दुनियां – मुस्लिम ‘नाटो’ बनाने के पीछे का मकसद, क्या भारत लिए है खतरा? – #INA
दुनिया तेजी से महायुद्ध की तरफ जा रही है. एक खेमा अमेरिका और नाटो देशों का है, दूसरा रूस, बेलारूस, ईरान और उत्तर कोरिया जैसे रूस के साथ खड़े देशों का. अगर 25 देशों का मुस्लिम नाटो बना तो ये तीसरी बड़ी ताकत होगी. ऐसे में मुस्लिम नाटो बना तो इन तीनों शक्तियों के टकराव के बाद महाविनाश होना तय है. इसके साथ ही सवाल ये भी है कि मुस्लिम देश अपने तमाम मतभेद भुलाकर मुस्लिम नाटो बनाने में कामयाब रहे तो ये भारत को कैसे प्रभावित कर सकता है.
एक्सपर्ट्स का मानना है कि मुस्लिम नाटो सिर्फ कल्पना है, जो कभी हकीकत नहीं बन सकती. जब 42 देशों की इस्लामिक मिलिट्री काउंटर टेरेरिज्म कोलिशन नाम की संस्था अपने उद्देश्यों में सफल नहीं रही तो 25 देशों का मुस्लिम नाटो विचार कैसे काम करेगा? क्योंकि मुस्लिम NATO जैसी कोशिश एक बार पहले भी हो चुकी है. 9 साल पहले दिसंबर 2015 में IMCTC यानी इस्लामिक मिलिट्री काउंटर टेरेरिज्म कोलिशन नाम की संस्था बनाई गई थी. आतंकवाद के खिलाफ एशिया और अफ्रीका के 42 मुस्लिम देशों ने इसे बनाया था. ये संस्था आज भी एक्टिव है, लेकिन ना तो पाकिस्तान से आतंकवाद मिटा और ना सीरिया को ISIS के चंगुल में फंसकर बर्बाद होने से ये संस्था बचा पाई.
मुस्लिम नाटो जैसा संगठन अभी अस्तित्व में नहीं है, लेकिन इसे बनाने की गंभीर कोशिशें हो रही हैं. नाटो की तर्ज पर जिस 25 मुस्लिम देशों के जिस मुस्लिम नाटो को बनाए जाने की योजना है, उसका मुख्य मकसद एकजुट होकर आतंकवाद रोधी अभियान चलाना है. इसके अलावा इस संगठन के तहत मुस्लिम देश एक दूसरे के सैन्य बलों को अत्याधुनिक बनाने पर भी जोर देंगे. तीसरा मकसद इन 25 मुस्लिम देशों के बीच खुफियां जानकारियां साझा करना है, लेकिन सबसे बड़ा मकसद है, महासंग्राम के समय दुनिया की तीसरी बड़ी ताकत बनना है.
भारत पर क्या पड़ेगा प्रभाव?
पहला असर ये होगा कि भारत का पाकिस्तान और बांग्लादेश से तनाव बढ़ सकता है क्योंकि इसमें पाकिस्तान-बांग्लादेश जैसे देश सदस्य होंगे.
दूसरा असर ये होगा कि कश्मीर विवाद को हवा मिल सकती है, क्योंकि ये संगठन पाकिस्तान के पक्ष में दबाव बनाने का प्रयास कर सकता है.
तीसरा असर ये हो सकता है कि क्षेत्रीय सुरक्षा को खतरा होगा, क्योंकि मुस्लिम नाटो से पाकिस्तान को मजबूती मिल सकती है.
चौथा असर ये है कि भारत को अलग-थलग करने की कोशिश होगी, क्योंकि पाकिस्तान मुस्लिम बहुल देशों को प्रभाव में रख सकता है.
कुछ दिन पहले अयातुल्ला अली खामेनेई ने इजराइल के खिलाफ दुनिया के सभी मुस्लिम देशों को अपने मतभेद भुलाकर एकजुट हो जाने की अपील की थी. दूसरी तरफ दुनिया के 57 मुस्लिम देशों में से तुर्किए एकमात्र देश है, जो NATO गठबंधन में शामिल है. इसके बाद भी एर्दोआन मुस्लिम देशों का नाटो जैसा ही गठबंधन बनाने के लिए कूटनीतिक कोशिशों में लगे हैं, लेकिन मुस्लिम नाटो बनाने की एक और आवाज पाकिस्तान से आई है. आजकल पाकिस्तान में भड़काऊ बयान दे रहा भगोड़ा जाकिर नाइक अपनी तकरीरों में मुस्लिम नाटो की बात कर रहा है.
मुस्लिम नाटो का सवाल अमेरिका तक पहुंचा
डॉ. जाकिर नाइक नाम का एक जाना माना स्कॉलर है, जो प्रधानमंत्री मोदी के सत्ता संभालने के बाद भारत से बाहर कर दिया गया. वो अभी पाकिस्तान के दौरे पर है और पूरे मध्य-पूर्व की स्थिति को देखते हुए उसने ये विचार रखा है कि सभी मुस्लिम देशों को भी नाटो की तर्ज पर कुछ करना चाहिए. मुस्लिम नाटो का सवाल अमेरिका तक पहुंच गया है.
एक पत्रकार ने अमेरिका में विदेश विभाग के प्रवक्ता ने जाकिर नाइक का नाम लेकर मैथ्यू मिलर से मुस्लिम नाटो पर अमेरिका की औपचारिक प्रतिक्रिया मांग ली. हालांकि मैथ्यू मिलर ने मुस्लिम नाटो के विचार पर अमेरिका का रुख साफ नहीं किया, लेकिन ये बात बिल्कुल सही है कि 25 मुस्लिम देशों के बीच सैन्य गठबंधन करने और नाटो के बाद दूसरा सबसे बड़ा सैन्य गठबंधन करने की योजना अमेरिका को पसंद नहीं आ रही.
मिडिल ईस्ट में अमेरिका के 19 देश
मिडिल ईस्ट के लगभग 19 देशों में अमेरिका के मिलिट्री बेस हैं. बहरीन, कतर, मिस्र, सऊदी अरब, इराक, सीरिया, इजरायल, तुर्किए, जॉर्डन, UAE और कुवैत में अमेरिका के बड़े सैन्य बेस हैं. सऊदी अरब के रियाद में 1951 से अमेरिका की सेना का स्थाई बेस है.
इसके अलावा सऊदी में अमेरिका का अल-उदीद एयर बेस और प्रिंस सुल्तान एयरबेस भी है. इन्हीं मिलिट्री बेस से पूरे मिडिल ईस्ट और खाड़ी देशों पर अमेरिका नजर रखता है और NATO का सदस्य होने की वजह से अमेरिका का साथ देना एर्दोआन की मजबूरी है. एर्दोआन इसी मजबूरी से निकलना चाहते हैं और नाटो जैसा एक और सैन्य मोर्चा बनाकर उसका नेतृत्व करना चाहते हैं.
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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम
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