दुनियां – इजराइल और ईरान की जंग में कूदा अमेरिका, क्या भारत कभी दूसरे देशों के युद्ध में शामिल हुआ? – #INA
ईरान और इजराइल के बीच बढ़ते तनाव में अमेरिका भी कूद गया है. अमेरिका खुलकर अपने मित्र इजराइल के साथ खड़ा है. मिडिल ईस्ट के दोनों देशों के बीच पैदा होते जंग जैसे हालात में भारत के रुख पर भी पूरी दुनिया की नजर है. जैसे रूस और यूक्रेन, इजराइल-हमास जंग में वो तटस्थ रहा, क्या वो इजराइल और ईरान जंग में भी न्यूट्रल रहेगा, ये देखने वाली बात होगी. हालांकि यहां एक सवाल ये भी उठता है कि क्या इससे पहले भारत कभी दूसरे देशों के युद्ध में शामिल हुआ है.
प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध दो ऐसी घटनाएं थीं जिन्होंने इतिहास की दिशा को हमेशा के लिए बदल दिया. इसलिए इसमें हैरान नहीं होना चाहिए कि भारत ने इसमें एक महत्वपूर्ण निभाई थी. भारतीय सैनिकों ने दोनों विश्व युद्धों में बड़ी विशिष्टता के साथ सेवा की और अपनी सेवाओं के लिए पहचान अर्जित की. मैनपावर के साथ-साथ भारतीय सेना ने दोनों युद्ध में रसद सहायता, खाद्य आपूर्ति और कच्चा माल दिया.
भारत का महत्व इतना था कि 1941 में भारतीय सेना के कमांडर-इन-चीफ फील्ड-मार्शल क्लाउड औचिनलेक ने कहा कि अगर भारतीय सेना नहीं होती थी तो अंग्रेज प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध में सफल नहीं होते.
प्रथम विश्व युद्ध में भारतीय सेना ने यूरोप, मध्य पूर्व और अफ्रीका में कई स्थानों पर कार्रवाई की. 1918 के अंत तक कुल 74,187 भारतीय सैनिक मारे गए और 67,000 घायल हो गए. भारतीय सेना ने ज्यादातर पश्चिमी मोर्चे पर जर्मन साम्राज्य के खिलाफ लड़ाई लड़ी.
द्वितीय विश्व युद्ध में भारत का क्या रोल था?
द्वितीय विश्व युद्ध में भारत जर्मनी के खिलाफ खड़ा था. ब्रिटेन की ओर से भारत के करीब दो लाख सैनिक अफ्रीका, यूरोप और एशिया में अलग-अलग मोर्चों पर लड़े थे. 1 सितंबर, 1939 को जर्मन तानाशाह एडोल्फ हिटलर ने पोलैंड पर हमला कर जंग का ऐलान किया था. उसके साथ इटली, जापान, हंगरी, रोमानिया और बुल्गारिया थे. दूसरी ओर अमेरिका, सोवियत यूनियन, ब्रिटेन, चीन, फ्रांस, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, पोलैंड, यूगोस्लाविया, ब्राजील, ग्रीस, नीदरलैंड, न्यूजीलैंड, नार्वे, दक्षिण अफ्रिका, मेक्सिको, चेकोस्लोवाकिया और मंगोलिया की सेना खड़ी थी.
छह साल चले इस युद्ध में दोनों ओर से 2 करोड़ 40 लाख सिर्फ सैनिक मारे गए. चार करोड़ 90 लाख नागरिकों ने जान गंवाई. अमेरिका ने छह और नौ अगस्त 1945 को जापान के दो शहरों हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराए. 15 अगस्त 1945 को जापान के शासक हिरोहितो रेडियो जापान के सरेंडर का ऐलान किया. इसके बाद दो सितंबर 1945 को जापान ने अमेरिका के सामने सरेंडर कर दिया. इसके साथ वर्ल्ड वॉर का अंत हो गया.
