दुनियां – Donald Trump: बाइडेन की वो 5 गलतियां जिससे अमेरिका हार गईं कमला हैरिस, ऐसे भारी पड़ा डोनाल्ड का ‘ट्रंप कार्ड’ – #INA

कमला हैरिस के ‘2024 के राष्ट्रपति अभियान’ को डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ करारी हार का सामना करना पड़ा. ऐतिहासिक अभियान चलाने के बावजूद डोनाल्ड ट्रंप से हारने वाली दूसरी महिला उम्मीदवार बन गई हैं. इससे पहले 2016 में डेमोक्रेट उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन को भी ट्रंप से हार का सामना करना पड़ा था. कमला हैरिस की हार के पीछे एक प्रमुख कारण राष्ट्रपति पद की दौड़ में उनका देर से शामिल होना भी रहा.
हत्या के दो प्रयास ट्रंप के उत्साह को कम करने में विफल रहे और उन्होंने एक बार फिर व्हाइट हाउस की चाबी हासिल कर ली. 20 जनवरी 2025 को वाशिंगटन डीसी में यूएस कैपिटल में आयोजित समारोह में डोनाल्ड ट्रंप को पद की शपथ दिलाई जाएगी. इसके बाद वह आधिकारिक रूप से अपना कार्यकाल शुरू करेंगे. किसी भी उम्मीदवार की हार-जीत के पीछे कई कारक काम करते हैं, ऐसा ही कुछ कमला के साथ भी हुआ. मगर, राष्ट्रपति उम्मीदवार के तौर पर उनके नाम की घोषणा में की गई देरी सबसे बड़ा और अहम मुद्दा रहा.

देर से मिली कमान

हैरिस वर्तमान अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के पद छोड़ने के बाद चुनाव में उतरीं और राष्ट्रपति चुनाव अभियान शुरू होने के बाद डेमोक्रेटिक पार्टी के तहत चुनाव लड़ने के लिए उनका समर्थन किया. हैरिस का दौड़ में प्रवेश बहुत देर से हुआ क्योंकि जब तक वह दौड़ में शामिल हुईं, ट्रंप पहले ही बाइडेन से काफी आगे निकल चुके थे. बाइडेन राष्ट्रपति पद की दौड़ से हटना ही नहीं चाहते थे लेकिल उनकी हालत को देखते हुए पार्टी ने उम्मीदवार बदलने का निर्णय किया. कमला के अलावा कई नामों पर चर्चा की गई और अंत में उनके नाम पर मुहर लगी लेकिन शायद तब तक काफी देर हो चुकी थी.
इसके साथ ही 2020 के राष्ट्रपति पद के लिए अपने अभियान में बाइडेन के विपरीत हैरिस ने ट्रंप को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में चित्रित किया, जिससे डरना चाहिए. हैरिस ने इस धारणा पर भरोसा किया कि केवल लोकतांत्रिक मुद्दे ही उनकी जीत सुनिश्चित करेंगे. वहीं कई टीवी इंटरव्यू में कमला हैरिस उस तरह से अपनी बात को नहीं रख पाई, जिस तरह से ट्रंप रखते थे. उनमें विश्वास की कमी को यूएस मीडिया में चुनावों के आखिरी समय की सुर्खियां बनाया, जिससे उनके छवि को थोड़ा झटका लगा.

अफगान से वापसी ने किया शर्मसार

जो बाइडेन के कुछ ऐसे फैसले भी रहे, जो डेमोक्रेटिक पार्टी की हार के वजह रहे. इनमें सबसे पहला अफगानिस्तान से अमेरिका सेना की वापसी थी, जिसने अमेरिका की विश्वसनीयता को कमजोर किया. काबुल से भागने की कोशिश कर रहे हताश अफगानों के दृश्य अमेरिका की कमजोरी और सैन्य शक्ति के पीछे सतत बल की कमी को दुनिया के सामने रख दिया. यह अमेरिकी इतिहास का सबसे लंबा युद्ध था, जिसकी अनुमानित लागत 2 ट्रिलियन डॉलर से अधिक रही और कुल मिलाकर लगभग 200,000 मौतें हुईं.
हालांकि 18-20 अगस्त 2021 को CBS न्यूज पोल में पाया गया कि 63% लोगों ने अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों को हटाने का समर्थन किया, जबकि पोलिटिको पोल में 16-19 अगस्त के पोल में कुछ हद तक कम समर्थन मिला. इसमें 53% ने समर्थन किया और 36% ने इसका विरोध. अफगानिस्तान से सेना की वापसी के बाद अमेरिका के कई न्यूज चैनलों ने एक बार फिर से सर्वे किया और CBS न्यूज सर्वेक्षण में पाया गया कि 74% लोगों का कहना है कि सैनिकों को हटाने के मामले में अमेरिका ने खराब तरीके से काम किया है. 67% लोगों का कहना है कि बाइडेन के पास अमेरिकी नागरिकों को निकालने के लिए कोई स्पष्ट योजना नहीं थी.

