दुनियां – न वॉर, न परमाणु हथियार…बच्चों की घटती आबादी से चिंतित हैं ये पावरफुल देश – #INA

दुनिया के दो मोर्चों पर बड़ी जंग जारी है, बावजूद इसके विश्व के कई ताकतवर देश ऐसे हैं जो न युद्ध से चिंतित हैं और न ही परमाणु हथियार से. यह देश अपनी घटती आबादी और घटते जन्म दर से चिंतित हैं. जो आने वाले समय में इनके विकास की गति को रोक सकते हैं.
चीन, जापान, रूस घटती जनसंख्या से चिंतित हैं और इसे बढ़ाने के लिए उपाय कर रहे हैं. वहीं अमेरिका में ट्रंप सरकार की वापसी से महिलाओं ने 4B आंदोलन छेड़ रखा है, इससे अमेरिका में भी आने वाले कुछ दशकों में आबादी पर असर पड़ सकता है. स्पेन, जर्मनी, इटली, दक्षिण कोरिया और ईरान जैसे कई देश हैं जो अपनी घटती आबादी को लेकर परेशान हैं.
घटती जनसंख्या से परेशान इन देशों के सामने क्या चुनौतियां हैं और इससे निपटने के लिए वह क्या कुछ प्रयास कर रहे हैं?
घटती आबादी से चीन की चिंता को समझिए
दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, चीन अपनी घटती आबादी से परेशान है. पिछले 2 साल से लगातार चीन की जनसंख्या में गिरावट दर्ज की गई है. जिसके चलते विशेषज्ञों ने आशंका जताई है कि इस सदी के अंत तक चीन की आबादी घटकर आधी रह जाएगी.
नेशनल ब्यूरो ऑफ स्टैटिस्टिक्स के अनुसार, साल 2023 में चीन में 90 लाख बच्चे पैदा हुए. यह संख्या 2017 में पैदा हुए बच्चों की की तुलना में आधी है. बीते दो साल में ही चीन की आबादी करीब 30 लाख कम हो चुकी है. एक अनुमान के मुताबिक 2040 तक चीन की 25 फीसदी आबादी बूढ़ी (60 वर्ष से अधिक) हो जाएगी.
आबादी कई मायनों में किसी भी देश की एक महत्वपूर्ण संपत्ति होती है. लेकिन यही आबादी जब बूढ़ी हो जाए तो सरकार पर उसकी सामाजिक सुरक्षा और देखभाल का बोझ बढ़ जाता है. वहीं घटती आबादी से विकास की रफ्तार और अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ता है. ऐसे में किसी भी देश को प्रोडक्टिविटी बढ़ाने के लिए दूसरे देशों से आने वाले अप्रवासियों पर निर्भर होना पड़ता है, जिससे सामाजिक और सांस्कृतिक संकट पैदा हो सकता है.
चीन ने संकट से निपटने के क्या प्रयास किए?
चीन की सरकार घटती जनसंख्या से बेहद चिंतित है, यही वजह है कि कम्युनिस्ट सरकार ने दशकों बाद आबादी को लेकर अपनी सख्त नीतियों में बदलाव करना शुरू कर दिया है. चीन ने 1979 से 2015 तक सख्ती से वन चाइल्ड पॉलिसी लागू की थी. लेकिन 2015 में जिनपिंग सरकार ने इसमें बदलाव करते हुए 2 बच्चों की अनुमति दी और कुछ साल पहले 2021 में इसे 2 से बढ़ाकर 3 कर दिया गया है. यही नहीं चीन की सरकार ने ज्यादा बच्चे पैदा करने के लिए आर्थिक स्कीम भी निकाली लेकिन इन प्रयासों का कोई खास असर नहीं हुआ.
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जापान: सख्त वर्क-कल्चर ने घटा दी आबादी?
जापान भी तेजी से कम हो रही जनसंख्या से उभरने वाले संकट का सामना कर रहा है. पिछले साल की तुलना में इस साल बच्चों के जन्म दर में 5 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है, हैरानी की बात ये है कि ऐसा पहली या दूसरी बार नहीं हुआ है बल्कि देश में लगातार 8 सालों से बच्चों की संख्या में कमी आ रही है.
