दुनियां – अमेरिकी चुनाव में वोट 24 करोड़, पर चंद हजार से भी कैसे हो जाता है ‘खेला’? – #INA
दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव आखिरी चरण में है. 5 नवंबर को वोटिंग होनी है. कौन जीतेगा इसका जवाब तो फिलहाल साफ तौर पर नहीं दिया जा सकता. मगर ऐसी संभावनाएं भी है कि ट्रंप और हैरिस में से कोई एक चंद हजार वोटों के अंतर से भी राष्ट्रपति की कुर्सी तक पहुंच सकता है. अगर ऐसा हुआ तो ये अमेरिकी इतिहास में पहली बार नहीं होगा.
2020 में जो बाइडेन महज 0.03 फीसदी वोटों से राष्ट्रपति बन गए थे जबकि कुल वोट पड़े थे 15 करोड़. ठीक उसी तरह से 2016 में डोनाल्ड ट्रंप भी राष्ट्रपति की कुर्सी तक पहुंचे. अब सवाल है इस बार के चुनाव में 24 करोड़ मतदाता हैं, जिसमें से 7 करोड़ से ज्यादा लोग अर्ली वोटिंग के जरिए पहले ही वोट कर चुके हैं, उसमें इतना कम अंतर निर्णायक कैसे हो जाता है?
वजह है- अमेरिका के चुनावी तंत्र का सबसे अहम और निर्णायक हिस्सा इलेक्टोरल कॉलेज. यहां जीत का फैसला जनता के डाले गए वोटों की कुल संख्या के आधार पर नहीं बल्कि इलेक्टोरल कॉलेज के जरिए होता है. और इसमें भी अहम हो जाते हैं वो 7 स्विंग स्टेट जिनके बारे में कहा जाता है कि ये जिस भी उम्मीदवार के पाले में खड़े हो जाए उसका पलड़ा भारी कर देते हैं.
अमेरिका का इलेक्टोरल सिस्टम
अमेरिका का जो इलेक्टोरल सिस्टम है उसमें कुल 538 इलेक्टर्स या प्रतिनिधि होते हैं. हर एक राज्य की आबादी के हिसाब से इनकी संख्या तय होती है. जैसे कैलिफोर्निया के पास 55 इलेक्टर हैं तो वहीं वायोमिंग से 3.
राष्ट्रपति बनने के लिए किसी भी उम्मीदावर को 270 के जादुई नंबर पर पहुंचना होता है. कुछ राज्य तो पहले से तय है कि वो किस पार्टी को वोट देंगे. लेकिन कुछ ऐसे राज्य भी होते हैं जो किसी भी पार्टी का गढ़ नहीं है इसलिए यहां किसी के भी हक में चुनाव जा सकता है. इन्हें अमेरिका में स्विंग स्टेट कहते हैं. इस बार इन स्विंग स्टेट की संख्या सात है-मिशिगन, पेन्सिलवेनिया, विस्कॉन्सिन, एरिजोना, नेवादा, जॉर्जिया और नॉर्थ कैरोलिना.
अमेरिका के कुल 50 राज्यों के 538 इलेक्टोरल कॉलेज वोट में 93 इन सात राज्यों में हैं. ऐसे में ये वोट 270 के आंकड़े तक पहुंचने में काफी अहम हो जाते हैं. जो भी उम्मीदवार इन राज्यों में अच्छी बढ़त बना पाने में कामयाब होगा वही व्हाइट हाउस की रेस में बाजी मारेगा.
स्विंग स्टेट की अहमियत ऐसे बढ़ जाती है
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव का विजेता हमेशा सबसे अधिक वोट लाने वाल उम्मीदवार नहीं होता है. हाल ही के वर्षों में इस सिस्टम की काफी आलोचना इसी बात से हो रही है कि ये एक वोट की अहमियत को काफी कम कर देता है.
दरअसल अमेरिका के 50 राज्यों में भी 48 ऐसे राज्य हैं (नेबरास्का और मेन को छोड़ दें) जहां इलेक्टर्स का चुनाव ‘विनर टेक्स ऑल’ के आधार पर होता है. मतलब अगर कैलिफोर्निया में 55 इलेक्टोरल वोट्स हैं और अगर ट्रंप 29 वोट्स लेकर आ गए तो पूरे 55 वोट्स उन्हीं के खाते में चले जाएंगे.
तो ऐसे में इस बात की आशंका रहती है कि पार्टियां स्विंग स्टेट या कांटे की टक्कर वाले राज्यों में जीत हासिल कर इलेक्टोरल कॉलेज में 270 मत हासिल करने में कामयाब हो जाएंगी.
कब कब हुआ ऐसा?
2020 के राष्ट्रपति चुनाव का उद्हारण लें, जब चुनावी मैदान में डेमोक्रेटिक उम्मीदवार जो बाइडेन और रिपब्लिकन कैंडिडेट डोनाल्ड ट्रंप थे. इस चुनाव में 15 करोड़ से ज्यादा लोगों ने वोट किया लेकिन राष्ट्रपति का फैसला सिर्फ 42 हजार 918 वोट से तय हुआ था. यानी महज 0.03% के वोट मार्जिन से जो बाइडेन राष्ट्रपति चुन लिए गए. जीत का मार्जिन तय करने में तीन स्विंग स्टेट्स की भूमिका अहम थी- जॉर्जिया, ऐरिजोना और विस्कॉन्सिन. बाइडेन इन्हीं राज्यों की बदौलत 306 इलेक्टोरल वोट्स ला पाने में कामयाब हुए.
ठीक उसी तरह 2016 के चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप भी राष्ट्रपति चुने गए. 13.7 करोड़ वोट डाले गए लेकिन ट्रंप ने 0.06 पर्सेंट से चुनाव जीत लिया. तीन महत्वपूर्ण राज्यों विस्कॉन्सिन, मिशिगन और पेन्सिलवेनिया में केवल 70 हजार वोटों ने ट्रंप को जीत दिलाई. ये वोट हिलेरी क्लिंटन की 30 लाख आम वोटों की बढ़त पर भारी पड़ गए थे.
फिर, सबसे बारीकी से तय किया गया राष्ट्रपति चुनाव जो याद आता है वो है साल 2000 का. जब जॉर्ज डब्ल्यू बुश और अल गोर के बीच कांटे की टक्कर थी. बुश केवल 537 वोट मार्जिन यानि 0.009% से राष्ट्रपति चुन लिए गए जबकि 58 लाख से ज्यादा वोट डाले गए थे. उनकी जीत में फ्लोरिडा स्टेट ने अहम भूमिका निभाई. ये अमेरिकी इतिहास का ऐसा चुनाव था जिसमें धांधली के आरोप भी लगे थे. मामला सुप्रीम कोर्ट में गया था. सुप्रीम कोर्ट में 5 में से 4 जजों ने बुश को राष्ट्रपति चुना.
Copyright Disclaimer Under Section 107 of the Copyright Act 1976, allowance is made for “fair use” for purposes such as criticism, comment, news reporting, teaching, scholarship, and research. Fair use is a use permitted by copyright statute that might otherwise be infringing. Non-profit, educational or personal use tips the balance in favor of fair use.
सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम
Source link