पुतिन को कम आंका

बाइडेन की टीम ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और रूस को कम करके आंका. इसने पुतिन को लगभग हरी झंडी दिखा दी, जिन्होंने पश्चिम में कमजोरी देखी और यूक्रेन पर आक्रमण करने के अवसर का लाभ उठाया. बाइडेन के लिए यूक्रेन युद्ध एक महत्वपूर्ण जीत हो सकता था. युद्ध के दौरान विभिन्न बिंदुओं पर यूक्रेन जीत के लिए तैयार दिखाई दिया लेकिन इसे सुरक्षित करने के लिए पश्चिम से पर्याप्त धन और हथियारों की आवश्यकता थी, जो कि बाइडेन टीम की तरफ से उसको मुहैया नहीं कराई गई.
बाइडेन यह अवसर चूक गए, जिसने पुतिन के अभियान को पुनर्जीवित किया और अनगिनत यूक्रेनी लोगों की जान ले ली. निर्णायक नेतृत्व के बजाय अमेरिकी नीति में सहयोगियों को एकजुट करने का प्रयास दिखा. अंततः यूक्रेन को जीत हासिल करने के लिए पर्याप्त समर्थन प्रदान करने में विफल रही. देश को जीवित रहने के लिए बस पर्याप्त सहायता दी गई, जो कि जीतने के लिए पर्याप्त नहीं थी.

मिडिल ईस्ट में भड़की आग पर नहीं पा सका काबू

7 अक्टूबर के बाद इजराइल की जवाबी कार्रवाई के लिए उसे जवाबदेह ठहराने में प्रशासन की विफलता से भी मुस्लिम मतदाताओं के बीच हैरिस को नुकसान पहुंचा. अमेरिका इस क्षेत्र में नेतृत्वहीन लग रहा था, जो शायद मतदाताओं को पसंद न आया हो. 13 महीने के संघर्ष में हैरिस को वामपंथी मतदाताओं का समर्थन नहीं मिला, क्योंकि उन्होंने बाइडेन प्रशासन पर नरसंहार का आरोप लगाया. चुनावों से पहले लेबनान पर किए गए हमले के बाद अमेरिका की तरफ से बयान दिया गया कि इजराइल ने उसको इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी, जिसके बाद लोगों का विश्वास भी बाइडेन प्रशासन पर कमजोर हुआ.
लंबे समय तक चल रहे युद्ध को खत्म कराने के लिए अमेरिका बार-बार कोशिश करता रहा लेकिन सफल नहीं हो पाया. इसके साथ ही युद्ध ईरान तक जा पहुंचा और मुस्लिम वोटर पूरी तरह से अमेरिका के चुपचाप बैठकर तमाशा देखने की नीति से ऊब गए.

भारतीयों को भी किया नाराज

बांग्लादेश में जिस तरह से शेख हसीना सरकार का तख्तापलट किया गया, उससे पर्दे के पीछे भारत और अमेरिका के बीच मतभेद हुए. साथ ही यूएस पूरी तरह से भारत पर रूस संबंधों को लेकर शिकंजा कसना चाहता था, जिसके लिए उसने कनाडा में निज्जर मर्डर केस और पन्नू की हत्या में भारतीय अधिकारियों के हाथ होने की बात को भारत पर दबाव बनाने की कोशिश की. इससे अमेरिका में रहने वाले भारतीय भले ही खुलकर अपनी नाराजगी जाहिर न कर पाएं हों लेकिन उन्होंने बाइडेन प्रशासन के खिलाफ वोट करने का मन बनाया. जबकि ट्रंप बार-बार भारत से अच्छे संबंधों की बात करते रहे. भारतीय मूल ही होने के बावजूद कमला हैरिस भारतीयों से उस तरह का जुड़ाव बनाने में असमर्थ दिखीं.
अब डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति होंगे, जोकि 1984 में रोनाल्ड रीगन के बाद से किसी रिपब्लिकन राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार की सबसे बड़ी जीत है. हालांकि, ट्रंप के सत्ता में वापस में आने से इजराइल को अमेरिका का समर्थन जारी रहेगा, जिससे मिडिल ईस्ट में युद्ध और भड़क सकता है. इसके साथ ही अगर वह चीन पर पहले ही तरह टैरिफ बढ़ाते हैं तो एक बार फिर से दोनों देशों के संबंधों में और गिरावट आ सकती है. हालांकि, भारत के लिए भी ट्रंप के साथ सामन्जस्य बनाना आसान नहीं होगा, क्योंकि वह अमेरिका फर्स्ट, यूएस की तरफ से निर्यात होने वाले सामान पर टैक्स में छूट और आयात होने वाले सामान पर कम रियायत देने के पक्ष में रहते हैं.

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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम

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