दुनियां – COP29: जलवायु को लेकर अजरबैजान में महामंथन, भारत इस बार किस टारगेट के साथ पहुंचा? – #INA
अजरबैजान के बाकू में सोमवार से 12 दिवसीय जलवायु सम्मेलन की शुरुआत हो रही है. भारत की ओर से पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री कीर्तिवर्धन सिंह 19 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करेंगे. बैठक में भारत मुख्य रूप से 3 उद्देश्यों पर फोकस करने वाला है.
COP29 की बैठक में भारत की 3 प्राथमिकताओं में जलवायु वित्त (क्लाइमेट फाइनेंस) की त्वरित आवश्यकता के लिए जवाबदेही तय करना, कमजोर समुदायों की सुरक्षा और न्यायसंगत ऊर्जा परिवर्तन पर ध्यान केंद्रित होगा.
COP29 में शामिल नहीं होंगे पीएम मोदी
इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बैठक में शामिल नहीं होंगे, वहीं पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र सिंह भी शिरकत नहीं कर रहे हैं, 19 सदस्यीय भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व केंद्रीय राज्य मंत्री कीर्तिवर्धन सिंह करेंगे. 12 दिनों तक चलने वाले इस सम्मेलन में भारत का आधिकारिक वक्तव्य 18 और 19 नवंबर को होना है.
COP29 में भारत की 3 प्राथमिकताएं
भारत अपनी प्राथमिकताओं के तहत जलवायु वित्त (क्लाइमेट फाइनेंस) को लेकर विकसित देशों की जवाबदेही तय करने पर ध्यान केंद्रित करेगा. दरअसल विकसित देशों की ओर से विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए फंड का भरोसा दिया गया था जिसे अब तक पूरा नहीं किया गया है. भारत की कोशिश होगी कि इस वादे को पूरा करने पर जोर दिया जाए जिससे विकासशील देशों को मदद मिले. वहीं जलवायु परिवर्तन से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले कमजोर समुदायों की सुरक्षा और आर्थिक विकास को ध्यान में रखते हुए न्यायसंगत ऊर्जा परिवर्तन की जरूरत पर जोर दिया जाएगा.
जवाबदेही तय करना जरूरी- घोष
ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (CEEW) के CEO डॉ. अरुणाभ घोष का कहना है कि COP29 को वादों से ज्यादा प्रयास करने की जरूरत है. विकसित देशों को अपने कार्बन उत्सर्जन में तेजी से कमी लाने और कमजोर देशों को प्रभावी तौर पर वित्तीय मदद मुहैया करानी चाहिए. उन्होंने कहा कि जलवायु COPs महत्वाकांक्षाओं को बढ़ाने, सक्षम कार्रवाई करने और सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी तय करने को लेकर है. अरुणाभ घोष का कहना है कि पिछली बार हुई COP28 बैठक में कई वादे किए गए लेकिन इससे विकसित देशों को छूट दे दी गई. लिहाजा COP29 में जिम्मेदारी तय करने पर सबसे ज्यादा फोकस होना चाहिए.
सबसे ज्यादा कार्बन उत्सर्जन करने वाले देशों को तेजी से इसमें कमी लाना चाहिए और अपनी महत्वाकांक्षाओं को बढ़ाना चाहिए. इसके साथ ही क्लाइमेट फाइनेंस निरंतर, सुविधाजनक, उत्प्रेरक और भरोसेमंद होना चाहिए. साथ ही COP29 को सबसे कमजोर समुदायों की सुरक्षा के लिए असल संसाधन और क्षमता सुनिश्चित करनी चाहिए.
इन पर फोकस होगी भारत की रणनीति
COP29 में भारत का रुख जवाबदेही तय करने, न्यायसंगत वित्तपोषण और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के लक्ष्यों को बढ़ाने पर फोकस होगा. भारत की रणनीति विकसित देशों को क्लाइमेंट फाइनेंस के वादे को पूरा करने के लिए चुनौती देने और क्लाइमेट वित्त को अधिक पारदर्शी और भरोसेमंद बनाने पर वार्ता की होगी.
COP29 से क्या हैं उम्मीदें?
केन्या के जलवायु परिवर्तन दूत अली मोहम्मद ने कहा है कि अफ्रीका को एक ऐसा ‘फाइनेंस COP’ चाहिए जो उसके कर्ज को और न बढ़ाए. उन्होंने कहा कि ग्लोबल क्लाइमेट रेसिलेंस का फ्रेमवर्क ऐसा होना चाहिए जो कृषि, जल, स्वास्थ्य, बायो-डाइवर्सिटी और इंफ्रास्ट्रक्चर को समर्थन दे.
सेंटर फॉर अमेरिकन प्रोग्रेस में स्थित इंटरनेशनल क्लाइमेट पॉलिसी की सीनियर डायरेक्टर डॉक्टर फ्रांसेस कोलान ने अमेरिकी चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत के बाद हो रहे इस सम्मेलन के महत्व पर जोर दिया. क्योंकि ट्रंप तेल और गैस को समर्थन देने वाली नीतियां अपना सकते हैं.
नए लक्ष्यों पर बातचीत की संभावना
इस बार बैठक में क्लाइमेट फाइनेंस के लिए सामूहिक तौर पर निर्धारित किए गए नए लक्ष्यों (NCQG) पर बातचीत हो सकती है, जो एक महत्वपूर्ण मानक है और यह सालाना खरबों डॉलर तक पहुंच सकता है. लेकिन बहुत से विकासशील देश इसे जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए प्रभावी मानते हैं. 13 नवंबर को ग्लोबल कार्बन बजट जारी होने पर वर्तमान उत्सर्जन ट्रेंड का विस्तृत असेस्मेंट और पेरिस समझौते का टारगेट कितना मेल खा रहा है, इसकी जानकारी मिलेगी.
इस बार नहीं होगा भारतीय पैवेलियन
पिछली वार्ताओं के विपरीत भारत इस बार COP29 में अपना पैवेलियन आयोजित नहीं करेगा. आम तौर पर पैवेलियन के जरिए सभी देश अपनी उपलब्धियों और जलवायु परिवर्तन के लिए किए जाने वाले प्रयासों को दर्शाते हैं. भारत ने यह फैसला ऐसे समय पर लिया है जब भारत आर्थिक विकास पर फोकस करते हुए एक विकसित देश के तौर पर ऊर्जा जरूरतों की मांग को संतुलित करने का प्रयास कर रहा है.
EU और चीन की क्या होगी भूमिका?
यूरोपीय यूनियन की जलवायु नीति एक्सपर्ट लिंडा काल्चर का कहना है कि यूरोप को क्लाइमेट फाइनेंस के लिए मजबूत समर्थन बनाए रखना चाहिए, खास तौर पर तब जब अमेरिका में इसे लेकर नीतियों में बदलाव की पूरी आशंका है. उन्होंने विकासशील देशों के लिए क्लाइमेट फाइनेंस में EU को सबसे भरोसेमंद पार्टनर बताया और कहा कि मौजूदा समय में यह छिप नहीं सकता.
वहीं एशिया सोसाइटी पॉलिसी इंस्टीट्यूट में स्थित चाइना क्लाइमेट हब के डायरेक्टर ली शुओ का कहना है कि COP29 वैश्विक सहयोगी की परीक्षा है. उन्होंने कहा कि अमेरिका में सत्ता परिवर्तन होने की स्थिति में EU और चीन को नेतृत्व की भूमिका निभानी चाहिए.
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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम
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