दुनियां – बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ‘बेनकाब’…सुधार के नाम पर चल रहा सांप्रदायिक-तानाशाही एजेंडा – #INA
8 अगस्त 2024…नोबेल पुरस्कार विजेता और अर्थशास्त्री मोहम्मद यूनुस ने जब बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुखिया के तौर पर शपथ ली तो उम्मीद की जा रही थी कि अब एक ‘नये बांग्लादेश’ का निर्माण होगा. ऐसा देश जहां हिंसा, कट्टरपंथ, भ्रष्टाचार नहीं बल्कि शांति और समानता होगी. लेकिन जैसे-जैसे वक्त बीतता जा रहा है, वैसे-वैसे अंतरिम सरकार और उसके मुखिया बेनकाब होते जा रहा है.
एक सुधारवादी चेहरे की आड़ में मोहम्मद यूनुस एक-एक कर ऐसे फैसले ले रहे हैं जो कट्टरपंथ और तानाशाही को बढ़ावा देने वाले हैं. उनके फैसले भारत और हिंदू विरोधी तो हैं ही, साथ ही पाकिस्तान परस्त सांप्रदायिक ताकतों को खुश करने वाले भी हैं. बीते करीब 3 महीने में अंतरिम सरकार के बड़े फैसलों पर नज़र डालें तो मोहम्मद यूनुस इस्लामवादी ताकतों के आगे बेबस नजर आ रहे हैं, या यूं कहें कि अंतरिम सरकार इस्लामवादी ताकतों के प्रभाव से ही फैसले कर रही है.
इस लेख में अंतरिम सरकार के कुछ फैसलों के जरिए हम जानेंगे कि कैसे बांग्लादेश में सांप्रदायिक और तानाशाही माहौल तैयार किया जा रहा है.
1. 8 छुट्टियां रद्द, इतिहास मिटाने की कोशिश?
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने आजादी से जुड़ी 8 छुट्टियां रद्द कर दी हैं. इनमें सबसे अहम दो तारीखें हैं. पहली 7 मार्च 1971, इस दिन शेख हसीना के पिता और बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर्रहमान ने पाकिस्तान के खिलाफ लोगों को आंदोलन के लिए एकजुट किया था. और दूसरी 15 अगस्त 1975, इस दिन बांग्लादेश की सेना ने मुजीबुर्रहमान का कत्ल कर देश में तख्तापलट किया था. अब तक बांग्लादेश में इसे शोक दिवस के तौर पर मनाया जाता था. लेकिन अंतरिम सरकार में इस बार न तो शोक दिवस मनाया गया और न ही अब 15 अगस्त को सार्वजनिक छुट्टी होगी.
अंतरिम सरकार के इस फैसले को लेकर आवामी लीग ने जमकर हमला बोला. शेख हसीना की पार्टी ने अंतरिम सरकार को गैर-कानूनी बताते हुए कहा कि ये सरकार इतिहास मिटाने की कोशिश कर रही है.
2. इस्लामवादियों के आगे झुकी यूनुस सरकार
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने एक अक्टूबर को टेक्स्ट बुक रिवाइज्ड करने के लिए गठित की गई कमेटी को रद्द कर दिया है. कोर्डिनेशन कमेटी को NCTB के तहत पाठ्यक्रम को रिवाइज्ड करने का काम सौंपा गया था. लेकिन कुछ इस्लामवादियों ने कमेटी के 2 सदस्यों को ‘इस्लाम विरोधी’ बताते हुए हटाने की मांग की. इसके बाद यूनुस सरकार ने कमेटी को रद्द कर दिया, जबकि यह दोनों सदस्य शेख हसीना सरकार के आलोचक थे.
ट्रांसपेरेसी इंटरनेशनल बांग्लादेश (TIB) ने यूनुस सरकार के इस फैसले पर गहरी चिंता जाहिर की है. TIB के मुताबिक यूनुस सरकार का स्वार्थी कट्टपंथियों की धमकी के आगे झुकना एक खतरनाक उदाहरण सेट करेगा. इस तरह के फैसलों से कट्टरपंथियों का उत्साह बढ़ेगा और आगे जाकर इन्हें संभालना सरकार के लिए मुश्किल होगा.
3. भारत विरोधी फजल अंसारी का बढ़ा कद
बांग्लादेश की यूनुस सरकार ने बांग्लादेश के विवादित पत्रकार फजल अंसारी को बड़ा तोहफा दिया है. अंतरिम सरकार ने विदेश में अपने मिशनों के लिए फजल अंसारी को राजदूत नियुक्त किया है. हालांकि उन्हें किस देश में भेजा जा रहा है इसके बारे में फिलहाल कोई जानकारी नहीं है, लेकिन जल्द ही विदेश मंत्रालय अंसारी की पोस्टिंग को लेकर ऐलान कर सकता है. फजल को बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार और भारत विरोधी अभियान चलाने के लिए जाना जाता है. करीब एक दशक के निर्वासन के बाद वह पिछले महीने ही बांग्लादेश वापस लौटे हैं, और उनकी बांग्लादेश वापसी के कुछ ही दिनों के भीतर युनूस सरकार ने उन्हें बड़ा तोहफा दे दिया है.
4. तख्तापलट के बाद चुनाव कराने में देरी
5 अगस्त को शेख हसीना सरकार को बांग्लादेश की सत्ता से बेदखल कर दिया गया. शेख हसीना को उग्र आंदोलन के चलते बांग्लादेश छोड़कर भारत आना पड़ा. 2 महीने से अधिक वक्त गुजरने के बाद भी यूनुस सरकार ने जल्द चुनाव के कोई संकेत नहीं दिए हैं. यूनुस सरकार बार-बार दोहरा रही है कि देश में गहन सुधार लाने के बाद ही स्वतंत्र चुनाव कराए जाएंगे. वहीं कुछ दिनों पहले अंतरिम सरकार के सलाकार डॉ आसिफ नजरुल ने कहा है कि अगले एक साल के अंदर चुनाव हो सकते हैं लेकिन इसके लिए कई सुधार और राजनीतिक समझौते जरूरी हैं.
5. जमात-ए-इस्लामी पर लगा बैन हटाया
शेख हसीना सरकार ने हिंसक आंदोलन के लिए जमात-ए-इस्लामी को जिम्मेदार ठहराते हुए बैन लगा दिया था, लेकिन मोहम्मद यूनुस की अध्यक्षता में बनी अंतरिम सरकार ने 28 अगस्त को जमात-ए-इस्लामी पर लगे प्रतिबंध को हटाने की अधिसूचना जारी कर दी गई. जमात, बांग्लादेश की सबसे बड़ी इस्लामिक पार्टी है. बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा में अक्सर जमात पर ही आरोप लगते रहे हैं वहीं इसे भारत विरोधी और पाकिस्तान परस्त भी माना जाता है.
हाल ही में जमात प्रमुख ने भारत पर बांग्लादेश की राजनीति में हस्तक्षेप करने और आवामी लीग का समर्थन करने का आरोप लगाया था. शफीक-उर-रहमान ने कहा था कि मिलकर काम करना और हस्तक्षेप करना दोनों अलग-अलग है, उन्होंने भारत को अपनी विदेश नीति पर दोबारा विचार करने को भी कहा था.
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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम
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