Political – हरियाणा चुनाव परिणाम: आत्मनिर्भर बनने की चाह में औंधे मुंह गिरी कांग्रेस, कैसे 2024 में रिपीट हो रहा 2023?- #INA
कुमारी सैलजा, राहुल गांधी और भूपेंद्र सिंह हुड्डा
सियासत में कॉन्फिडेंस जब ओवर कॉन्फिडेंस में तब्दील हो जाता है तो वो महंगा साबित होता है. कांग्रेस के लिए हरियाणा में यही अति-आत्मविश्वास भारी पड़ और वो 40 से कम सीटों पर सिमट गई. कांग्रेस आत्मनिर्भर बनने की चाह में इंडिया गठबंधन के साथी रहे आम आदमी पार्टी और सपा से गठबंधन नहीं किया. कांग्रेस और भूपेंद्र सिंह हुड्डा को उम्मीद थी कि अकेले दम पर बीजेपी को हराकर सत्ता में वापसी कर लेगी, लेकिन उसका यह ओवर कॉन्फिडेंस विधानसभा चुनाव में उसकी हार का कारण बन गया.
हरियाणा विधानसभा चुनाव में कुल 90 सीटों में से बीजेपी 48 सीटों के साथ सत्ता की हैट्रिक लगाने में कामयाब रही जबकि कांग्रेस 37 सीटों पर सिमट गई है. इसके अलावा अन्य के खाते में पांच सीटें आईं है. तीन महीने पहले 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के साथ मिलकर हरियाणा में चुनाव लड़ी थी. हरियाणा की 10 में से 9 सीट पर कांग्रेस चुनाव लड़कर पांच सीटें जीतने में कामयाब रही. कुरुक्षेत्र में आम आदमी पार्टी सिर्फ 29,021 वोटों से हार गई थी. बीजेपी को पांच सीटों पर संतोष करना पड़ा था, जो बड़ा झटका था.
हरियाणा में जीत को लेकर अति उत्साह में दिखी कांग्रेस
लोकसभा चुनाव नतीजे के बाद से कांग्रेस को विधानसभा के चुनाव में अपनी वापसी की उम्मीद देखने लगी थी. इतना ही नहीं कांग्रेस इतना ज्यादा ओवर कॉन्फिडेंस में थी कि उसे लग रहा था कि अकेले दम पर बीजेपी को मात दे देगी. इसके चलते ही हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने न ही सपा के साथ गठबंधन किया और न ही आम आदमी पार्टी के साथ अपनी दोस्ती बरकरार रखी. आम आदमी पार्टी राज्य में कांग्रेस से 90 सीटों में से 10 सीटों की मांग कर रही थी जबकि सपा 2 से तीन सीटें चाह रही थी.
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राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे तक चाहते थे कि कांग्रेस हरियाणा में इंडिया गठबंधन के साथ चुनाव में उतरे, लेकिन हरियाणा कांग्रेस इकाई रजामंद नहीं हुई. इसके चलते कांग्रेस के साथ सहमति नहीं बन सकी. सपा ने खुद ही चुनाव लड़ने से अपने कदम पीछे खींच लिए तो आम आदमी पार्टी ने अकेले चुनाव मैदान में उतर गई. हरियाणा में बीजेपी के साथ सीधे मुकाबले में कांग्रेस आत्मनिर्भर बनने की चाह में औंधे मूंह गिर गई. सपा के साथ गठबंधन न करने का खामियाजा अहीरवाल बेल्ट यानी यादव बहुल इलाके में हार का मुंह देखना पड़ा तो आम आदमी पार्टी के साथ दोस्ती बरकरार न रहने के चलते जीटी रोड बेल्ट वाले इलाके में कांग्रेस का सफाया हो गया था.
सपा-AAP से गठबंधन होता तो नतीजे कुछ और होते
हरियाणा में कांग्रेस अगर सपा और आम आदमी पार्टी के साथ मिलकर चुनावी मैदान में उतरती तो नतीजे अलग होते. कांग्रेस को 37 सीटों पर जीत मिली है और उसका वोट शेयर करीब 40 फीसदी रहा. यहां गौर करने वाली बात यह है कि आम आदमी पार्टी को 1.79 फीसदी वोट मिले हैं. अगर हरियाणा में लोकसभा चुनाव की तरह विधानसभा चुनाव में भी इंडिया गठबंधन एकजुट होकर मैदान में उतरता तो विधानसभा सीटों के हिसाब से नतीजों में बड़ा अंतर देखने को मिल सकता था.
वोट फीसदी के हिसाब से देखें तो कांग्रेस का 39.09 फीसदी वोट और आम आदमी पार्टी का 1.65 फीसदी वोट मिलाकर यह नंबर 40.74 फीसदी हो जाता है. बीजेपी को 39.94 फीसदी वोट मिले हैं. इस तरह बीजेपी से इसकी तुलना करें तो यह अंतर 1 फीसदी से भी कम का है. दो ध्रुवीय चुनाव मुकाबले में करीब 1 फीसदी वोट का अंतर सीटों में बहुत बड़ा अंतर पैदा कर देता है. इसके अलावा सपा के साथ चुनाव न लड़ने का खामियाजा अहीरवाल बेल्ट के इलाके में देखने को मिला, जहां बीजेपी ने कांग्रेस का यादव बहुल सीटों पर सफाया कर दिया. कांग्रेस को जिन इलाको में हार मिली है, वहां पर यादव और पंजाबी-वैश्य वोटर अहम रोल में है.
