Political – उमर अब्दुल्ला ने बडगाम से भी किया नामांकन, आखिर NC ने सुन्नी पर क्यों लगाया दांव?- #INA

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला

जम्मू कश्मीर में जहां विधानसभा चुनाव यहां के क्षेत्रीय दल बनाम बीजेपी होता हुआ नजर आ रहा है. वहीं कश्मीर की कुछ सीटों पर नेशनल कांफ्रेंस (एनसी) और पीडीपी के बीच सीधी लड़ाई है. जिसमें बडगाम की एक सीट को भी माना जा रहा है. बडगाम सीट पर नेशनल कांफ्रेंस के सामने उम्मीदवार का चयन एक बड़ी चुनौती थी. क्योंकि इससे पहले आगा रुहुल्लाह बडगाम की सीट जीत के नेशनल कांफ्रेंस की झोली में डाल देते थे. लेकिन वह हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में श्रीनगर सीट जीत के संसद पहुंच गए हैं.

वहीं इस बार पीडीपी ने पूर्व अलगाववादी नेता आगा सैयद हसन के बेटे सैयद मुंतजिर मेहदी को नेशनल कांफ्रेंस से पहले संपर्क कर विचार विमर्श के बाद अपने उम्मीदवार की हैसियत से मना लिया, जिससे एनसी की मुश्किलें बढ़ गई हैं.

शिया वोट बैंक बंट जाएगा

बडगाम सीट से न केवल सैयद मुंतजिर मेहदी शिया नेता चुनाव में खड़े हैं बल्कि पीपल अलाइंस फॉर गुपकर डिक्लेरेशन (PAGD) की सहयोगी राजनीतिक दल अवामी नेशनल कांफ्रेंस के शिया उमीदवार आगा सैयद अहमद मुस्तफा भी चुनावी मैदान में हैं. जोकि रिश्ते में सांसद और शिया नेता आगा रुहुल्लाह और सैयद मुंतजिर मेहदी के भी चाचा हैं, जिससे माना जा रहा है कि अब यहां शिया वोट बैंक बंट जाएगा.

सुन्नी वोटों पर निशाना

जानकारों के अनुसार जैसे ही नेशनल कांफ्रेंस को लगा कि यहां शिया वोट बैंक बंट रहा है, तो उन्होंने सुन्नी वोट को अपनी ओर खींचने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह को चुनावी रण में उतार दिया. हालांकि जानकारों का यह भी कहना है कि शिया वोट को अपने लिए ट्रांसफर करना उमर के लिए मुश्किल होगा.

बडगाम में कुछ शिया वोटर्स के अनुसार, सैयद मुहताजिर मेहदी के पिता आगा सैयद हसन अलमोसवी अभी अंजुमन शेर-ए-शिया, जोकि इस समुदाय का सबसे बड़ा सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक मंच हैं के प्रमुख हैं. इसका लाभ भी सैयद मुंतजिर मेहदी को मिलने वाला है, क्योंकि शिया समुदाय के सामने मुंतजिर के पिता समुदाय के सबसे प्रमुख धार्मिक गुरु हैं.

दो विधानसभा सीटों से चुनाव लड़ने का फैसला

उमर अब्दुल्ला ने हालांकि बडगाम में नामांकन के नाद सांसद आगा रुहुल्लाह के निवास पर बात करते हुए कहा कि दो विधानसभा सीटों से चुनाव लड़ना कमजोरी का संकेत नहीं बल्कि उनकी पार्टी की ताकत को साबित करता है. उनके अनुसार वह यह दिखाना चाहते थे कि नेशनल कांफ्रेंस यह चुनाव कमज़ोर नहीं बल्कि मजबूत स्तिथि में लड़ रही है. अगर बडगाम से उनके हारने का कोई खतरा होता तो उनके पार्टी के सहयोगियों ने उन्हें यहां से चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं दी होती.

असमंजस में मतदाता

गांदरबल सीट के बाद बडगाम से भी नामांकन भरने से कहीं न कहीं जमीनी स्तर पर मतदाता इस सवाल को लेकर असमंजस में है कि जीत के बाद उमर की किस सीट का प्रतिनिधित्व करेंगे. जानकारों के अनुसार ऐसा असमंजस चुनावी मैदान में उतरे उम्मीदवार के लिए सही नहीं होता. क्योंकि मतदाता ऐसे असमंजस वाली स्तिथि से दूर रहना चाहता हैं और इसका लाभ विरोधी को मिलने का चांस ज्यादा रहता है.

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