दुनियां – मौत का दूसरा नाम है मोसाद…दुश्मन के खिलाफ कैसे काम करती है इजराइली एजेंसी? – #INA
लेबनान में पेजर ब्लास्ट के महज 24 घंटे बाद बुधवार को वॉकी-टॉकी, लैपटॉप और मोबाइल में ब्लास्ट हुए. माना जा रहा है कि इस वक्त हिजबुल्लाह का पूरा कम्युनिकेशन सिस्टम ही निशाने पर है. स्थानीय मीडिया के अनुसार एक घंटे में बेरूत, बेका, नबातियेह और दक्षिणी लेबनान में कई इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस में धमाके हुए और इसमें सैकड़ों लोग घायल हैं.
इन ब्लास्ट को लेकर शक की सुई इजराइली खुफिया एजेंसी मोसाद पर है. दावा किया जा रहा है कि मोसाद ने पेजर्स के लेबनान पहुंचने से पहले उनमें छेड़छाड़ की और उसमें कम मात्रा में विस्फोटक लगाए, जिसकी मदद से मंगलवार को हजारों पेजर्स में ब्लास्ट किया गया. यह पहला मौका नहीं है जब इजराइल की खुफिया एजेंसी मोसाद ने इस तरह की घटना को अंजाम दिया हो. मोसाद इस तरह के सीक्रेट मिशन को अंजाम देने में माहिर है.
मोसाद के निशाने पर है हिजबुल्लाह?
लेबनान में सिलसिलेवार कई इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस में हुए ब्लास्ट के बाद से इजराइल की खुफिया एजेंसी मोसाद एक बार फिर चर्चा में है. ब्लास्ट के पैटर्न से माना जा रहा है कि यह काम किसी और का नहीं बल्कि मोसाद का ही है. दरअसल इजराइल की खुफिया एजेंसी मोसाद को दुश्मन के लिए काल माना जाता है. यह एजेंसी इतनी खुफिया तरीके से ऑपरेशन को अंजाम देती है कि दुनिया में किसी को भी भनक नहीं लगती. यही वजह है कि इस बार भी लेबनान में हुए धमाकों में मोसाद का हाथ माना जा रहा है. इससे पहले 31 जुलाई को तेहरान में हमास लीडर इस्माइल हानिया को लेकर भी दावा किया जाता है कि मोसाद ने ही उनकी हत्या करवाई है.
मोसाद यानी मौत की मशीन !
मोसाद इजराइल की राष्ट्रीय खुफिया एजेंसी है. इजराइल बनने के साथ ही 13 दिसंबर 1949 को इसका गठन किया गया था. किसी दुश्मन को खत्म करने से पहले मोसाद उसके बारे में एक-एक गुप्त जानकारी जुटाता है. किसी भी ऑपरेशन को अंजाम देने के लिए यह स्थानीय लोगों का सहारा लेता है, खासकर यह ऐसे व्यक्ति की पहचान करता है जो उसके टारगेट का करीबी हो. मोसाद के एजेंट दुनिया की किसी भी दूसरी खुफिया एजेंसियों की ही तरह फर्जी नाम और फर्जी पहचान पत्रों का इस्तेमाल करते हैं और खुफिया जानकारियां जुटाते हैं.
मोसाद अपने सीक्रेट ऑपरेशन्स को शिद्दत से पूरा करता है, कई बार उसे कुछ मिशन को अंजाम देने में महीने और साल भी लग जाते हैं. यह एजेंसी टारगेट किलिंग में एक्सपर्ट मानी जाती है, इसी वजह से इसे इजराइल की किलिंग मशीन भी कहा जाता है. इजराइल के प्रधानमंत्री को मोसाद के हर कदम की जानकारी होती है, यानी मोसाद जो कुछ भी करता है उसके बारे में इजराइली प्रधानमंत्री को अच्छे से मालूम होता है.
मोसाद अमेरिका की CIA के बाद पश्चिमी दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी जासूसी एजेंसी है, मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इसका सालाना बजट लगभग 10 बिलियन डॉलर है और इसमें लगभग 7 हजार लोग काम करते हैं, जो इसे दुनिया के सबसे बड़े जासूसी संगठनों में से एक बनाता है.
तकनीक और मानव बुद्धि दोनों पर निर्भरता
मोसाद तकनीकी तौर पर बेहद कुशल और सक्षम है ही साथ ही यह एजेंसी मानव बुद्धि का भी बखूबी इस्तेमाल करना जानती है. मोसाद की आपरेशनल विंग का काम अरब देशों में जासूसों की तैनाती करना और उन्हें मैनेज करना होता है. इन जासूसों के जरिए ही मोसाद अहम जानकारी जुटाती है. इसके अलावा मोसाद ड्रोन, सैटेलाइट या दूसरे इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस का इस्तेमाल कर निगरानी और डाटा जुटाने का काम करती है. वहीं मोसाद की किडॉन यूनिट के लोगों पर टारगेट किलिंग को अंजाम देने का जिम्मा होता है.
