Political – जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव से कश्मीरी पंडितों ने बनाई दूरी, दशकों पुराना दर्द बना वजह- #INA
फाइल फोटो
कश्मीरी पंडित समुदाय के लोगों की एक बैठक का आयोजन किया गया, जिसमें आगामी जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव को लेकर बातचीत की गई. इस बैठक में फैसला लिया गया है कि कोई भी कश्मीरी पंडित राज्य से धारा 370 हटने के बाद पहली बार होने वाले विधानसभा चुनाव में हिस्सा नहीं लेंगे. इस बैठक में बड़ी संख्या में कश्मीरी पंडित नेताओं ने भाग लिया, जिसमें चुनाव में भाग लेने की नैतिक और राजनीतिक कशमकश पर फोकस किया गया, जो उनके नरसंहार की मान्यता के लिए समुदाय की मांग को अनदेखा करना जारी रखता है और इसके नतीजन उनकी मातृभूमि से उनका जबरन पलायन होता है.
एक वकील ने कहा कि दशकों से हम निर्वासित समुदाय रहे हैं, यह देखते हुए कि ताशाही सरकार और राजनीतिक दल हमारे पलायन और हमारी पीड़ा को चुनावों के दौरान चर्चा के बिंदु की तरह इस्तेमाल करते हैं. इसके साथ ही कश्मीरी पंडितों की बैठक में संविधान एक्सपर्ट और वकील टीटो गंजू ने कहा कि जब न्याय के लिए हमारी मांगों की बात आती है, जिसमें हमारे नरसंहार को मान्यता देना, इज्जत के साथ के साथ हमारी मातृभूमि में हमारी वापसी की सारी सुविधा देना और हमारे अधिकारों को बहाल करना, तो फिर हमें चुप्पी का सामना करना पड़ता है. इन चुनावों में हिस्सा लेकर, हम उसी सिस्टम की मदद करेंगे जो हमें नकारती रहती है. यह चुनाव हमारे लिए नहीं है और हमें अपने संकल्प में दृढ़ रहना चाहिए कि हम उस सिस्टम भरोसा न करें, जो हमें चुप कराने की कोशिश करता है.
इश बात पर दिया जोर
वकील टीटो गंजू ने इस बात पर जोर दिया कि चुनाव से दूर रहने से राजनीतिक प्रतिष्ठान को साफ संदेश जाएगा कि कश्मीरी पंडितों को उनकी शिकायतों को नजरअंदाज करके उन्हें सिर्फ बड़े राजनीतिक खेल में महज मोहरे के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जाएगा. पनुन कश्मीर के अध्यक्ष अजय चुरंगू ने कहा कि कश्मीरी हिंदुओं के नरसंहार और जबरन विस्थापन को संबोधित किए बिना इन चुनावों को आयोजित करके, सिस्टम हमारे उन्मूलन को मिटाना चाहता है.
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कब तक करेंगे परहेज?
चुरंगू ने यह भी कहा कि यह सिर्फ एक राजनीतिक फैसाल नहीं है बल्कि मौजूदा हालात के लिए है और यह चुनावी सिस्टम लोकतांत्रिक ताने-बाने में हमारे शामिल होने के बारे में नहीं है. यह हमारे बहिष्कार को मजबूत करने के बारे में है. यदि हम भाग लेते हैं, तो हम खुद को इसमें धकेलने में भागीदार होंगे. बैठक में फैसला किया गया कि समुदाय आगामी चुनावों में भाग लेने से तब तक परहेज करेगा जब तक कि उनके नरसंहार को औपचारिक रूप से मान्यता नहीं दी जाती.
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