दुनियां – अमेरिका फर्स्ट के साथ ट्रंप भी फर्स्ट! बेरोजगारी, महंगाई, जंग और चीन से कैसे निपटेंगे – #INA

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप फर्स्ट डिविजन में पास हो गए हैं. यह उनकी दूसरी और आखिरी पारी है. देखना है, वे अब क्या ऐसा करते हैं, जिससे अमेरिका का इतिहास बदल जाएगा. अमेरिका अपने 257 साल के इतिहास में सबसे खराब दौर में गुजर रहा है. महंगाई के चलते अमेरिकी मध्य वर्ग परेशान है. पांच डॉलर का एक अंडा उसकी पब्लिक की इकोनॉमी को ध्वस्त किए हुए है.
ऐसा पहली बार हो रहा है कि देश में गृह-विहीन लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है. मकान खरीदना बूते से बाहर है. और किराया देने में एक दिन की भी चूक होने पर मकान मलिक किरायेदार को घर से बाहर कर देता है. ऐसे में खुली छत के नीचे रहने वाले होम-लेस लोगों की संख्या बढ़ रही है. लोगों के पास रोजगार नहीं है और यूक्रेन युद्ध में अमेरिका इतना पैसा बहा चुका है कि पूरा देश डेमोक्रेटिक पार्टी से नाखुश था.
बड़बोलापन तो रहेगा ही
यही कारण था कि रिपब्लिकन पार्टी के डोनाल्ड ट्रंप ने उन इलाकों में भी जीत दर्ज की, जहां पहले से डेमोक्रेट्स का झंडा बुलंद था. यहां तक कि अश्वेत मतदाताओं ने भी ट्रंप पर मुहर लगाई. डोनाल्ड ट्रंप के जितने प्रशंसक हैं उतने ही निंदक भी. अमेरिका फर्स्ट की अपनी नीतियों के चलते वे अक्सर लोकतंत्र की मर्यादा नष्ट कर देते हैं. उन पर अमेरिकी संसद में 2 बार महाभियोग भी लाया जा चुका है. उन पर अनेक राज्यों में आपराधिक मामले दर्ज हैं.
कैपिटल हिल्स (अमेरिकी संसद) में उनके समर्थकों ने हल्ला बोला था. 2020 की हार के बाद भी उन्होंने जो बाइडेन के लिए व्हाइट हाउस खाली करने से मना कर दिया था. उन्हें जबरदस्ती राष्ट्रपति आवास से बाहर किया गया था. वे कुछ भी बोल सकते हैं और कुछ भी कर सकते हैं. यही हाल उनके समर्थकों का भी है.
मध्यवर्ग का भरोसा जीतना बड़ी चुनौती
ऐसे व्यक्ति का राष्ट्रपति चुना जाना पूरी दुनिया को अचंभित करता है. भले अब अमेरिका की अर्थव्यवस्था चीन से पिछड़ी हुई हो लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि आज भी अमेरिका इतना मजबूत राष्ट्र है कि अगले 100 साल तक भी दुनिया बदहाल हो जाए, अमेरिका का कुछ नहीं बिगड़ेगा. यह पूर्व में अमेरिकी प्रशासन की सोच रही है कि वे पूरी शिद्दत के साथ अमेरिका का खजाना भरते रहे. बुनियादी ढांचा में वह अव्वल है. तेल के भंडार उसके पास हैं. खाद्यान्न की कोई कमी नहीं.
भले अमेरिका मैन्युफैक्चरिंग नहीं करता हो लेकिन हर वस्तु का भंडार उसके पास है. ट्रंप की चुनौती यह है, कि यह भंडार यथावत बना रहे. जो महंगाई आज ढाई प्रतिशत के करीब पहुंच रही है, वह घटे. अमेरिकी मध्य वर्ग का भरोसा जीतना ट्रंप की सबसे बड़ी चुनौती है. देखना यह है कि अगले चार वर्षों में ट्रंप क्या कुछ कर पाते हैं.
महंगाई ने सारे मानक ध्वस्त किए
मोटे तौर पर तो यही लगता है कि डोनाल्ड ट्रंप का पहला काम होगा, किसी तरह रूस-यूक्रेन युद्ध को बंद करवाना. जिस दिन भी अमेरिका यूक्रेन की मदद बंद कर देगा, युद्ध उसी रोज खत्म. 25 फरवरी 2022 से चला आ रहा रूस-यूक्रेन युद्ध अब अमेरिका के गले की फांस बनता जा रहा है. जो बाइडेन ने यूक्रेन की इतनी अधिक मदद की कि खुद अमेरिका का कोष भी खाली हो गया. इसमें कोई शक नहीं कि इस दौरान उसने यूक्रेन को इतने हथियार बेचे कि अमेरिका के हथियार निर्माताओं की चांदी हो गई.
