Political – झारखंड: कल्पना सोरेन से लेकर बाबूलाल मरांडी तक…दूसरे चरण में इन दिग्गजों की साख दांव पर- #INA

झारखंड में दूसरे चरण में कई दिग्गजों की साख दांव पर

जल- जंगल -जमीन और बेहतरीन कोयले की गुणवत्ता के कारण झारखंड की पहचान न सिर्फ देश में बल्कि विदेशों में भी है. कोल सिटी के नाम से फेमस झारखंड का धनबाद जिला और कोयलांचल की 16 सीटों पर सभी राजनीतिक दलों की निगाहें टिकी है , जनसंपर्क करने में दलों ने अपनी-अपनी ताकत झोंक दी है, स्टार प्रचारक में शुमार केंद्रीय नेताओं के कार्यक्रम ताबड़तोड़ करवाए जा रहे हैं.

झारखंड में पहले चरण की 43 सीटों पर 13 नवंबर को मतदान समाप्त हो गया है, जबकि दूसरे चरण की 38 सीटों पर 20 नवंबर को मतदान होना है. ऐसे में संथाल परगना की 18 सीटों के साथ-साथ कोयलांचल की 16 सीट झारखंड की सत्ता में एक निर्णायक फैक्टर साबित होने जा रही है.

बदली कोयलांचल की राजनीति

वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद कोयलांचल की राजनीति में काफी कुछ बदलाव आया है. पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान में झारखंड बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा का अस्तित्व ही खत्म हो गया. 2019 के चुनाव समाप्ति के महज कुछ महीनों के बाद 17 फरवरी 2020 को बाबूलाल मरांडी की पार्टी जेवीएम का विलय भारतीय जनता पार्टी में हो गया था.

इसके साथ ही कोयलांचल में एके राय की पार्टी मार्क्सवादी समन्वय समिति (मासस) का भी अब अस्तित्व खत्म हो गया है, कोयलांचल में मासस का भाकपा माले (सीपीआई एमएल) में विलय हो गया है. कोईलांचल में जयराम महतो के नेतृत्व में जेएलकेएम(झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा) पार्टी का भी उदय हुआ है. इन्हीं कारणों से 2019 के मुकाबले 2024 का विधानसभा चुनाव एक अलग राजनीतिक बदलाव और नए समीकरण के साथ कोयलांचल में होने जा रहे हैं.

बाबूलाल मरांडी का निजामुद्दीन से मुकाबला

कोयलांचल की कुल 16 सीट तीन जिलों के अंतर्गत आती है, जिसमें बोकारो जिला, गिरिडीह जिला और धनबाद जिला शामिल है. चर्चित सीटों की बात की जाए तो गिरिडीह जिला अंतर्गत धनवार सीट काफी चर्चा में है. भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और राज्य के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी का मुकाबला झारखंड मुक्ति मोर्चा के निजामुद्दीन अंसारी और सीपीएमएल के राजकुमार यादव के साथ होने जा रहा है. हालांकि, बाबूलाल मरांडी के खेल को बिगाड़ने के लिए बीजेपी के ही बागी निरंजन राय निर्दलीय चुनावी मैदान में है.

कल्पना सोरेन का मुनिया देवी से मुकाबला

कोयलांचल की दूसरी सबसे हाई प्रोफाइल सीट की बात करें तो , यह सीट है गांडेय. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पत्नी और झारखंड मुक्ति मोर्चा की विधायक सह प्रत्याशी कल्पना सोरेन गांडेय से चुनावी मैदान में है, उनके खिलाफ भारतीय जनता पार्टी ने मुनिया देवी को उम्मीदवार बनाया है, मुनिया देवी गिरिडीह की जिला परिषद की अध्यक्ष है.

डुमरी में त्रिकोणीय मुकाबला

इसके साथ ही अन्य सीटों की बात की जाए तो दिवंगत टाइगर जगन्नाथ महतो की पत्नी और वर्तमान सरकार में कैबिनेट मिनिस्टर बेबी देवी की राजनीतिक साख भी दांव पर लगी हुई है . डुमरी विधानसभा सीट से वो झारखंड मुक्ति मोर्चा की प्रत्याशी है, उनके खिलाफ एनडीए गठबंधन में शामिल आजसू पार्टी ने यशोदा देवी को उतारा है. हालांकि, इस सीट पर जेएलकेएम के प्रमुख जयराम महतो भी चुनावी मैदान में उतरे हैं. इस कारण यहां त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल रहा है.

इसके साथ ही अन्य सीटों की बात करें तो बेरमो से पूर्व मंत्री राजेंद्र प्रसाद सिंह की जगह उनके पुत्र और इंटक नेता कुमार जय मंगल उर्फ अनूप सिंह चुनाव लड़ रहे हैं. वर्तमान में अनूप सिंह विधायक हैं और कांग्रेस के प्रत्याशी हैं. उनके खिलाफ भारतीय जनता पार्टी ने रविंद्र पांडे को उम्मीदवार बनाया है. बेरमो अभी कोयलांचल की एक हॉट सीट में शुमार है.

किस सीट पर किसकी साख दांव पर

इसके साथ ही गिरिडीह के विधायक सह झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रत्याशी सुदिव्य कुमार सोनू, बगोदर के विधायक सह सीपीआई -एमएल के प्रत्याशी विनोद कुमार सिंह , जमुआ के विधायक केदार हाजरा , गोमिया के विधायक सह प्रत्यासी डॉ लंबोदर महतो, चंदनकियारी के विधायक सह प्रत्याशी और नेता प्रतिपक्ष अमर कुमार बाउरी , निरसा की विधायक अपर्णा सेनगुप्ता ,धनबाद के विधायक राज सिन्हा, झरिया की विधायक पूर्णिमा नीरज सिंह, टुंडी के विधायक मथुरा प्रसाद महतो, समेत कोयलांचल की 16 सीटों पर सभी की निगाहें टिकी हुई है, जहां 20 नवंबर को मतदान होना है.

कोयलांचल का समीकरण

कोयलांचल के समीकरण को देखा जाए तो 2019 की 16 सीटों में एनडीए को 8 सीटों पर सफलता मिली थी, इतनी ही सीटों पर गठबंधन के उम्मीदवारों को भी जीत हासिल हुई थी. हालांकि, इस बार का राजनीतिक समीकरण काफी बदला है. 2019 के विधानसभा चुनाव में कोयलांचल से जीतने वाले पांच विधायक, 2024 के चुनाव में अलग-अलग कारणों से चुनाव नहीं लड़ पा रहे हैं.

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