन की पहचान कर उनकी पूरी जांच की गई. इससे पता चला कि ये बूंदे ज्वालामुखीय के रूप में हैं और ये केवल 12 करोड़ साल पुरानी हैं.
चांद पर विस्फोट
चंद्र विस्फोटों में ऊंचे लावा फव्वारे शामिल होने चाहिए थे. जैसे कि आमतौर पर हवाई में फटते हुए देखे जाते हैं. जबकि इनमें से अधिकांश बूंदें लावा की तरह ही जमा हो गई होंगी. कुछ चंद्रमा की ही सतह के दूसरे हिस्सों में कई किलोमीटर दूर गिरी होंगी. चांग’ए-5 के नमूने में पहचानी गई तीन ‘ज्वालामुखी बूंदें’ शायद उसी वेंट से नहीं निकली थीं. इससे पृथ्वी पर आने वाली चट्टान और मिट्टी का बड़ा हिस्सा निकला था.

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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम

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