दुनियां – अमेरिका में चुनाव की तारीख से पहले हो जाती है वोटिंग, समझें भारत से कितना अलग है तरीका – #INA
अमेरिका में 5 नवंबर को राष्ट्रपति पद का चुनाव होना है. रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप और डेमोक्रेटिक पार्टी की कैंडिडेट कमला हैरिस अपने चुनाव प्रचार के अंतिम चरण में हैं. लेकिन चुनाव प्रचार खत्म होने से पहले ही अमेरिका में वोटिंग शुरू हो चुकी है. वोटिंग की मुख्य तारीख से दो सप्ताह पहले ही राष्ट्रपति चुनाव के लिए करीब 2 करोड़ 10 लाख वोट डाले जा चुके हैं.
अमेरिका की चुनावी प्रक्रिया भारत से बिल्कुल अलग है. भारत में वोटिंग से 48 घंटे पहले प्रचार का शोर खत्म हो जाता है और 24 घंटे पहले तक कैंडिडेट घर-घर जाकर वोट मांग सकते हैं जिसे डोर-टू-डोर कैंपेन भी कहा जाता है. वहीं अमेरिका में प्रचार और वोटिंग की प्रक्रिया एक साथ चलती रहती है. समय से पहले मतदान की इस प्रक्रिया को अर्ली-वोटिंग कहा जाता है, जो मतदान की मुख्य तारीख से करीब 4 हफ्ते पहले शुरू हो जाती है.
चुनाव की तारीख से पहले वोटिंग!
इसी अर्ली-वोटिंग प्रोसेस के जरिए अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में अब तक 2 करोड़ 10 लाख लोग वोट डाल चुके हैं. इलेक्शन लैब के डाटा के अनुसार अब तक डाले गए इन वोट्स में से 78 लाख मतदाताओं ने व्यक्तिगत तौर पर (in-person methods) और 1 करोड़ 33 लाख वोटर्स ने ईमेल (mail ballots) के जरिए वोट डाले हैं.
Early Voting में रिपब्लिकन आगे
यूनिवर्सिटी ऑफ फ्लोरिडा के इलेक्शन लैब के मुताबिक अर्ली-वोटिंग में रिपब्लिकन समर्थिक मतदाताओं की संख्या ज्यादा है. अब तक हुई वोटिंग में व्यक्तिगत तौर पर वोटिंग (in-person methods) के जरिए 41.3 फीसदी रिपब्लिकन उम्मीदवारों ने मतदान किया है तो वहीं डेमोक्रेट्स मतदाताओं की संख्या 33.6 फीसदी है.
मेल बैलेट्स की बात करें तो इसके जरिए अब तक 20.4 फीसदी डेमोक्रेटिक मतदाताओं ने वोट डाले हैं. वहीं 21.2 फीसदी रिपब्लिकन समर्थकों ने मेल बैलेट्स के जरिए मतदान किया है.
प्रचार और वोटिंग साथ-साथ!
अमेरिका की अर्ली-वोटिंग प्रक्रिया राष्ट्रपति चुनाव को दुनियाभर के वोटिंग सिस्टम से काफी अलग बनाती है. इसके जरिए मतदाता मेल-इन-बैलेट के जरिए घर बैठे मतदान कर सकते हैं, जिसकी तुलना काफी हद तक भारत के पोस्टल बैलेट से की जा सकती है. इसके अलावा मतदाता घर से निकलकर कुछ तय किए गए बूथ पर भी अपने मतों का इस्तेमाल कर सकते हैं जो चुनाव की मुख्य तारीख से कुछ हफ्ते पहले ही खुल जाते हैं. इस दौरान प्रत्याशी अपना प्रचार अभियान जारी रखते हैं, जबकि मतदाता अपने पसंदीदा कैंडिडेट के लिए वोटिंग भी करते रहते हैं. कुछ हफ्तों तक यह दोनों प्रक्रिया साथ-साथ चलती है.
स्विंग स्टेट्स के नतीजे ही निर्णायक
हालांकि पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस बार भी राष्ट्रपति चुनाव के परिणाम अमेरिका के स्विंग स्टेट्स ही तय करेंगे. एरिजोना, नेवादा, विस्कॉन्सिन, मिशीगन, पेनसिल्वेनिया, नॉर्थ कैरोलिना और जॉर्जिया, 7 ऐसे राज्य हैं जहां के नतीजे अमेरिका का अगला राष्ट्रपति चुनने में निर्णायक साबित होंगे.
भारत से कितनी अलग है प्रक्रिया?
भारत और अमेरिका की चुनावी प्रक्रिया काफी अलग है. दोनों देश लोकतांत्रिक व्यवस्था का पालन करते हैं लेकिन अमेरिका में प्रेसिडेंशियल शासन है, यहां प्रधानमंत्री नहीं होता है जबकि भारत में प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति दोनों पद हैं. हालांकि भारत में राष्ट्रपति पद के लिए जनता वोट नहीं करती है बल्कि जनता के ही चुने हुए प्रतिनिधि वोट डालते हैं. भारत में जनता वोटिंग के जरिए विधायक और सांसद चुनती है, जिस पार्टी को बहुमत मिलता है उसके विधायक मुख्यमंत्री और सांसद प्रधानमंत्री का चुनाव करते हैं.
भारत में राष्ट्रपति चुनाव में इन्हीं सांसदों और विधायकों की भूमिका होती है, लेकिन अमेरिका में राष्ट्रपति का चुनाव इलेक्टर्स का एक समूह करता है. ये इलेक्टर्स राष्ट्रपति पद के कैंडिडेट के प्रतिनिधि होते हैं. दरअसल अमेरिका में वोटर्स सीधा राष्ट्रपति उम्मीदवार को वोट नहीं देते हैं, बल्कि वह राज्यों में इलेक्टर्स को चुनते हैं. हर राज्य में इलेक्टर्स की अलग-अलग संख्या निर्धारित होती है और इन इलेक्टर्स के समूह को इलेक्टोरल कॉलेज कहा जाता है.अमेरिका में कुल 538 इलेक्टोरल कॉलेज हैं और किसी भी उम्मीदवार को राष्ट्रपति चुनाव जीतने के लिए इनमें से कम से कम 270 इलेक्टोरल कॉलेज का समर्थन हासिल करना जरूरी है.
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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम
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