30 सीटों पर जीत-हार का अंतर 5 हजार वोट से कम
हरियाणा विधानसभा चुनाव में करीब ढाई दर्जन सीटों पर बीजेपी और कांग्रेस के बीच जीत-हार का अंतर 5 हजार वोटों का रहा. इस तरह कांग्रेस अकेले के बजाय आम आदमी पार्टी और सपा के साथ यानी इंडिया गठबंधन के साथ चुनाव में उतरती तो इसके नतीजे कुछ और होते. इस तरह कांग्रेस के लिए हरियाणा की हार एक सबक है, क्योंकि अकेले दम पर बीजेपी को मात देना कांग्रेस के लिए आसान नहीं. इसे जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव नतीजे भी समझा जाता है, जहां पर कांग्रेस ने नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ मिलकर चुनाव लड़ी और बीजेपी को शिकस्त देने में सफल रही.
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कांग्रेस का आत्मनिर्भर बनने के ओवर कॉन्फिडेंस 2023 में भी दिखा था, जब विपक्षी दलों ने वैचारिक मतभेद भुलाकर इंडिया गठबंधन का गठन किया था. इंडिया गठबंधन के घटक दल सीट शेयरिंग को लेकर लगातार बात कर रहे थे, लेकिन कर्नाटक चुनाव नतीजे से कांग्रेस के हौसले इतने बुलंद थे कि मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ चुनाव के बाद सीट बंटवारा करना चाहती थी. कांग्रेस इस कदर अति आत्मविश्वास में थी कि उसे लगा रहा था कि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान का चुनाव जीतने के बाद सीट शेयरिंग अपने मनमानी तरीके से करेगी.
मध्य प्रदेश में कमलनाथ भी अति आत्मविश्वास में थे
नीतीश कुमार से लेकर अरविंद केजरीवाल और अखिलेश यादव के इंडिया गठबंधन में सीट बंटवारे की मांग को नजरअंदाज करती रही. मध्य प्रदेश के चुनाव में सपा की इच्छा कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ने की थी, लेकिन कांग्रेस नेता कमलनाथ अति आत्मविश्वास में थे. उन्होंने समाजवादी पार्टी को साथ लेने से मना कर दिया था और अखिलेश यादव के नाम पर बड़बोलेपन वाला बयान भी दे दिया था. इसके चलते अखिलेश यादव ने मध्य प्रदेश में आधी से ज्यादा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार दिए और जमकर रैलियां की. कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में वापसी करना तो दूर छत्तीसगढ़ और राजस्थान की सत्ता भी गंवा दिया.
कांग्रेस के आत्मनिर्भर बनने के चक्कर में नीतीश कुमार ने इंडिया गठबंधन का साथ छोड़ दिया. इतना ही नहीं टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने भी खुद को विपक्षी एकता से अलग कर लिया. नीतीश कुमार और आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी ने बीजेपी नेतृत्व वाले एनडीए का हिस्सा बन गए. आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने भी अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया था, लेकिन बाद में पंजाब को छोड़कर दिल्ली, हरियाणा सहित देश के बाकी राज्यों में गठबंधन कर लिया था. कांग्रेस ने यह 2023 के चुनाव में मात खाने के बाद लिया था. सपा के साथ भी सीट शेयरिंग पर जिद छोड़कर 17 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया.
लोकसभा के चुनाव में इसलिए कांग्रेस को मिला फायदा
कांग्रेस ने 2024 के लोकसभा चुनाव में अपने सियासी इतिहास में सबसे कम सीटों पर चुनाव लड़ी थी. देश की कुल 543 संसदीय सीटों में से कांग्रेस 270 सीटों पर ही सिर्फ चुनाव लड़ी थी. कांग्रेस को यूपी से लेकर बिहार, दिल्ली और महाराष्ट्र तक सीटों पर समझौता करना पड़ा. कांग्रेस का 2024 में इंडिया गठबंधन के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का सियासी फायदा मिला. कांग्रेस का प्रदर्शन उन्हीं राज्यों में बेहतर रहा था, जिन सूबों में बीजेपी के साथ उसका सीधा मुकाबला नहीं था.
कांग्रेस ने यूपी, महाराष्ट्र, बिहार, झारखंड, केरल और तमिलनाडु में सहयोगी दलों के सहारे बेहतर नतीजे लाई थी. कांग्रेस का मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, असम, गुजरात, हिमाचल, ओडिशा, उत्तराखंड, आंध्र प्रदेश जैसे राज्य में बीजेपी से सीधा मुकाबला रहा था. कांग्रेस इन राज्यों में बीजेपी के आगे पस्त नजर आई. ऐसे में हरियाणा के विधानसभा चुनाव के नतीजों को देखकर यही लगता है कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने भी कमलनाथ वाली गलती की और कांग्रेस का एक और राज्य जीतने का सपना धरा रह गया. इस तरह 2024 में 2023 रिपीट हो रहा है.
जम्मू-कश्मीर में गठबंधन का पार्टी को फायदा मिला
जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी की सलाह को पूरी तरह से माना गया. कांग्रेस और फारुख अब्दुल्ला की पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस गठबंधन बनाकर चुनाव में उतरे और उसका उन्हें फायदा मिला. 90 विधानसभा सीटों वाले जम्मू कश्मीर में इंडिया गठबंधन 49 सीटें जीतती नजर आ रही और सरकार बनाती दिख रही है. कांग्रेस पार्टी के लिए इस चुनाव कई सबक निकले हैं. कांग्रेस को भीतरी कलह का नुकसान पहुंचा है तो इंडिया गठबंधन का बिखराव का भी उसे खामियाजा उठाना पड़ा है. इसके साथ एक अहम बात यह भी है कि पार्टी अपने वोटरों को बिखरने से बचाने के लिए कांग्रेस को आत्मनिर्भर बनने से ज्यादा विपक्ष के एकजुट रखने की दिशा में बढ़ना होगा.
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