जहां चीन की ‘वन चाइल्ड पॉलिसी’ घटती जनसंख्या का बड़ा कारण रहा है तो वहीं जापान का अन-हेल्थी वर्क कल्चर इसकी घटती आबादी की सबसे बड़ी वजह माना जाता है. दरअसल जापान में रोजाना 12-12 घंटे से अधिक काम करना और छुट्टी न लेना एक अच्छे कर्मचारी की निशानी के तौर पर देखा जाता है. काम के दबाव में लोग शादी करने और बच्चे पैदा करने से कतराते हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक जापान में शादी करने वालों की संख्या में करीब 6 फीसदी गिरावट दर्ज की गई है, यह आंकड़ा इसलिए डराने वाला है क्योंकि बीते 90 सालों में पहली बार सालभर में देश में 5 लाख से कम शादियां हुईं हैं.
घटती आबादी से जापान के सामने कई तरह की मुश्किलें पेश आ रहीं हैं. एक ओर घटता कार्यबल है तो वहीं दूसरी ओर बढ़ती बुजुर्ग आबादी. इससे सरकार को न केवल सामाजिक सुरक्षा की योजनाओं का खर्च उठाना पड़ रहा है बल्कि शादी और बच्चे पैदा करने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करने से भी सरकार का खजाना कम हो रहा है.
दक्षिण कोरिया में हालात चुनौतीपूर्ण
आबादी संकट को लेकर ज्यादा चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों का सामना दक्षिण कोरिया को करना पड़ा रहा है. 2021 में जहां विश्व के 110 देशों में प्रति महिला जन्म दर 2.1 बच्चे की थी, तो वहीं इस दौरान दक्षिण कोरिया और सर्बिया में यह दर महज 1.1 रह गई. एक रिपोर्ट के मुताबिक आने वाले 50 सालों में दक्षिण कोरिया की जनसंख्या में करीब 30 फीसदी की गिरावट दर्ज की जाएगी.
दक्षिण कोरिया में आबादी को लेकर अचानक इतना बड़ा संकट कैसे आया? क्या चीन जैसी नीति या जापान जैसे सख्त वर्क-कल्चर ने दक्षिण कोरिया को इस मुसीबत में डाला है? तो इसका जवाब है नहीं, दरअसल मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक दक्षिण कोरिया में महिलाएं शादी के बाद के जीवन से बेहद नाखुश थीं, उनका कहना था कि शादी के बाद भी उन्हें अकेले ही घर और बच्चों की देखभाल करना पड़ता था.
(Cheng Xin/Getty Images)
‘4B’ आंदोलन का बड़ा असर!
ऐसे में नौकरी के साथ बच्चों की देखभाल करना मुश्किल होता जा रहा था, वहीं ज्यादातर देशों की तरह की बच्चे पैदा करने के बाद महिलाओं की नौकरी पर संकट पैदा हो जाता जिससे उनका करियर प्रभावित हो रहा था. इस ताने-बाने के खिलाफ 2016 में जापान की महिलाओं ने एक आंदोलन शुरू किया जिसे 4B के नाम से जाना जाता है. एक समान अधिकारों और अवसरों की मांग पर करने वाले आंदोलन में महिलाओं ने तय किया कि वह न तो पुरुषों को डेट करेंगी (बियेओनाए), न पुरुषों से शादी करेंगे (बिहोन), न बच्चे पैदा करेंगी (बिचुसलन) और न ही किसी पुरुष के साथ संबंध बनाएंगी (बिसेकसु).
इस 4B आंदोलन के चलते दक्षिण कोरिया में दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी संकट का सामना कर रहा है. चीन और जापान की ही तरह दक्षिण कोरिया को घटती आबादी से कार्यबल की कमी से जूझना पड़ सकता है. युवा आबादी की कमी और बुजुर्गों की बढ़ती संख्या से का सीधा असर देश की अर्थव्यवस्था की रफ्तार पर ब्रेक लगा सकता है.
सरकार के साथ-साथ दक्षिण कोरिया की प्राइवेट कंपनियां भी शादी करने और बच्चे पैदा करने के लिए आर्थिक प्रोत्साहन दे रहीं हैं. भारत में प्रसिद्ध दक्षिण कोरिया की कार निर्माता कंपनी ह्यूंडई ने अपने कर्मचारियों को बच्चे पैदा करने पर 3 लाख रुपये देने का ऐलान किया है. हालांकि दक्षिण कोरिया में इस घटती आबादी को महिलाओं के लिए अवसर के तौर पर भी देखा जा रहा है.