साथ ही नाटो देशों की तरफ से उसकी आर्थिक मदद भी कराई, उससे खुद अमेरिकी खजाने पर बोझ पड़ा और महंगाई बढ़ी. इसी का खामियाजा डेमोक्रेटिक पार्टी को उठाना पड़ा. चुनाव के अंतिम समय में भले ही डेमोक्रेटिक पार्टी ने राष्ट्रपति की दौड़ में जो बाइडेन की जगह कमला हैरिस को उतारा हो पर वे कोई कमाल नहीं कर सकीं.
चीन को कमजोर करने के लिए भारत का इस्तेमाल
सबसे बड़ी बात है, कि डोनाल्ड ट्रंप भारत के साथ कैस व्यवहार करेंगे. बांग्लादेश में मौजूदा दौर के हिंदू उत्पीड़न की निंदा कर उन्होंने अमेरिका में बसे हिंदुओं का सपोर्ट भले जुटा लिया हो, लेकिन क्या इस तरह की भावनात्मक बातों से भारत का कोई लाभ होगा! भारत से दोस्ती रखना उनकी जरूरत है. उनको चुनौती चीन से मिल रही है.
चीन को घेरने में भारत ही मददगार हो सकता है. क्योंकि चीन की अर्थव्यवस्था इस समय सबसे मजबूत है. अमेरिकी और यूरोपीय देशों के बाजार उसके उत्पादों से भरे पड़े हैं. अपनी विशाल आबादी का चीन ने भरपूर इस्तेमाल किया. वहां पर लेबर सस्ती है और अपने काम में कुशल भी. वहां का मौसम ज्यादा गर्म नहीं है इसलिए वहां पर आलस्य कम है. इसलिए मैन्युफैक्चरिंग में चीन दुनिया के सभी देशों से अव्वल है. इसलिए चीन के माल को दरकिनार करना आसान नहीं है.
USA एक उपभोक्ता देश
अमेरिका में आप नामी कंपनी स्कैचर्स का जूता खरीदें, लेकिन उस पर लिखा होगा, मेड इन चाइना. इसी तरह के लगभग सभी उत्पादों पर चीन का नाम मिलेगा. कपड़ों में बांग्लादेश और वियतनाम भारी पड़ता है. चावल थाइलैंड से आता है. सच यह है कि अमेरिका आज हथियारों के अतिरिक्त कुछ नहीं बना रहा. सभी मल्टीनेशनल कंपनियों के दफ्तर अमेरिका के शहरों में हैं लेकिन प्रोडक्ट किसी और देश से आ रहा होगा. अमेरिका अपनी विलासिता से एक उपभोक्ता देश बन कर रह गया है.
कई एशियाई और दक्षिण अमेरिकी देश, अमेरिका में अपना माल बेच कर कमाई कर रहे हैं. इसीलिए डोनाल्ड ट्रंप ने अपने पिछले कार्यकाल (2016-2020) में टैरिफ कर लगा कर आयातित माल को महंगा कर दिया था. भारत को कुछ उन्होंने छूट दी थी. लेकिन भारतीय व्यापारियों ने दूसरे देशों से सस्ता माल खरीदकर अमेरिका निर्यात कर दिया था. ट्रंप भारतीय व्यापारियों की इस हरकत से बहुत नाराज हो गए थे. और भारत को पसंदीदा निर्यातकों की श्रेणी से बाहर कर दिया. ऐसे में इस बार स्थिति और टफ होगी.
आयात को कम करना पहला लक्ष्य होगा
पेंसिलवानिया में रह रहे भारतीय प्रोफेशनल महेंद्र सिंह कहते हैं, जहां तक पॉलिसी की बात है सबसे पहले तो ट्रंप अपने अमेरिका फर्स्ट के वादे के मुताबिक विदेश से आयात होने वाले सामानों पर टैरिप (कर) बढ़ाएंगे ताकि आयात हतोत्साहित हो और स्थानीय स्तर पर मैन्यूफैक्चरिंग बढ़ सके. जाहिर है, इससे उनके समर्थक बहुत खुश होंगे पर इसका एक नुकसान यह भी है कि अमेरिका अभी अपने यहां मैन्यूफैक्चरिंग के लिए तैयार नहीं है, सबसे बड़ी समस्या है अच्छे और सस्ते कुशल मजदूरों का अमेरिका में न मिल पाना. इस कारण कुछ सालों में फिर महंगाई बढ़ सकती है.
अमेरिकी जनता फिर महंगाई से जूझेगी. चूंकि भविष्य में डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति का चुनाव नहीं लड़ सकते. इसलिए वे अब वही करेंगे जिससे उन्हें तत्काल वाहवाही मिले.