दुनिया के नामी वॉर और भारत का रोल
बात जब दुनिया के सबसे नामी जंग की हो तो इसमें शीत युद्ध भी आता है. ये1947 से 1991 तक चला. यह द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद हुआ. ये युद्ध US और USSR के बीच था. इस दौरान भारत ने पूंजीवादी ब्लॉक और कम्युनिस्ट ब्लॉक के बीच किसी पक्ष को नहीं चुना और गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) का एक अग्रणी देश बना.
अमेरिका और वियतनाम के बीच युद्ध भी दुनिया के नामी युद्धों में आता है. भारत ने वियतनाम युद्ध के दौरान अमेरिकी कार्रवाई की कड़ी निंदा की थी. वो वियतनाम के लिए समर्थन दिखाने वाले कुछ गैर-कम्युनिस्ट देशों में से एक था. 1992 में भारत और वियतनाम ने तेल, कृषि और विनिर्माण सहित व्यापक आर्थिक संबंध स्थापित किए.
गल्फ वॉर में भी भारत का रूख साफ था. इराक भारत समर्थक रहा है. खासकर तब जब क्षेत्र के अन्य देशों का झुकाव पाकिस्तान की ओर था. उस समय भारत के प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर थे. भारत सरकार ने युद्ध के दौरान अपने हस्ताक्षरित गुटनिरपेक्ष रुख को बनाए रखा. हालांकि, भारत ने संघर्ष को फिलिस्तीनी मुद्दे से जोड़ने से इनकार कर दिया. अगस्त और अक्टूबर 1990 के बीच भारत सरकार ने कुवैत से 1,75,000 से अधिक भारतीय नागरिकों को निकाला.
तीसरा विश्व युद्ध हुआ तो भारत की क्या भूमिका होगी?
मौजूदा वक्त में दुनिया में दो मोर्चे पर जंग चल रही है. एक है रूस और यूक्रेन, दूसरा है इजराइल और हमास. इजराइल और ईरान में जिस तरह से तनाव बढ़ा है, वो भी जंग का रूप ले सकता है. ऐसे में अब अगर तीसरा विश्व युद्ध हो जाए तो हैरानी नहीं होगी. अगर ऐसा हुआ तो दुनिया के दो कॉर्नर होंगे. वहीं एक ऐसा कॉर्नर होगा जिसमें वो देश होंगे जो जंग न चाहते हुए भी उसका हिस्सा बन चुके होंगे. भारत भी इन्हीं में से एक हो सकता है.
रक्षा विशेषज्ञ और जर्मनी के फेडरल इंटेलिजेंस सर्विस के पूर्व वाइस प्रेसिडेंट रूडोल्फ जी एडम ने जियोग्राफिकल इंफॉर्मेशन सिस्टम
में इसे लेकर एक दावा भी किया है. जियोग्राफिकल इंफॉर्मेशन सिस्टम (जीआईएस) भौगोलिक आधार पर अलग-अलग तरह की जानकारियां जमा करने वाला एक कंप्यूटर सिस्टम है. रूडोल्फ के मुताबिक तीन पक्ष एक-दूसरे को शक और चुनौती की नजर से देखेंगे और यही बात आगे चलकर लड़ाई को बढ़ा सकती है. पश्चिमी उदारवादी और पूंजीवादी देश अमेरिका, कनाडा, यूके, यूरोप, जापान और ऑस्ट्रेलिया आदि एक तरफ होंगे. इसमें दक्षिण कोरिया भी होगा, क्योंकि एक समय पर अमेरिका ने उसकी काफी मदद की थी.
तीसरा खेमे में विकासशील देशों के शामिल रहने की संभावना है. भारत इसकी अगुवाई कर सकता है. बाकी दक्षिण एशियाई देश भी इसी के साथ होंगे. ऐसे में वो लीडर के तौर पर उभरकर तीसरे खेमे का नेतृत्व भी कर सकता है. बहुत मुमकिन है कि भारत शांति की अपील करे, जिसको शायद सुना भी जाए.
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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम
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