जंग में शामिल रूस भी घटती आबादी से परेशान
ढाई साल से यूक्रेन के साथ जंग लड़ने वाले रूस के राष्ट्रपति को भी घटती आबादी की चिंता सता रही है. देश में बच्चे पैदा न करने के खिलाफ प्रोत्साहित करने वाले कंटेट पर पाबंदी होगी यही नहीं रिपोर्ट्स के अनुसार पुतिन की सरकार ‘सेक्स मंत्रालय’ बनाने पर भी विचार कर रही है. रूस में साल 2016 में जहां 18.9 लाख बच्चे पैदा हुए थे, वहीं स्टेस्टिका के आंकड़ों के मुताबिक देश में इस साल अब तक महज 6 लाख बच्चे पैदा हुए हैं.
चीन, जापान और दक्षिण कोरिया की ही तरह रूस में भी बच्चे पैदा करने पर महिलाओं को लाखों रुपए प्रोत्साहन राशि के तौर पर दिए जाएंगे. इसके अलावा भी सरकार कई ऐसे प्रस्तावों पर विचार कर रही है जिसके तहत वह पहली डेटिंग पर 5 हजार रुपए देगी और हनीमून के दौरान होटल का खर्च उठाएगी.
100 साल बाद नहीं बचेगा ईरान ?
जनसंख्या संकट से जूझने वाले देशों में ताजा नाम ईरान का जुड़ा है. ईरान एक ओर शरणार्थी संकट का भी सामना कर रहा है और अगले साल तक देश से करीब 20 लाख अफगानी शरणार्थियों को डिपोर्ट करने का लक्ष्य रखा गया है. वहीं दूसरी ओर ईरान के डिप्टी हेल्थ मिनिस्टर अलीरेजा रईसी ने घटती आबादी पर चिंता जताई है.
अलीरेजा रईसी ने कहा है कि अगर यह ट्रेंड ऐसे ही जारी रहे तो 2101 तक ईरान की आबादी 4.20 करोड़ रह जाएगी. उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा है कि आने वाले समय में मृत्यु दर में बढ़ोतरी दर्ज होगी और जन्म दर में तेजी से गिरावट आएगी. उन्होंने कहा है कि ईरान दुनिया का एकलौता ऐसा देश है जहां बीते 10 सालों में ही प्रति परिवार औसतन 6 बच्चों से घटकर आंकड़ा एक बच्चे पर आ गया है. उन्होंने चिंता जताते हुए कहा है कि अगर ऐसा रही रहा तो 100 साल बाद ईरान नाम का कोई देश नहीं बचेगा.
ईरान के डिप्टी स्वास्थ्य मंत्री ने इस मुद्दे को काफी गंभीर बताते हुए इससे गंभीरता से निपटने को कहा है. उन्होंने कहा कि जब हमारी आबादी 4.2 करोड़ होगी तब हमारे पड़ोसी देशों की आबादी 35 से 55 करोड़ के बीच होगी.
अमेरिका और यूरोप में भी घटती आबादी का डर
ऐसा नहीं है कि घटती आबादी से महज चीन, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देश ही प्रभावित हैं. यह संकट यूरोप से होता हुआ अमेरिका तक पहुंचने वाला है. जर्मनी, स्पेन और इटली जैसे देश भी युवा आबादी की कमी से जूझ रहे हैं. साल 2020 में कोरोना महामारी आने के बाद जर्मनी में एक दशक में पहली बार जनसंख्या में गिरावट दर्ज की गई थी. हालांकि बढ़ते इमिग्रेशन के कारण साल 2022 में जर्मनी की आबादी में रिकॉर्ड वृद्धि दर्ज की गई. लेकिन अप्रवासियों का मुद्दा देश में अब राजनीतिक संकट खड़ा कर रहा है.
वहीं अमेरिका की बात करें तो 2080 तक देश की आबादी अपने चरम पर होगी और इसके बाद यह कम होना शुरू हो जाएगी. US जनगणना ब्यूरो की रिपोर्ट के मुताबिक 2080 में जहां अमेरिका की आबादी 37 करोड़ पहुंच जाएगी तो वहीं 2100 में यह गिरकर 36.6 करोड़ पर आ जाएगी. ऐसा पहली बार हुआ है जब अमेरिका की आबादी में गिरावट का अनुमान लगाया गया है. लेकिन अमेरिका की सत्ता में डोनाल्ड ट्रंप के आने से महिलाओं ने जिस तरह से दक्षिण कोरिया के ‘4B’ आंदोलन की शुरुआत की है उससे यह आंकड़ा और कम हो सकता है.

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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम

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