Starlink का जाल भारत में फैलेगा!
मगर इसका थोड़ा नुकसान भारत को भी उठाना पड़ सकता है. हालांकि भारत अमेरिका के लिए कोई बड़ा निर्यातक देश नहीं है पर जो भी अभी तक भेजता है उस पर उसे अधिक कर देना पड़ेगा तो जाहिर से अमेरिका और भारत के व्यापार पर विपरीत असर पड़ेगा. हां, एलन मस्क (elon musk) जरूर ट्रंप के माध्यम से भारत सरकार पर दबाव बढ़ाकर अपनी टेस्ला कार का उत्पादन भारत में कर सकेंगे जो डील पिछले साल नहीं हो पायी थी.
साथ ही मस्क अपनी इंटरनेट कंपनी starlink को भी भारत में फैलाने की कोशिश करेंगे. इससे शायद भारत के जमे जमाये इंटरनेट सेक्टर के व्यापारियों के लिए प्रतियोगिता बढ़ जाए. जियो को धक्का लग सकता है क्योंकि टैरिफ की होड़ में जियो पिछड़ जाएगा. यूं भी अब वह पहले जैसी सेवाएं नहीं दे पा रही.
कम्प्यूटर इंजीनियरों का जाना मुश्किल होगा
सबसे बड़ा झटका मिलेगा भारत से अमेरिका जाने वाले प्रवासियों को. भारत से अमेरिका आने वाले H1B वीज़ा धारकों की कठिनाइयां बढ़ जाएंगी. नतीजा यह होगा कि जो कम्प्यूटर इंजीनियर अमेरिका जाते हैं, उनके रास्ते में अवरोध खड़े होंगे. उनको भारत में ही जॉब तलाशनी होगी. अभी तक तो अमेरिका का कैलिफोर्निया शहर एक मिनी भारत बन गया है. भारत से गए ज्यादातर कम्प्यूटर इंजीनियर यहीं आबाद हैं.
भले भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने माई फेंड ट्रंप कह कर उन्हें जीत की बधाई दी हो लेकिन ट्रंप चाह कर भी भारत का कोई भला नहीं कर सकते. यूं भी रिपब्लिकन पार्टी आप्रवासन को ले कर सख्त है. उसे लगता है, कि गरीब देशों के लोग अमेरिका आ कर यहां की सोशल डेमोग्राफी बिगाड़ रहे हैं. इस वजह से अमेरिकी जनता संकट में आती है.
पुतिन से दोस्ती, भारत को खुश करने की कोशिश
डोनाल्ड ट्रंप की पुतिन से दोस्ती है इसलिए वे यूक्रेन युद्ध को जल्द ही खत्म करवाएंगे. ट्रंप शायद इस बात पर भी सहमत हो जाएं कि यूक्रेन रूस का ही अधिकृत क्षेत्र है. फीलिस्तीन के मामले में कुछ नहीं बदलने वाला क्योंकि यहूदियों का ट्रंप पर भी उतना ही असर है जितना उनका बाइडेन पर था. यूं भी पूरे USA की इकोनॉमी की चाबी यहूदियों के पास है. इसलिए नेतन्याहु को रोकने के लिए दबाव ट्रंप नहीं डालेंगे. ईरान अवश्य अब दबाव में रहेगा.
भारत को खुश करने के लिए ट्रंप बांग्लादेश में हस्तक्षेप अवश्य करेंगे. हो सकता है कि मोहम्मद यूनुस की छुट्टी हो जाए. क्वाड को और मजबूत किया जाएगा ताकि चीन पर दबाव बनाया जा सके. ट्रंप के समक्ष एक चुनौती ब्रिक्स की होगी. ब्रिक्स द्वारा अपनी करेंसी लाने की घोषणा डॉलर की दादागिरी खत्म करेगी. देखना यह है कि ट्रंप इस चुनौती से कैसे निपटते हैं!
सिख अलगाववाद को बढ़ावा शायद न मिले
इसमें कोई शक नहीं कि जो बाइडेन ने भारत को घेरने के लिए सिख अलगाववादियों को पनाह दी. वह इतना बड़ा खिलाड़ी है कि इसके लिए कनाडा का सहारा लिया. कनाडा में सिख और हिंदू आबादी लगभग बराबर है. वहां पर सिख राजनीतिक रूप से शक्तिशाली हैं.
प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो सिखों के टूल बन गए. नतीजा भारत-कनाडा संबंध बहुत तनावपूर्ण हो गए. संभव है कि अब यह तनाव घटे. और इस बात की भी संभावना है कि ट्रूडो सरकार संकट में आ जाए. यूं भी ट्रूडो का इस समय फेडरल संसद में बहुमत नहीं है.

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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम

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