दुनियां – पिता के नक्शेकदम पर ट्रूडो! कनाडा में जब-जब बनी बाप-बेटे की सरकार भारत से रही है तकरार – #INA
भारत और कनाडा के कूटनीतिक रिश्तों में एक बार फिर दरारें आ गई हैं. कनाडाई पीएम जस्टिन ट्रूडो के हालिया आरोपों के बाद दोनों देशों के संबंध खराब हुए हैं. ये तल्खी खालिस्तानी समर्थक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या से संबंधित जांच में भारतीय उच्चायुक्त की संलिप्तता पर कनाडा सरकार के लगाए आरोपों के बाद आई है.
सोमवार को भारत के विदेश मंत्रालय ने अपने राजनयिक को निशाना बनाकर लगाए गए ‘मनगढ़ंत’ आरोपों के खिलाफ कड़ी चेतावनी जारी की और इसको ट्रूडो का राजनीतिक लाभ लेने की मंशा से उठाया गया कदम बताया. भारत कनाडा के रिश्तों में तनाव का इतिहास दशकों पुराना है, लेकिन हालिया तनाव सितंबर 2023 से चल रहा है.
पिछले साल ट्रडो ने जून 2022 को कोलंबिया के सरे में हुई हरदीप सिंह निज्जर की हत्या का आरोप भारतीय एजेंटों पर लगाया था. ट्रूडो ने एक बार फिर चुनाव से पहले सोमवार को ऐसे ही आरोप भारत पर लगाए.
भारत और कनाडा के रिश्तों में तनाव नया नहीं है, बल्कि जस्टिन ट्रूडो के पिता पियरे इलियट ट्रूडो जब कनाडा के प्रधानमंत्री थे तो भी भारत और कनाडा के रिश्ते बिगड़ गए थे. जिसके कारण उन्हें आलोचना का सामना करना पड़ा था. अब जस्टिन ट्रूडो भी अपने पिता के नक्शेकदम पर चलते नजर आ रहे हैं.
रिश्तों में तनाव का इतिहास
भारत कनाडा का ऐतिहासिक तनाव 1974 में भारत के परमाणु परीक्षणों के दौरान शुरू हुआ. जब तत्कालीन कनाडाई प्रधानमंत्री ट्रूडो के पिता पियरे ट्रूडो की सरकार ने परीक्षणों पर नाराजगी जाहिर की. ये तनाव 1998 में राजस्थान के पोखरण में हुए भारत के परमाणु परीक्षण के बाद और गहरा गया. चीन से सुरक्षा खतरों और घरेलू-बाहरी कारकों के मद्देनजर से किया गया परमाणु परीक्षण कनाडा और ज्यादातर पश्चिमी देशों के साथ भारत के संबंधों के खराब होने की वजह बना.
कनाडा ने भारत के परीक्षण को एक विश्वासघात के रूप में लिया. तत्कालीन विदेश मंत्री मिशेल शार्प ने निराशा व्यक्त करते हुए कहा, दोनों देशों के बीच विश्वास खत्म हो गया है. कनाडाई पॉलिसी मेकर्स का मानना था कि भारत की परमाणु क्षमताएं गैर-परमाणु देशों को भी इसी तरह की कोशिशों के लिए प्रेरित करेंगी.
खालिस्तानी चरमपंथियों पर पियरे ने नहीं लिया था एक्शन
1980 के दशक में जब पंजाब में खालिस्तानी चरमपंथियों की घटनाएं अपने चरम पर थीं और भारत सरकार ने उग्रवाद के खिलाफ अभियान छेड़ा था, उस वक्त भारत से भागने वाले खालिस्तानियों के लिए कनाडा एक पसंदीदा ठिकाना बन गया था. पियरे के कार्यकाल में कई खालिस्तानियों ने भारत सरकार से बचकर कनाडा में शरण ली थी.
खालिस्तानी समूह बब्बर खालसा का सदस्य तलविंदर सिंह परमार 1981 में पंजाब में दो पुलिसकर्मियों की हत्या करने के बाद कनाडा भाग गया. भारत ने जब परमार को वापस सौंपने का अनुरोध किया, तो पियरे ट्रूडो प्रशासन ने भारत के इस अनुरोध को नकार कर दिया. यहां तक कि भारतीय खुफिया एजेंसियों की चेतावनियों पर भी ध्यान नहीं दिया गया.
1985 में चरम पर पहुंच गया था तनाव
दोनों देशों का तनाव अपने चरम पर 23 जून 1985 को एयर इंडिया फ़्लाइट 182 में हुए बम विस्फोट के बाद आया. जिसमें 329 लोग मारे गए थे, जिनमें से अधिकांश कनाडाई थे. इस हमले का मास्टरमांइड परमार को माना गया, लेकिन पियरे ट्रूडो सरकार ने उसके ऊपर मुकदमा नहीं चलाया और बम विस्फोट के सिलसिले में सिर्फ एक व्यक्ति को दोषी ठहराया गया.
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी खालिस्तानी ताकतों के खिलाफ कनाडाई सरकार की कार्रवाई की कमी पर पियरे ट्रूडो से चिंता जाहिर की थी, लेकिन कनाडाई सरकार के रुख में कोई बदलाव नहीं आया.
भारत और कनाडा के बीत तकरार परमाणु परीक्षण और पंजाब के काले काल से चला आ रहा है. कई रिपोर्टों में इस बात के संकेत मिले हैं कि भारत के खिलाफ साजिश रचने वाले खालिस्तानी समर्थकों के लिए कनाडा एक सुरक्षित जगह रही है. जून 2023 में कई रिपोर्टों से पता चला था कि परमार के पोस्टर कनाडा के कई जगह लगाए गए थे और उसकों एक नायक के रूप में दिखाया गया था.
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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम
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