दुनियां – ‘न डेट करेंगी और न रिलेशन बनाएंगी’, महिलाओं ने अमेरिका में क्यों छेड़ा 4B जैसा आंदोलन? – #INA
डोनाल्ड ट्रंप अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में बड़ी जीत हासिल करते हुए व्हाइट हाउस में वापसी करने जा रहे हैं. लेकिन उनकी इस जीत से अमेरिकी महिलाओं का एक वर्ग इतना नाखुश है कि उन्होंने विरोध में आंदोलन छेड़ दिया है. इस आंदोलन की जड़ में है गर्भपात का मुद्दा. जिस पर ट्रंप के सत्ता में आने से और सख्त कानून बनने का डर महिलाओं को सता रहा है.
दरअसल 2022 में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने गर्भपात के अधिकारों को समाप्त कर दिया था, और ट्रंप ने इस फैसले का खुलकर समर्थन किया था. अब, ट्रंप की सत्ता में वापसी से चिंतित महिलाओं का कहना है कि जब तक उन्हें गर्भपात से जुड़े अधिकार वापस नहीं मिलते, वे पुरुषों के साथ न तो संबंध बनाएंगी और न ही शादी करेंगी. इस विरोध को साउथ कोरिया के सालों पुराने 4B आंदोलन के साथ जोड़ा जा रहा है. जिसमें महिलाओं ने पितृसत्तात्मक सोच के खिलाफ मोर्चा खोला था.
अमेरिकी महिलाएं भी अब उसी राह पर चलते हुए विरोध से जुड़े वीडियो इंस्टाग्राम और टिकटॉक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर साझा कर रही हैं. तो आखिर 4B आंदोलन क्या है और अब अमेरिकी महिलाएं उसकी तरफ क्यों रुख कर रही हैं?
कोरियाई आंदोलन 4B क्या है?
4B आंदोलन दक्षिण कोरिया में 2016 में शुरू हुआ था. यह #MeToo जैसा एक आंदोलन है, जिसका मकसद महिलाओं के अधिकारों और समानता की मांग करना है. इस आंदोलन की शुरुआत उस समय हुई जब कोरिया में एक युवती की हत्या ने पूरे देश को झकझोर दिया. आंदोलन के दौरान विरोध के रूप में महिलाओं ने चार चीजों के लिए मना करना शुरू किया. इसलिए इसे 4B नाम दिया गया.
4B का मतलब कोरियाई भाषा में चार “बी” शब्दों से है:
बिहोन (Bihon) – पुरुषों से शादी न करने का फैसला
बिचुलसन (Bichulsan) – बच्चे न पैदा करने का संकल्प
बियेओनाए (Biyeonae) – पुरुषों को डेट न करने का निर्णय.
बिसकेसु (Bisekseu) – किसी पुरुष के साथ शारीरिक संबंध न बनाने का वचन.
4B आंदोलन की समर्थक महिलाओं का मानना है कि जब तक पुरुष लैंगिक समानता को लेकर गंभीर और सक्रिय नहीं होते, तब तक उन्हें भावनात्मक और सामाजिक अपेक्षाएँ जैसे कि शादी, बच्चों की जिम्मेदारी, या प्रेम संबंध नहीं देना चाहिए.
आर्थिक वजह से भी परेशान है महिलाएं…
दक्षिण कोरियाई समाज में पुरुष हिंसा के पैमाने से महिलाएं कितना तंग आ चुकी हैं इसकी एक झलक इन आंकड़ों में देखने को मिलती है. 2018 में एक चौंकाने वाली रिपोर्ट पब्लिश हुई. इसमें पता चला है कि पिछले नौ सालों में दक्षिण कोरिया में कम से कम 824 महिलाओं की हत्या कर दी गई थी और अन्य 602 पर अपने ही साथी के हाथों मारे जाने का खतरा था.
मगर दायरा सिर्फ हिंसा तक सीमित नहीं है. आर्थिक कारण भी एक वजह है. OECD यानि ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट के डेटा के मुताबिक दक्षिण कोरियाई पुरुष महिलाओं की तुलना में औसतन 31.2 प्रतिशत अधिक कमाते हैं. महिलाओं में इसे लेकर खासी नाराजगी है.
यही नहीं घरेलू कामों के साथ साथ बच्चों और बुजुर्गों की देखभाल की जिम्मेदारी भी आम तौर पर महिलाओं के कंधे पर ही आती है. और बढ़ती महंगाई की वजह से महिलाओं पर बाहर काम करने का भी बोझ पड़ा है. यानी जिम्मेदारियां सीधे दोगुनी हो गई. इसके वजह से महिलाएं बच्चे पैदा करने से हिचक रही हैं. इस बीच, दक्षिण कोरिया में जन्मदर में तेजी से गिरावट जारी है. हाल के वर्षों में ये देश दुनिया में सबसे कम जन्म दर वालें देशों में से एक रहा है .
साउथ कोरिया की राह पर क्यों अमेरिकी महिलाएं?
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में गर्भपात यानी ऑबर्शन का अधिकार अहम चुनावी मुद्दों में से एक था. कहा जा रहा था कि ये डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन, दोनों पार्टियों के लिए निर्णायक साबित हो सकता है. मगर नतीजों के बाद मालूम हुआ कि इस मुद्दे पर महंगाई, आप्रवासन हावी रहा.
ट्रम्प ने कहा है कि वह फेडरल अबॉरशन बिल को वीटो कर देंगे, ये भी कहा कि अबॉर्शन पर क्या फैसला लेना, यह राज्यों पर छोड़ देना चाहिए. हालाँकि, अब महिला अधिकार समूहों के बीच यह डर मंडरा रहा है कि चूंकि सीनेट और सुप्रीम कोर्ट में रिपब्लिकन्स का कंट्रोल हो गया और हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव पर भी कब्जा करने के करीब है तो ऐसे में गर्भपात पर बने कानून को और सख्त करना आसान हो जाएगा.
पूरे अमेरिका में गर्भापात पर बैन लगा दिया जाएगा. ऐसी भी आशंकाएं हैं कि ट्रंप के प्रशासन को 1873 कॉम्स्टॉक अधिनियम को लागू करने की ताकत भी हासिल हो जाएगी जिसके तहत गर्भपात से जुड़ी दवा या अन्य सामग्री बेचने या खरीदने को अपराध माना जाता है. यह कानून दशकों से लागू नहीं किया गया है.
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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम
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