जब 20 साल तक चला मोसाद का ऑपरेशन
साल 1972 में जर्मनी के म्यूनिख में ओलंपिक का आयोजन हुआ. इस दौरान 11 इजराइली खिलाड़ियों की हत्या कर दी गई. हत्या का आरोप फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन (PLO) पर था. मोसाद ने इस हमले का बदला लेने के लिए 20 साल तो लगाए लेकिन इस हमले के लिए जिम्मेदार एक-एक शख्स को चुन-चुन कर मार डाला. इस ऑपरेशन को ‘रैथ ऑफ गॉड’ नाम दिया गया था. बताया जाता है मोसाद ने इजराइली खिलाड़ियों का बदला लेने के लिए फोन बम, कार बम और ज़हर की सुई समेत कई तरीके आजमाए.
टूथपेस्ट में जहर देकर मार डाला
फिलिस्तीनी कमांडर वादी हद्दाद की हत्या के लिए भी मोसाद ने अनोखा तरीका अपनाया था जो एक विमान हाइजैकिंग में शामिल थे. दरअसल 1976 में एयर फ्रांस के एक विमान का अपहरण हुआ था. बंधकों को छुड़ाने के लिए इजराइल ने ऑपरेशन थंडरबोल्ट चलाया, जिसमें उसे कामयाबी मिली लेकिन इस दौरान एक इजराइली लेफ्टिनेंट कर्नल की मौत हो गई थी. विमान अपहरण और लेफ्टिनेंट कर्नल की मौत का बदला लेने के लिए मोसाद ने जो किया वो चौंकाने वाला था. मोसाद के एजेंट्स ने जहरीले टूथपेस्ट के जरिए हद्दाद को मार डाला. जनवरी 1978 से हद्दाद को जहरीला टूथपेस्थ दिया गया और मार्च 1978 में उनकी मौत हो गई. करीब 3 दशक बाद हद्दाद की मौत का सच दुनिया को पता चल पाया था.
ईरान के परमाणु वैज्ञानिक की हत्या करवाई
इजराइल हमेशा से ईरान के न्यूक्लियर प्रोग्राम के खिलाफ रहा है. ईरान को परमाणु शक्ति बनने से रोकना इजराइल के सबसे बड़े मकसद में से एक है. इसी के चलते नवंबर 2020 में मोसाद ने ईरान के परमाणु वैज्ञानिक मोहसिन फखरीजादेह की हत्या करवा दी थी. 2018 में इसराइल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने एक कार्यक्रम में ईरान के परमाणु कार्यक्रम में फखरीजादेह की भूमिका का जिक्र करते हुए कहा था कि ‘इस नाम को याद रखें.’
वर्ष 2004 से जब इजराइली सरकार ने अपनी विदेशी खुफिया एजेंसी मोसाद को ईरान को परमाणु हथियार हासिल करने से रोकने का आदेश दिया था, तब से एजेंसी ईरान की न्यूक्लियर फैसिलिटीज पर तोड़फोड़ और साइबर अटैक का अभियान चला रही थी. यह एजेंसी ईरान के परमाणु हथियार कार्यक्रम का नेतृत्व करने वाले एक्सपर्ट्स को भी सिस्टमेटिक तरीके से निशाना बना रही थी.
2007 से 2021 तक मोसाद ने ईरान के 6 परमाणु वैज्ञानिकों की हत्या करवाई. इनमें अधिकांश वैज्ञानिक सीधे फखरीजादेह के लिए काम करते थे. इजराइल ने इन हत्याओं में कई तरह के तरीके अपनाए थे. सूची में शामिल पहले परमाणु वैज्ञानिक को 2007 में जहर दिया गया था. दूसरे को 2010 में मोटरसाइकिल पर लगे रिमोट से बम विस्फोट कर मार दिया गया था. यही नहीं इजराइली एजेंटों ने मिसाइल डेवलपमेंट के प्रभारी ईरानी जनरल और उनकी टीम के 16 सदस्यों को भी मार डाला था.
गुप्त रखी जाती थी मोसाद चीफ की पहचान
1996 तक मोसाद चीफ की पहचान गोपनीय रखी जाती थी. IDF के पूर्व डिप्टी कमांडर मेजर जनरल डैनी यातोम की नियुक्ति के साथ इसमें बदलाव हुआ और अब मोसाद चीफ का नाम कार्यकाल की शुरुआत से पहले ही घोषित कर दिया जाता है. साल 2021 में डेविड बार्निया को मोसाद का डायरेक्टर बनाया गया था. बार्निया इससे पहले मोसाद के डिप्टी हेड रह चुके थे. उनके नाम का ऐलान करते हुए इजराइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने कहा था कि बार्निया का मुख्य काम ईरान को परमाणु शक्ति हासिल करने से रोकना है.
मोसाद के ऑपरेशन और काम करने के तरीके दुनिया को आकर्षित करते हैं. यही वजह है कि मोसाद को लेकर कई फिल्में, किताबें और टीवी शो प्रसारित किए जा चुके हैं. मोसाद के ऑपरेशन से जुड़े किस्से बिल्कुल फिल्मी लगते हैं और उनके बारे में जानना हमेशा रोचक होता है. कहा जाता है कि मोसाद को किसी भी ऑपरेशन को सफल बनाने के लिए फैसले लेने की छूट होती है और यही वजह है कि यह एजेंसी दुनियाभर में कई सफल ऑपरेशन को अंजाम देने में कामयाब रही है.
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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम
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